'सुरक्षित भविष्य के लिए रोकना होगा मिट्टी का क्षरण'

पृध्वी पर टिकाऊ जीवन और मानव कल्याण के लिए मिट्टी का स्वस्थ होना बेहद अहम है लेकिन विश्व के सभी महाद्वीपों पर मृदा क्षरण होने से खाद्य व जल सुरक्षा और जीवन की कई बुनियादी ज़रूरतों पर ख़तरा बढ़ रहा है. इस वर्ष ‘विश्व मृदा दिवस’ के अवसर पर मिट्टी के क्षरण को रोकने और भविष्य में उसे फिर से स्वस्थ बनाने के प्रति जागरूकता के प्रसार पर ज़ोर दिया जा रहा है.
स्वस्थ मिट्टी सभी जीवित प्राणियों के लिए स्वस्थ पर्यावास और जीवन का आधार है.
स्वस्थ्य मृदा यानी मिट्टी से खाद्य सुरक्षा, स्वच्छ जल, कच्चे पदार्थ प्राप्त करने और कई प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्रों की सेवाएं बरक़रार रखने में मदद मिलती है.
लेकिन खारेपन व अम्लीकरण बढ़ने और जैवविविधिता के घटने से जीवन की इन बुनियादी ज़रूरतों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
विश्व मृदा दिवस हर वर्ष 5 दिसंबर को मनाया जाता है ताकि स्वस्थ मृदा यानी मिट्टी के प्रति जागरूकता के प्रसार पर ध्यान केंद्रित किया जा सके, और मृदा संसाधनों के टिकाऊ प्रबंधन को भी बढ़ावा मिल सके.
खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) में भूमि व जल विभाग में निदेशक एडुआर्डो मंसूर ने बताया, “अपना भविष्य बचाने के लिए हमें मिट्टी के क्षरण को रोकना होगा. मिट्टी की ऊपरी परत का 1 सेंटीमीटर तैयार होने में एक हज़ार वर्ष लगते हैं लेकिन अगर उसका संरक्षण ना किए जाए तो यह एक सेंटीमीटर परत भी एक बार की भारी बारिश में ही खो सकती है.”
उन्होंने भरोसा दिलाया कि यूएन खाद्य एजेंसी इस संबंध में समर्थन देने के लिए तैयार है, साथ ही उन्होंने हर किसी से क़ार्रवाई का हिस्सा बनने की अपील की.
“मिट्टी के क्षरण को रोकना हर किसी की जद्दोजहद होनी चाहिए. हमारे प्रयासों में शामिल हो जाइए. मिट्टी के क्षरण को रोकिए और भविष्य को बचाइए.”
कृषि करने के तरीक़े टिकाऊ ना होने और भूमि के इस्तेमाल में अनुपयुक्त बदलावों के कारण मिट्टी के क्षरण की गति तेज़ होने की आशंका बढ़ जाती है.
मृदा के क्षरण से मिट्टी का स्वास्थ्य और उत्पादकता प्रभावित होती है – बेहद उपजाऊ मिट्टी की ऊपरी परत हट जाती है और बाक़ी बची मिट्टी की उपयोगिता उतनी नहीं रहती.
इससे कृषि उत्पादकता घटती है, पारिस्थितिकी तंत्रों का कार्य भी प्रभावित होता है और भूस्खलन व बाढ़ जैसी भूर्गभीय चुनौतियों का जोखिम भी बढ़ जाता है.
“मिट्टी के क्षरण से जैवविविवधता को नुक़सान पहुंचता है, शहरी और ग्रामीण इलाक़ों में बुनियादी ढांचे को क्षति होती है और कई बार ये लोगों के विस्थापन का कारण भी बन सकता है.”
यूएन एजेंसी का अनुमान है कि अगर समय रहते समुचित कार्रवाई नहीं की गई तो वर्ष 2050 तक कृषि पैदावार में 10 फ़ीसदी तक की कमी आ सकती है. यह लाखों हैक्टेयर कृषि भूमि के बेकार हो जाने के समान होगा.