क़तर से 'जबरन बंदीकरण' के चलन को बदलने का आहवान
संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक समूह ने क़तर सरकार से आग्रह किया है कि उसे अपने यहाँ लोगों को जबरन बंदी बनाए जाने के चलन से महफ़ूज़ रखने के लिए बहुत बड़े बदलाव करने होंगे.
संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के इस कार्यदल ने क़तर का 10 दिन का दौरा करके ये आकलन गुरूवार को एक वक्तव्य के रूप में जारी किया. इस कार्यदल ने क़तर की 10 दिन की यात्रा के दौरान 200 से भी ज़्यादा ऐसे लोगों मुलाक़ात की जिन्हें उनकी स्वतंत्रता से वंचित किया गया है.
इस कार्यदल ने अपनी प्रारंभिक निष्कर्ष पेश करते हुए कहा, "क़र्ज़, व्याभिचार या परस्त्रीगमन, विवाहेतर संबंध और मादक पदार्थों के इस्तेमाल के मामलों में व्यक्तियों को बंदी बनाया जाना एक तरह सामान्य नियम बना हुआ है."
#Qatar needs urgent paradigm shift to protect people from arbitrary detention. Recent accession to the International Covenant on Civil and Political Rights #ICCPR is a significant step & its implementation is now key. – UN experts on arbitrary detention 👉 https://t.co/RXgqzgrOoP pic.twitter.com/2OwBmwHelA
UN_SPExperts
क़तर ने सिविल व राजनैतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र - the International Covenant on Civil and Political Rights मई 2018 में स्वीकृत की थी. क़तर के इस क़दम को कार्यकारी दल ने एक सराहनीय क़दम क़रार दिया था लेकिन ये भी कहा है कि इस प्रतिज्ञापत्र को लागू किया जाना बहुत महत्वपूर्ण है.
इस मानवाधिकार संधि के तहत लोगों का निजी स्वतंत्रता का अधिकार व निष्पक्ष क़ानूनी सहायता व निष्पक्ष मुक़दमे का अधिकार सुनिश्चित होता है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, "क़तर ने अंतरराष्ट्रीय सिविल व राजनैतिक अधिकारों के प्रतिज्ञापत्र को मंज़ूरी देकर अपने यहाँ रहने वाले सभी लोगों के अधिकारों की सुरक्षा करने की गारंटी दी है."
"अब क़तर की ये ज़िम्मेदारी है कि देश के सभी सरकारी संस्थानों की निगरानी में रहने वाले और निजी पार्टियों द्वारा बंदी बनाकर रखे गए तमाम लोगों को उनके अधिकारों का उल्लंघन होने से सुरक्षा मुहैया कराई जाए."
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने क़तर की सरकार से इस प्रतिज्ञापत्र के प्रावधान पूरी तरह से लागू करने के लिए ठोस क़दम उठाने का आग्रह किया है. साथ ही ये क़दम देश की क़ानूनी प्रणाली में शामिल होने चाहिए क्योंकि मौजूदा क़ानूनों के तहत किसी को जबरन बंदी बनाए जाने के ख़िलाफ़ कोई ठोस प्रावधान मौजूद नहीं हैं.
इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, "मौजूदा ऐसे क़ानून जिनमें लोगों को न्यायिक प्रक्रिया के नियंत्रण व क़ानूनी प्रक्रिया की गारंटी के बिना ही किसी व्यक्ति को जबरन बंदी बनाए रखने का अधिकार देते हैं, उन्हें ख़त्म किया जाना ज़रूरी है. क्योंकि इन क़ानूनी प्रावधानों के कारण प्रभावित लोग क़ानून की सुरक्षा के दायरे से बाहर हो जाते हैं."
विशेषज्ञों का कहना था, "हम क़तर की सरकार से अनुरोध करते हैं कि समुदाय की सुरक्षा क़ानून, राष्ट्र सुरक्षा क़ानून और आतंकवाद निरोधक क़ानून को तुरंत समाप्त किया जाए."
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों के जबरन बंदीकरण मामले पर इस कार्यकारी दल में स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ शामिल होते हैं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किया जाता है. ये नियुक्ति विशेष प्रक्रिया के तहत की जाती है जिसके बारे में ज़्यादा जानकारी यहाँ समझी जा सकती है.
इस कार्यदल के सदस्यों ने क़तर सरकार के आमंत्रण पर वहाँ का दौरा किया और सकारी अधिकारियों, सिविल सोसायटी व अन्य प्रासंगिक गुटों के सदस्यों व प्रतिनिधियों, जजों और वकीलों से मुलाक़ात की.
इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने राजधानी दोहा में ऐसे 12 स्थानों की यात्रा की जहाँ लोगों की निजी स्वतंत्रता सीमित है. 3 से 14 नवंबर तक हुई इस यात्रा के दौरान इस कार्यदल के सदस्यों ने जजों, वकीलों,
इनमें कुछ पुलिस स्टेशन और मुक़दमा चलाए जाने से पहले अभियुक्तों को रखे जाने वाले बंदीग्रह, जेलें, लोगों को अन्य देशों को भेजने के लिए रखने वाले स्थान और मनोवैज्ञानिक अस्पताल शामिल थे.
मानवाधिकार विशेषज्ञों के इस दल ने राजधानी दोहा में हमाद मनोवैज्ञानिक अस्पताल में इलाज पद्यति की सराहना करते हुए कहा कि वहाँ निजी स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी जाती है जिसमें लोगों को लांछनों के सदमों से निकाला जाता है.
हालाँकि विशेषज्ञों ने कुछ निजी लोगों द्वारा बंदी बनाए गए लोगों की आज़ादी छीनने के चलन के बारे में गंभीर चिंताएँ भी व्यक्त कीं. जिन मामलों में महिलाओं और आप्रवासी कामगारों के अधिकार बुरी तरह प्रभावित होते हैं. आप्रवासी कामगारों को अपने नियोक्ता को छोड़कर जाने की इजाज़त नहीं होती है.
इस मामले पर मानवाधिकार विशेषज्ञों की विस्तृत रिपोर्ट सितंबर 2020 में मानवाधिकार परिषद के सामने पेश की जाएगी.