किशोर उम्र में आलस, दिन में एक घंटा भी कसरत नहीं

विश्व भर में किशोर उम्र में नियमित व्यायाम का घटता रुझान एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है जिससे वयस्क होने पर लोगों के स्वास्थ्य को एक बड़ा ख़तरा पैदा हो सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का एक नया अध्ययन दर्शाता है कि 11-17 वर्ष की उम्र में 80 फ़ीसदी से ज़्यादा किशोर प्रतिदिन 60 मिनट से भी कम शारीरिक गतिविधियों में बिता रहे हैं.
वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर उभरते रुझानों को परखने वाला यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है.
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WHO
रिपोर्ट के मुताबिक़ फ़िलिपींस में लड़कों में शारीरिक निष्क्रियता का स्तर सबसे अधिक (93 प्रतिशत) है. वहीं दक्षिण कोरिया में 97 फ़ीसदी लड़कियां पर्याप्त ढंग से शारीरिक व्यायाम नहीं कर रही हैं.
दुनिया भर में लैंगिक स्तर के नज़रिए से 85 फ़ीसदी लड़कियां और 78 प्रतिशत लड़के नियमित रूप से पर्याप्त व्यायाम या शारीरिक गतिविधि नहीं कर रहे हैं.
संगठन का मानना है कि नियमबद्ध ढंग से हर दिन कम से कम एक घंटा कसरत करने से स्वास्थ्य को लाभ पहुंचता है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी की रिपोर्ट को तैयार करने वाली टीम का हिस्सा रहीं डॉक्टर लिएन राइली ने बताया, “वर्ष 2001 से 2016 तक हमने पाया कि इस आयु वर्ग में गतिविधियों के स्वरूप में कोई बदलाव नहीं आया है – अपने जीवन के हर दिन एक घंटा शारीरिक रूप से सक्रिय होना और शारीरिक सक्रियता से स्वास्थ्य लाभ लेना.”
डॉक्टर राइली के अनुसार इसे कसरत या शारीरिक गतिविधियों के रूप में थोड़े-थोड़े समय के लिए किया जा सकता है – कुछ भी जो जुड़कर लगभग 60 मिनट हो जाए.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि शारीरिक गतिविधि के लाभप्रद होने के लिए उसका ज़्यादा कठिन होना ज़रूरी नहीं है.
उनके अनुसार धीमे-धीमे भागने, चलने, सायकिल चलाने और सक्रिय रहने की कोशिश करने से सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है.
लेकिन पर्याप्त व्यायाम ना कर पाने के दीर्घकाल में कई दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं और लोगों को कई प्रकार के ग़ैर-संचारी और ऐसे रोग होने का ख़तरा बढ़ जाता है जिनकी पहले से ही रोकथाम हो सकती है.
इनमें हृदय की बीमारी, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, स्तन कैंसर और कोलोन कैंसर शामिल हैं.
शारीरिक गतिविधि से मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में भी मदद मिलती है. डॉक्टर राइली का कहना है कि व्यायाम से सीखने में सहयोग मिलता है और डिमेंशिया जैसी बीमारियों को होने से रोकना और वज़न को सही रखना भी संभव हो पाता है.
इस शोध में 146 देशों में स्कूल जाने वाले 16 लाख छात्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है. चार देशों – टोन्गा, समोआ, अफ़ग़ानिस्तान और ज़ांबिया – को छोड़कर हर देश में लड़कों के मुक़ाबले लड़कियां कम सक्रिय हैं.
लड़कों के सक्रियता स्तर में सबसे ज़्यादा बेहतरी दिखाने वाले देशों में बांग्लादेश, सिंगापुर, थाईलैंड, बेनिन, और अमेरिका शामिल हैं.
अमेरिका के मामले में रिपोर्ट बातती है कि राष्ट्रीय स्तर पर खेल को बढ़ावा देने के प्रयास किए गए हैं जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं लेकिन लड़कों को इसका ज़्यादा लाभ मिला है.
टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडा के तहत सभी देशों की सरकारों ने वर्ष 2030 तक किशोरों के सक्रियता स्तर में 15 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने का संकल्प लिया है.
यूएन एजेंसी के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर रिपोर्ट में सामने आए रुझान जारी रहे तो फिर इस लक्ष्य को पाना कठिन होगा.