किसी भी अन्य बीमारी की तुलना में न्यूमोनिया है सबसे ज़्यादा घातक

न्यूमोनिया एक ऐसी बीमारी है जिसकी आसानी से रोकथाम की जा सकती है. इसके बावजूद विश्व में किसी अन्य बीमारी की तुलना में बच्चों की सबसे ज़्यादा मौतें इसी बीमारी से हो रही हैं – हर 39 सेकेंड में एक मौत. संयुक्त राष्ट्र और साझेदार संगठनों ने मंगलवार को ‘विश्व न्यूमोनिया दिवस’ पर चेतावनी जारी की है कि इन सर्वविदित तथ्यों के बावजूद बच्चों के जीवन की रक्षा के लिए पर्याप्त धनराशि का अभाव है.
इस बीमारी पर क़ाबू पाने के लिए गठित एक गठबंधन के समन्वयक लेथ ग्रीनस्लेड ने एक साझा वक्तव्य में कहा, “बच्चों की मौत के लिए सबसे बड़ा कारण रहे न्यूमोनिया की दशकों से अनदेखी होती रही है जिसकी क़ीमत दुनिया भर के कमज़ोर बच्चों ने चुकाई है.” ये बयान संयुक्त राष्ट्र बाल कोष और अन्य साझेदार संगठनों ने संयुक्त रूप से जारी किया है.
“समय आ गया है कि सरकारें, संयुक्त राष्ट्र और बहुपक्षीय एजेंसियां, कंपनियां और ग़ैरसरकारी संगठन मिलकर न्यूमोनिया से लड़ें और इन बच्चों की रक्षा करें.”
Every day, nearly 2,200 children under the age of five die from pneumonia, a curable and mostly preventable disease. Strong global commitment and increased investments are critical to the fight against it. #WorldPneumoniaDay https://t.co/MbxzUtHsUJ
unicefchief
वर्ष 2018 में न्यूमोनिया के कारण आठ लाख बच्चों की मौत हुई. मलेरिया, हैज़ा जैसी अन्य संक्रामक बीमारियों से होने वाली मौतों की संख्या में गिरावट दर्ज की जा रही है लेकिन घातक न्यूमोनिया को रोकने के मामलों में प्रगति की रफ़्तार धीमी है.
यूएन एजेंसी और साझेदार संगठनों ने कहा है कि ऐसा लगता है कि मानो न्यूमोनिया को भुला दिया गया है जबकि पांच साल से कम उम्र के बच्चों की कुल मौतों के 15 फ़ीसदी मामले न्यूमोनिया से संबंधित हैं.
फिर भी संक्रामक बीमारियों पर रिसर्च के लिए धनराशि का महज़ तीन फ़ीसदी हिस्सा न्यूमोनिया के लिए आबंटित किया जाता है.
बताया गया है कि बच्चों में न्यूमोनिया के कारण मौत और ग़रीबी में संबंध स्पष्ट है. पीने के साफ़ पानी का अभाव, पर्याप्त देखभाल का ना होना, अल्पपोषण और घरेलू वायु प्रदूषण से यह बीमारी होती है.
जब बच्चे इस बीमारी का शिकार बनते हैं तो बैक्टीरिया, वायरस के कारण बच्चों को सांस लेने में मुश्किलें होती हैं और उनके फेफड़ों में पस और द्रव्य भर जाता है. इस बीमारी के गंभीर मामलों में ऑक्सीजन की ज़रूरत है जो ग़रीब देशों में निर्धन परिवारों को उपलब्ध नहीं होती.
नाईजीरिया इस बीमारी से बुरी तरह पीड़ित देशों में शामिल है और वर्ष 2018 में एक लाख 62 हज़ार बच्चों की मौत न्यूमोनिया से हुई - यानी औसतन हर दिन 443 बच्चों की मौत.
न्यूमोनिया से वर्ष 2018 में भारत में एक लाख 27 हज़ार मौतें, पाकिस्तान में 58 हज़ार, कॉंगो लोकतांत्रिक गणराज्य में 40 हज़ार मौतें हुईं और इथियोपिया में 32 हज़ार बच्चों की जान गई.
न्यूमोनिया से होने वाली कुल मौतों में आधी से ज़्यादा मौतें इन्हीं पांच देशों में हुईं.
टीकाकरण से इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है और समय पर पता चलने से सामान्य एंटीबायोटिक दवाईयों से इलाज किया जा सकता है लेकिन फिर भी करोड़ों बच्चों को वैक्सीन नहीं दी जा रही है.
विश्व में 32 फ़ीसदी न्यूमोनिया के संदिग्ध मामलों में बच्चों को अस्पताल नहीं ले जाया जाता और ग़रीब व कम आय वाले देशों में यह संख्या घटकर 40 फ़ीसदी हो जाती है.
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फ़ोर का कहना है कि किफ़ायती, रक्षात्मक और रोकथाम के उपायों से ही लाखों जानें बचाई जा सकती हैं.
वैक्सीन एलायंस के सीईओ डॉक्टर सेठ बर्केले का कहना है कि कम आय वाले देशों में वैक्सीन की कवरेज वैश्विक औसत से अब ज़्यादा है. लेकिन इसके बावजूद आसानी से पता चल जाने वाली और इलाज योग्य इस बीमारी से इतनी बड़ी संख्या में मौतें होना हैरान कर देने वाली बात हैं.
इस बीमारी से बुरी तरह प्रभावित देशों में कार्यरत संगठन वहाँ की सरकारों से अनुरोध कर रहे हैं कि न्यूमोनिया पर नियंत्रण और उसकी रोकथाम से जुड़ी रणनीतियाँ विकसित करके मुस्तैदी से लागू की जाएँ.
साथ ही अमीर देशों और दानदाताओं से आग्रह किया गया है कि वैक्सीन की क़ीमत कम की जानी चाहिए और कवरेज का दायरा बढ़ाया जाना होगा.
संयुक्त कार्रवाई के प्रयासों के तहत स्वास्थ्य और बच्चों के मामलों पर काम कर रहे प्रमुख संगठन अगले वर्ष जनवरी में स्पेन के बार्सिलोना शहर में विश्व नेताओं की एक बैठक, Global Forum on childhood Pneumonia, का आयोजन करेंगे.
वर्ष 2030 तक न्यूमोनिया की रोकथाम, इलाज व निदान के लिए और टिकाऊ विकास लक्ष्यों के तहत सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को हासिल करने के लिए एक करोड़ 80 लाख स्वास्थ्यकर्मियों की आवश्यकता है.