हर चौथा बच्चा अब भी 'अदृश्य', मगर क्यों!
पिछले एक दशक में विश्व में ऐसे बच्चों के अनुपात में 20 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है जिनके जन्म का आधिकारिक पंजीकरण किया जाता है, इसके बावजूद पांच साल से कम उम्र के 16 करोड़ से ज़्यादा बच्चों यानी हर चार में से एक बच्चे का पंजीकरण अब भी नहीं हुआ है. अपनी स्थापना के 73 वर्ष पूरे होने पर संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की नई रिपोर्ट में यह बात सामने आई है.
यूनीसेफ़ की नई रिपोर्ट - Birth Registration for Every Child by 2030: Are we on track?, को तैयार करने में 174 देशों से मिले आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है.
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फ़ोर ने रिपोर्ट जारी होने के मौक़े पर कहा कि एक लंबा रास्ता तय किया जा चुका है लेकिन अब भी बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं जिनके बारे में पता नहीं चल पाता.
“जन्म के साथ पंजीकृत ना होने वाला बच्चा अदृश्य है – सरकार और क़ानून की नज़र में उसका अस्तित्व नहीं है. पहचान के सबूत के बिना, बच्चों को अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य देखरेख और अन्य अहम सेवाओं की सुविधा नहीं मिल पाती और उनके शोषण व दुर्व्यवहार का शिकार होने की संभावना बढ़ जाती है.”
इस विषय में वैश्विक प्रगति मुख्य रूप से दक्षिण एशिया में, विशेषकर भारत, बांग्लादेश और नेपाल में सुधार के कारण हुई है.

भारत में पंजीकृत बच्चों का अनुपात वर्ष 2005-2006 में 41 फ़ीसदी से बढ़कर 2015-2016 में 80 फ़ीसदी पहुंच गया.
हाल के वर्षों में यूनीसेफ़ ने भारत सरकार के साथ मिलकर जन्म के पंजीकरण को प्राथमिकता दी जिसके तहत पंजीकरण केंद्रों को सुलभ बनाने के अलावा उनकी संख्या भी बढ़ाई गई.
इसके लिए कई राज्यों में अधिकारियों व सामुदायिक कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया गया और ज़रूरतमंदों पर केंद्रित जन-जागरूकता अभियान चलाए गए.
यूनीसेफ़ का कहना है, “हर बच्चे के पास एक नाम, एक राष्ट्रीयता और क़ानूनी पहचान का अधिकार है, इसलिए पंजीकरण के स्तर में सुधार स्वागतयोग्य ख़बर है. लेकिन जैसाकि हमने अभी बाल अधिकारों की 30वीं वर्षगांठ मनाई है, हम तब तक नहीं ठहर सकते जब तक हर बच्चे की गिनती ना कर ली जाए.”
लेकिन सब-सहारा अफ़्रीका में स्थिति इसके विपरीत है और अधिकांश देश बाक़ी दुनिया से पीछे हैं. इथियोपिया (3 फ़ीसदी), ज़ांबिया (11 फ़ीसदी) और चाड (12 फ़ीसदी) में सबसे कम संख्या में बच्चों का पंजीकरण किया जाता है.
रिपोर्ट बताती है कि हर तीन में से एक देश को प्रगति के लिए तेज़ी से क़दम आगे बढ़ाने होंगे ताकि सभी को क़ानूनी पहचान दिलाने का लक्ष्य पूरा किया जा सके. पांच साल से कम उम्र के बच्चों की कुल संख्या का एक तिहाई हिस्सा इन्हीं देशों में हैं.
टिकाऊ विकास लक्ष्यों के 2030 एजेंडा के अंतर्गत जन्म पंजीकरण को महत्वपूर्ण माना गया है.
पंजीकरण प्रक्रिया में जो अवरोध देखने को मिलते हैं उनमें बच्चों के जन्म के समय पंजीकरण प्रक्रिया की पूरी समझ ना होना, जन्म प्रमाण पत्र के लिए ज़रूरी शुल्क का भार ना वहन कर पाना, देरी से पंजीकरण कराने पर जुर्माने का डर और पंजीकरण केंद्रों का आस-पास ना होना प्रमुख हैं.
इनके अलावा कुछ समुदायों में प्रचलनों व परंपराओं की वजह से लोग उचित समय पर जन्म का पंजीकरण नहीं करा पाते.
अगर बच्चों का पंजीकरण हो भी जाता है तो जन्म प्रमाण-पत्र का होना आम बात नहीं है और विश्व में पांच साल से कम उम्र के 23 करोड़ से ज़्यादा बच्चे हैं जिनके पास ये सर्टिफ़िकेट नहीं है.
यूनीसेफ़ ने अपनी नई रिपोर्ट में सभी बच्चों के संरक्षण के लिए पांच बिन्दुओं पर ज़ोर दिया है:
- जन्म के समय हर बच्चे को एक प्रमाण-पत्र दिया जाए
- सभी अभिभावकों को सशक्त बनाया जाए ताकि वे अपने बच्चों का पंजीकरण करा सकें
- जन्म पंजीकरण व्यवस्था को अन्य प्रणालियों से जोड़ा जाए जिससे सभी बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक संरक्षण से संबंधित सेवाओं का लाभ मिल सके
- जन्म पंजीकरण प्रक्रिया में सुरक्षित और नवाचार (इनोवेशन) तकनीकों में निवेश किया जाए
- समुदायों के साथ संपर्क बढ़ाया जाए ताकि हर बच्चे का पंजीकरण कराया जा सके