वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

फ़लस्तीनी जनता के प्रति एकजुटता का प्रदर्शन

इजरायल-सीरियाई सीमा पर संयुक्त राष्ट्र के विमुद्रीकृत क्षेत्र में स्थित तिबरियास (सी ऑफ़ गैलिली) पर फलस्तीनी शरणार्थी बच्चे. तिबरियास, इज़राइल। c.1950
UN Photo
इजरायल-सीरियाई सीमा पर संयुक्त राष्ट्र के विमुद्रीकृत क्षेत्र में स्थित तिबरियास (सी ऑफ़ गैलिली) पर फलस्तीनी शरणार्थी बच्चे. तिबरियास, इज़राइल। c.1950

फ़लस्तीनी जनता के प्रति एकजुटता का प्रदर्शन

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र ने फ़लस्तीनी जनता के आत्मनिर्णय, स्वतंत्रता और संप्रभुता प्राप्ति के लिए चल रहे संघर्ष में अटूट प्रतिबद्धता दोहराई है. बुधवार को न्यूयॉर्क में वरिष्ठ अधिकारियों ने राजदूतों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर फ़लस्तीनी जनता के प्रति एकजुटता का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया. ये आधिकारिक तौर पर हर वर्ष 29 नवंबर को मनाया जाता है. 

1977 में स्थापित ये दिवस, उस दिन की याद में मनाया जाता है जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फ़लस्तीन को एक अरब देश और एक यहूदी देश में विभाजित करने का प्रस्ताव पारित किया था.

संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में "फ़लस्तीन: राष्ट्रीय कारणों में सबसे सार्वभौमिक" प्रदर्शनी के उद्घाटन का एक दृश्य. (बाएँ से दाएँ) सेनेगल के राजदूत चेख नियांग, अवर महासचिव रोज़मेरी डिकैलो, फ़लस्तीन के स्थाई पर्यवेक्षक, रियाद एच मंसूर और तुर्की के राजदूत
UN Photo/Eskinder Debebe
संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में "फ़लस्तीन: राष्ट्रीय कारणों में सबसे सार्वभौमिक" प्रदर्शनी के उद्घाटन का एक दृश्य. (बाएँ से दाएँ) सेनेगल के राजदूत चेख नियांग, अवर महासचिव रोज़मेरी डिकैलो, फ़लस्तीन के स्थाई पर्यवेक्षक, रियाद एच मंसूर और तुर्की के राजदूत

दो-राष्ट्र के समाधान का कोई विकल्प नहीं 

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने अपने संदेश में कहा कि इसराइल-फ़लस्तीनी संघर्ष का हल अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने सबसे दु:साध्य चुनौती है.

उन्होंने दोहराते हुए कहा कि दो-राष्ट्र के समाधान के अलावा और कोई विकल्प नहीं है, इसलिए उन्होंने दोनों पक्षों और उनके समर्थकों से शांति प्रक्रिया में विश्वास बहाल करने की दिशा में काम करने का आहवान भी किया.

दोनों पक्षों के बीच रचनात्मक बातचीत, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों, व लंबे समय से सहमत मापदंडों के पालन से, येरूशलम को दोनों देशों की राजधानी के रूप में मान्यता देकर ही एक न्यायसंगत और टिकाऊ समाधान मिलेगा.”

“सबसे पहले और सबसे बड़ी जरूरत है - नेतृत्व और राजनैतिक इच्छाशक्ति की. जो नागरिक समाज और तमाम अन्य पक्ष इसराइलियों और फलस्तीनियों के बीच की खाई पाटने की कोशिश करते हैं, उन्हें भी समर्थन देने की आवश्यकता है.”

फ़लस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने कहा कि उनके लोगों ने 70 से अधिक वर्षों से त्रासदी और संकट झेले हैं, लेकिन इसके बावजूद वो अडिग हैं.

संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीनी स्थायी पर्यवेक्षक रियाद मंसूर ने अपने संदेश में कहा, "निराशा और असफलताओं में बिताए दशकों के बावजूद, हम एक बहुपक्षीय व्यवस्था के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो अंतरराष्ट्रीय क़ानून का सम्मान सुनिश्चित करे."

उन्होंने कहा, "फ़लस्तीन राष्ट्र अपने राष्ट्रीय संस्थानों के निर्माण, शांति की संस्कृति का प्रसार करने और हमारे लोगों, विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं को सशक्त बनाने समेत अंतरराष्ट्रीय क़ानून को आगे बढ़ाने के प्रयासों में संलग्न रहेगा."

मानवतावादी समर्थन महत्वपूर्ण है

लगभग अस्सी लाख फ़लस्तीनी लोग मुख्य रूप से इसराइल के कब्ज़े वाले क्षेत्र में रहते हैं. इसके अलावा वो मध्य पूर्व में जॉर्डन, लेबनान और सीरिया जैसे देशों में भी शरणार्थी के रूप में रह रहे  हैं.

संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष तिजानी मोहम्मद-बांदे ने अति महत्वपूर्ण मानवीय सहायता सुनिश्चित करने के लिए कार्रवाई करने का आहवान किया है.

उनका कहना था, " ऐसा फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत और निर्माण एजेंसी को मज़बूत करके किया जा सकता है, ताकि ये एजेंसी 54 लाख से अधिक फ़लस्तीनी शरणार्थियों की मानवीय ज़रूरतों को पूरा कर सके. ये अहम है कि हम एजेंसी को राजनैतिक और वित्तीय चुनौतियों का सामना करने के लिए सामूहिक रूप से सुरक्षित रखें.” 

फ़लस्तीनी जनता के अपरिहार्य अधिकारों के अभ्यास पर संयुक्त राष्ट्र समिति के अध्यक्ष नियांग शेख़ ने उम्मीद जताई कि दो-राष्ट्र का समाधान ज़रूर पूरा होगा. 

उन्होंने कहा, "सभी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, वो दिन आएगा और तब हम फ़लस्तीनियों और वास्तव में इस क्षेत्र के सभी लोगों के हित में एक न्यायप्रद शांति की प्राप्ति का जश्न मनाएंगे,"