दक्षिण सूडान: लड़कियों को प्रोत्साहन देने की एक अनोखी पहल

दक्षिण सूडान के मालाकाल स्थित संरक्षण स्थल में भारतीय शांतिरक्षक स्थानीय लड़कियों को सायकिल चलाना सीखा रहे हैं जो उन्हें आत्मनिर्भर बनने का एक अवसर है. नई सायकिलें ख़रीदने के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से 12 घंटों की एक दौड़ का भी आयोजन किया गया.
दक्षिण सूडान के मालाकाल में संयुक्त राष्ट्र मिशन शनिवार की हर सुबह जीवंत हो उठता है.
स्थानीय युवा केंद्र के बगल में स्थित एक मैदान में लड़कियों का एक समूह सायकिल चलाना सीख रहा है. संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रही किशोर लड़कियों की हँसी और ठहाकों की आवाज़ें लगातार सुनाई देती हैं.
कुछ लोग उन्हें कौतूहल की दृष्टि से देख रहे हैं लेकिन लड़कियों को इसकी परवाह नहीं है.
हालांकि किशोर लड़कियों के उस छोटे से झुंड के बीच एक बुज़ुर्ग महिला सबसे अलग नज़र आ रही है. वह पूरे मनोयोग और मज़बूत संकल्प के साथ अपने काम में व्यस्त हैं.
न्यानचांगीवोक अमुम दिन के समय मालाकाल फ़ील्ड अस्पताल में काम करती हैं और शाम को अपना समय किशोर उम्र की लड़कियों को अंग्रेजी और जीवन में काम आने वाली कुछ अहम बातों जैसे स्वच्छता, शराब के ख़तरे, जल्दी शादी से बचने की सलाह देते हुए अपना समय बिताती हैं.
इनमें से ज़्यादातर लड़कियां स्कूल छोड़ चुकी हैं. दक्षिण सूडान में 45 प्रतिशत लड़कियों की पढ़ाई छूटकर 18 वर्ष की आयु से पहले ही शादी हो जाती है.
अमुम का कहना है, “मैं यहां हूं क्योंकि मैं चाहती हूं कि वे देखें कि मैं किस तरह हार ना मानकर और नए कौशल सीखकर अपने जीवन पर नियंत्रण पा रही हूं.”
भारतीय फ़ील्ड अस्पताल के मेडिकल स्टाफ़ की टीम और कुछ अन्य स्वयंसेवक अमुम और अन्य लड़कियों को सायकिल चलाना सिखा रहे हैं.
लेफ़्टिनेंट कर्नल श्रीनिवास गोकुलनाथ ने बताया, “पहली बार सीखने के लिए मुझे लगभग दस लड़कियों के आने की आशा थी लेकिन 52 लड़कियां आईं. और यहां मेरे पास उधार ली हुई सिर्फ़ तीन सायकिलें थीं!”
इस स्थिति का लंबे समय तक जारी रह पाना संभव नहीं था. इसलिए श्रीनिवास गोकुलनाथ ने अपने कमांडिंग अधिकारी और सहयोगियों के आग्रह पर एक महत्वाकांक्षी परियोजना की घोषणा की: उन्होंने कहा कि वह बारह घंटे तक दौड़ेंगे ताकि अपने शुभचिंतक सहयोगियों और दोस्तों से धन जुटाकर लड़कियों के लिए 12 साइकिलें और हेलमेट ख़रीद सकें.
दक्षिण सूडान के मालाकाल में यूएन मिशन फ़ील्ड कार्यालय की प्रमुख हेज़ल डेवेट ने नवंबर में एक शुक्रवार की शाम पचास से अधिक उत्साही धावकों को हरी झंडी दिखाई. बड़ी संखया में लोगों ने एकत्र होकर धावकों का उत्साह बढ़ाया.
लेकिन कुछ चक्र पूरे होने के बाद धावकों और उनका समर्थन करने वाले दर्शकों की संख्या घटती गई. कुछ घंटों की मेहनत के बाद यह स्पष्ट हो गया कि आख़िरी चक्कर में एक ही धावक होगा: दृढ़ संकल्प के साथ डॉक्टर गोकुलनाथ.
नई सायकिलों के अलावा अब इससे डॉक्टर गोकुलनाथ का सम्मान भी जुड़ा था.
रात जैसे-जैसे बीती, वैसे-वैसे प्रोत्साहन देने वालों में सिर्फ़ फ़ील्ड अस्पताल के मेडिकल स्टाफ़ के लोग रह गए जो अपने सहयोगी की सेहत को सुनिश्चित करना चाहते थे.
नींद की परवाह ना करते हुए सहायक दल ने इस अकेले धावक का पूरा साथ दिया - उन्हें पानी दिया गया, समय का ख़याल रखा गया और हर पग पर उन्हें साथ का अहसास कराया.
भारतीय फ़ील्ड अस्पताल के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल सुधीर ने बताया, “हमने ऐसी योजना बनाई ताकि वह किसी भी चरण में अकेले ना दौड़ें, हमारी बटालियन के सैनिक और अन्य लोग रात में विभिन्न जगहों पर उनसे जुड़ते रहे और हमारे चिकित्सा अधिकारी पूरी रात उनकी निगरानी करते रहे.”
जैसे ही टीम ने आख़िरी राउंड की घोषणा की तो शनिवार की सुबह छह बजे रोमांच महसूस किया जा सकता था.
आख़िरकार डॉक्टर गोकुलनाथ इस लक्ष्य को पूरा करने में सफल रहे.
अगर उन्हें ना रोका जाता तो शायद वह और भी ज़्यादा दूरी तक दौड़ सकते थे और शायद 12 से ज़्यादा सायकिलों के लिए धन जुटा लेते.
उस शनिवार को सायकिल सिखाने का सत्र नहीं हुआ लेकिन एक सप्ताह बाद उसी मैदान में 12 चमचमाती नई सायकिलें और हेलमेट देखने को मिले.
मैदान से एक बार फिर लड़कियों के ठहाकों की आवाज़ें आ रही हैं. सायकिल चलाना सीखते हुए अपने जीवन को नियंत्रण में लाने की जद्दोजहद जारी है.