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क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में इसराइली बस्तियों पर अमेरिका के नए रुख़ पर खेद

पश्चिमी तट के हेब्रॉन में फ़लस्तीनी घर और इसराइली बस्तियां.
UN News/Reem Abaza
पश्चिमी तट के हेब्रॉन में फ़लस्तीनी घर और इसराइली बस्तियां.

क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में इसराइली बस्तियों पर अमेरिका के नए रुख़ पर खेद

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता ने कहा है कि इसराइल द्वारा क़ब्ज़ा हुए फ़लस्तीनी इलाक़ों में इसराइली बस्तियाँ बसाए जाने पर यूएन के लंबे समय से चले आ रहे रुख़ में कोई बदलाव नहीं आया है. यूएन का स्पष्ट रूप से मानना है कि फ़लस्तीनी इलाक़ों में इसराइली बस्तियों का निर्माण अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन है. अमेरिका ने हाल ही में इस संबंध में अपनी नीति बदले जाने की घोषणा की थी जिसके बाद यूएन प्रवक्ता ने न्यूयॉर्क में पत्रकारों से यह बात कही है.

यूएन प्रवक्ता ने कहा कि सोमवार को अमेरिका के इस नए रुख़ की घोषणा पर संयुक्त राष्ट्र को बहुत खेद है. साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि यूएन प्रासंगिक प्रस्तावों के तहत दो-राष्ट्र समाधान के लिए संकल्पित है.

इससे पहले मंगलवार को जिनीवा में एक प्रेस वार्ता में यूएन मानवाधिकार कार्यालय के प्रवक्ता रूपर्ट कोलविले ने बताया कि किसी एक सदस्य देश की नीति में परिवर्तन मौजूदा अंतरराष्ट्रीय क़ानून में बदलाव नहीं लाता, और ना ही उस क़ानून की अंतरराष्ट्रीय न्यायालय और यूएन सुरक्षा परिषद द्वारा की जाने व्याख्या में.

अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो ने नीति में बदलाव की घोषणा करते हुए कहा था कि नागरिक बस्तियों की स्थापना को अंतरराष्ट्रीय क़ानून की अवहेलना बताना काम नहीं आया है. उनके मुताबिक़ इससे शांति को आगे नहीं बढ़ाया जा सका है.

अमेरिकी विदेश मंत्री के इस बयान की फ़लस्तीनी नेताओं और जॉर्डन की सरकार ने निंदा की थी लेकिन इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इसका स्वागत किया था.

विदेश मंत्री पोम्पेयो के इस बयान को मीडिया रिपोर्टों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2334 को ख़ारिज किए जाने के रूप में देखा गया है.

इस प्रस्ताव के तहत वर्ष 2016 में स्पष्ट किया गया था कि 1967 से क़ब्ज़ा किए हुए फ़लस्तीनी इलाक़ों पर इसराइल द्वारा बस्तियां बसाने को क़ानूनी मान्यता हासिल नहीं है और कि यह अंतरराष्ट्रीय क़ानून का खुला उल्लंघन है.

साथ ही इसे दो राष्ट्रों के एक साथ शांति व सुरक्षा से रहने में एक बड़ा अवरोध भी क़रार दिया गया था. सुरक्षा परिषद के 15 में से 14 सदस्यों ने इसके पक्ष में मतदान किया था लेकिन अमेरिका ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया.

माइक पोम्पेयो द्वारा इस बयान के बाद येरुशलम में अमेरिकी दूतावास ने एक सुरक्षा अलर्ट जारी किया है जिसमें येरूशलम जा रहे, या वहां से होकर गुज़र रहे अमेरिकी नागरिकों को उच्च सतर्कता बरतने के लिए आगाह किया गया है.

इस क्षेत्र में पहले से ही तनाव व्याप्त है. 28 अक्टूबर को मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया के लिए विशेष समन्वयक ने बताया था कि क्षेत्र में ख़तरनाक संकेत उभर रहे हैं और इसराइली बस्तियों की बढ़ती संख्या शांति प्रक्रिया में एक बड़ी बाधा है.