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दुनिया भर में करोड़ों लोगों को शौचालय की सुविधा मयस्सर नहीं है. ये तस्वीर मयनमार के हक्का इलाक़े की है जहाँ यूनीसेफ़ की मदद से टॉयलेट्स बनाए गए हैं.
UNICEF/Kap Za Lyan
दुनिया भर में करोड़ों लोगों को शौचालय की सुविधा मयस्सर नहीं है. ये तस्वीर मयनमार के हक्का इलाक़े की है जहाँ यूनीसेफ़ की मदद से टॉयलेट्स बनाए गए हैं.

खुले में शौच से गरिमा और जीवन पर मंडराता है ख़तरा

19 नवंबर 2019
स्वास्थ्य

शौच के बाद और भोजन करने से पहले साबुन से हाथ नहीं धोने जैसी स्वच्छता और साफ़-सफ़ाई की आदतें न होने से सालाना 8 लाख से ज़्यादा लोग मौत का शिकार हो जाते हैं – जोकि मलेरिया से होने वाली मौतों की संख्या  से भी अधिक है. खुले में शौच करना मनुष्य की गरिमा, स्वास्थ्य और कल्याण का अपमान है – ख़ासतौर पर लड़कियों और महिलाओं का.

संयुक्त राष्ट्र के स्वच्छता साझेदार संगठन - जल आपूर्ति और स्वच्छता सहयोग परिषद (WSSCC) का कहना है कि खुले में शौच करने के चलन को समाप्त करने से दुनिया के सबसे कमज़ोर वर्ग के लोगों के जीवन में "लाभकारी बदलाव" आएगा. 

हर साल 19 नवंबर को मनाए जाने वाले विश्व शौचालय दिवस से पहले स्वच्छता परिषद की कार्यकारी निदेशक स्यू कोट्स ने खुले में शौच करने की प्रथा को ख़त्म करने के प्रयासों पर संयुक्त राष्ट्र समाचार से ख़ास बात की.

खुले में शौच क्या है और यह ज्यादातर कहां प्रचलित है?

खुले में शौच का मतलब है कि जब लोग शौचालय का उपयोग करने की बजाय खुले स्थानों में, यानी खेतों, जंगलों, झाड़ियों, झीलों और नदियों में शौच करते हैं. हालांकि विश्व में इसका चलन लगातार कम हो रहा है लेकिन टिकाऊ विकास लक्ष्यों के तहत विशेष रूप से मध्य और दक्षिण एशिया, पूर्वी और दक्षिण - पूर्व एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में 2030 तक इसके उन्मूलन के लिए शौचालय का उपयोग बढ़ाने की बहुत आवश्यकता है.

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 67 करोड़ 30 लाख लोग खुले स्थानों पर शौच करते हैं जिनमें से 91 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं. नाईजीरिया, तंज़ानिया, मेडागास्कर और नाइजर सहित कई ओशिनिया देशों में भी जनसंख्या वृद्धि के कारण  खुले में शौच करने का चलन बढ़ा है.

खुले में शौच इतनी गंभीर समस्या क्यों है?

बांग्लादेश की ही तरह अन्य देशों में भी शौचालय होने से महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान व अन्य समय में भी स्वच्छता रखने में मदद मिलती है.
© WSSCC/Pierre Virot
बांग्लादेश की ही तरह अन्य देशों में भी शौचालय होने से महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान व अन्य समय में भी स्वच्छता रखने में मदद मिलती है.

खुले में शौच मनुष्य की गरिमा, स्वास्थ्य और कल्याण का अपमान है – ख़ासतौर पर लड़कियों और महिलाओं का. उदाहरण के लिए, दुनिया भर में लाखों लड़कियां और महिलाऐं मासिक धर्म के समय एकांत में शौच के लिए नहीं जा पातीं. खुले में शौच करने से उनकी सुरक्षा को भी ख़तरा होता है और यौन शोषण का शिकार होने की आशंका भी रहती है – साथ ही सबके स्वास्थ्य के लिए भी ये बहुत नुक़सानदेह है. 

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ) के अनुसार, एक ग्राम मल में 1 करोड़ वायरस, एक लाख बैक्टीरिया और एक हज़ार परजीवी सिस्ट पाए जाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार, स्वच्छता और साफ़-सफ़ाई की आदतें न होने से (जैसे कि शौच के बाद और खाने से पहले साबुन से हाथ नहीं धोना) सालाना 8 लाख से ज़्यादा लोग मौत का शिकार हो जाते हैं – जोकि मलेरिया से होने वाली मौतों की संख्या  से भी अधिक है.

इसे रोकना इतना मुश्किल क्यों था?

