फ़लस्तीन ने इसराइली क़ब्ज़े की विशाल क़ीमत चुकाई

फ़लस्तीनी इलाक़ों पर इसराइली क़ब्ज़े की स्थानीय लोगों को बहुत भारी क़ीमत चुकानी पड़ी है. संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि वर्ष 2000 से 2017 की अवधि में फ़लस्तीन ने इसराइल द्वारा क़ाबिज़ इलाक़ों की 47 अरब 70 करोड़ डॉलर वित्तीय क़ीमत चुकाई. जो वर्ष 2018 में फ़लस्तीनी अर्थव्यवस्था के आकार का तीन गुना है.
यूएन कांफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डवेलपमेंट (UNCTAD) की नई रिपोर्ट, Economic cost of the Israeli occupation for the Palestinian people: Fiscal aspects”, बताती है कि सार्वजनिक राजस्व को हुई हानि व ब्याज़ की क़िस्तों के आधार पर इस आंकड़े पर पहुंचा गया है. इसमें 28 अरब 20 करोड़ डॉलर का अनुमानित ब्याज़ और 6 अरब 60 करोड़ डॉलर फ़लस्तीनी राजस्व का लीक होना शामिल है.
In a 🆕 report, the @UN has put a number to the cost of occupation in #Palestine between 2000 and 2017.The figure? $47.7 billion or 3 times the size of the Palestinian economy in 2017.More➡ https://t.co/0P8vn3rTF3But the costs run deeper still 👀➡ https://t.co/iJtHSKK0ir pic.twitter.com/teYS9H2jBK
UNCTAD
रिपोर्ट के अनुसार अगर फ़लस्तीनी इलाक़ों पर क़ब्ज़े का आर्थिक बोझ नहीं पड़ा होता तो उसी अवधि में फ़लस्तीनी बजट घाटे (17 अरब 70 करोड़ डॉलर) को ना सिर्फ़ पूरा कर पाना संभव होता बल्कि घाटे से लगभग दोगुना अधिक राजस्व की प्राप्ति होती.
इस बचत से फ़लस्तीनी सरकार के लिए विकास कार्यों में दस गुना धनराशि ख़र्च कर पाना संभव होता. इस अध्ययन में वित्तीय क़ीमतों के आकलन के लिए यह मानकर चला गया है कि क़ब्ज़े के अभाव में फ़लस्तीनियों का वित्तीय मामलों पर पूर्ण नियंत्रण होता.
यूएन एजेंसी के आर्थिक मॉडल के अनुसार 18 साल की अवधि में फ़लस्तीनी अर्थव्यवस्था ने 20 लाख नौकरियों के अवसर पैदा किए होते – यानी हर साल औसतन एक लाख से ज़्यादा रोज़गार के अवसर.
जिन कारणों से वित्तीय नुक़सान आंका गया है उनमें इसराइल द्वारा लोगों व सामान की आवाजाही पर पाबंदी; पश्चिमी तट और सभी सीमा चौकियों में एरिया ‘सी’ पर इसराइल का नियंत्रण; अपनी ज़मीन और प्राकृतिक व मानवीय संसाधनों का पूर्ण इस्तेमाल कर पाने का अधिकार ना होना; और फ़लस्तीनी सरकार को वित्तीय संसाधनों पर नियंत्रण से वंचित रखा जाना शामिल है.
यूएन एजेंसी ने इससे पहले भी फ़लस्तीनी वित्तीय संसाधनों के लीक होने और क़ब्ज़े के आर्थिक बोझ को आंकने के विषय पर शोध किया है.
रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि लगातार वित्तीय नुक़सान सहने और क़ब्ज़े की बड़ी क़ीमत चुकाने से फ़लस्तीनी अर्थव्यवस्था को टिकाऊ वृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ाना मुश्किल साबित होगा.
इस स्थिति से बचने के लिए कामकाज के मौजूदा तरीक़ों में बुनियादी बदलावों पर ज़ोर दिया गया है.
इसके तहत फ़लस्तीनी अधिकारियों की सीमा चौकियां तक पहुंच को संभव बनाने, आयात नीतियों व निगरानी प्रणाली बदलने सहित अन्य क़दम शामिल हैं.
रिपोर्ट में दोनों पक्षों से अनुरोध किया गया है कि लंबित मुद्दों पर आपसी बातचीत के ज़रिए समाधान निकाला जा सकता है ताकि फ़लस्तीनियों को उनका हक़ मिल सके.
साथ ही एक ऐसी प्रणाली की व्यवस्था हो सके जिससे फ़लस्तीनी व्यापार और वित्तीय संसाधन से जुड़ी सूचनाओं को इसराइली सरकार फ़लस्तीनी प्रशासन के साथ साझा कर सके.