सदियों से खुले में शौच का प्रचलन रहा है; कई जगहों पर ये समाजों की संस्कृति का हिस्सा बन चुका है. इसे रोकने के लिए पूरे समुदाय के व्यवहार में एक निरंतर बदलाव की आवश्यकता है ताकि शौचालय का उपयोग करने का एक नया आदर्श बने और सभी को स्वीकार्य हो. खुले में शौच को समाप्त करने के लिए शौचालय और अन्य बुनियादी सेवाओं के निर्माण, रख-रखाव और उपयोग में निरंतर निवेश की आवश्यकता होती है.

शौचालय के उपयोग से लोगों के जीवन में सुधार कैसे होता है?

हर रोज़ घरों और कामकाज के स्थानों, स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों और बाज़ारों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर शौचालय उपयोग करने की सुविधा एक बुनियादी मानव अधिकार है. स्वच्छता में सभी के लिए गुणवत्ता, न्याय और गरिमा का समर्थन करने वाले परिवर्तनकारी लाभ हैं.

स्वच्छता किस हद तक समग्र विकास का केंद्र है?

बुनियादी साफ़-सफ़ाई और स्वच्छता सेवाओं की कमी पानी और स्वच्छता के मानवाधिकारों का उल्लंघन है. इनमें मासिक धर्म के दौरान स्वास्थ्य और स्वच्छता बनाए रखने के लिए मौजूद विकल्पों की जानकारी का नहीं होना भी शामिल है. साथ ही खुले में शौच करना स्वास्थ्य, कामकाज, एक स्तरीय  सभ्य जीवन, भेदभाव रहित, मानव गरिमा, सुरक्षा, सूचना और भागीदारी के अधिकारों के भी विरुद्ध है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनीसेफ़ की रिपोर्ट के अनुसार 2016 तक विश्व स्तर पर 21 प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधाओं में स्वच्छता सेवाओं का अभाव था, जिसका सीधा असर डेढ़ अरब लोगों पर पड़ा. दुनिया भर में 62 करोड़ से ज़्यादा बच्चों के लिए स्कूलों में बुनियादी स्वच्छता सेवाएं नहीं थीं.

स्वास्थ्य एजेंसी का अनुमान है कि पानी और शौचालय में निवेश किए गए प्रत्येक 1 डॉलर से, मृत्यु से बचाव और उत्पादकता बढ़ाकर व चिकित्सा लागत पर 4 डॉलर तक की बचत के रूप में फ़ायदा होता है. स्वच्छता को बढ़ावा देना सबसे अधिक लाभदायक प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगों में से एक माना जाता है. इसके विपरीत, स्वच्छता की कमी आर्थिक विकास के रास्ते में बाधा खड़ी करती है.

खुले में शौच की समाप्ति में संयुक्त राष्ट्र का क्या योगदान है?

सदस्य देश और संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां ​​खुले में शौच को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और विकासशील देशों में वित्तीय संसाधनों, क्षमता-निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के रूप में मदद दे रहीं है, ताकि सभी को सुरक्षित, साफ़, सुलभ और सस्ता पेयजल व  स्वच्छता उपलब्ध हो सकें.

साफ़ पानी और स्वच्छता पर आधारित टिकाऊ विकास लक्ष्य 6, सभी के लिए पर्याप्त और न्यायसंगत स्वच्छता की हिमायत करता है और खुले में शौच का अंत करने व महिलाओं, लड़कियों और कमज़ोर वर्गों के लोगों की ज़रूरतों पर विशेष ध्यान केंद्रित करता है.

अब सरकारों और संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के सहयोगियों के पास इस मुद्दे से निपटने के लिए रोडमैप तैयार है और स्वच्छता परिषद (WSSCC) एक दशक से समुदाय आधारित समाधान के लिए अनुदान दे रहा है. लेकिन फिर भी अभी एसडीजी का लक्ष्य  पूरा होता नज़र नहीं आ रहा है.

अनुमान है कि बुनियादी स्वच्छता सेवाएं प्रदान करने के लिए वैश्विक वार्षिक लागत लगभग साढ़े 19 अरब डॉलर है, लेकिन अभी तक इसके लिए पर्याप्त धनराशि नहीं मिल पाई है. संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास लक्ष्यों की 2019 की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि हालांकि कई एसडीजी क्षेत्रों में प्रगति हो रही है, लेकिन सामूहिक वैश्विक कार्रवाई पूर्ण नहीं है. इससे दुनिया के सबसे कमज़ोर लोगों और देशों को सबसे ज़्यादा नुक़सान उठाना पड़ता है.

 

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