बहुपक्षवाद को 'मौजूदा व भविष्य की चुनौतियों' से लड़ना होगा

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है दुनिया में चुनौतियों का स्वरूप बदल रहा है और नए संकट उभर रहे हैं. ऐसी स्थिति में बहुपक्षवादी व्यवस्था की सफलता के लिए यह ज़रूरी है कि उसमें मौजूदा चुनौतियों के अनुरूप बदलाव किए जाएं. 1918 में पहले विश्व युद्ध की समाप्ति की स्मृति में विश्व भर में समारोह आयोजित हो रहे हैं और इसी सिलसिले में महासचिव ने सोमवार को ‘पेरिस पीस फ़ोरम’ को संबोधित किया.
यूएन प्रमुख ने मौजूदा दौर की तुलना 20वीं शताब्दी के भू-राजनैतिक परिदृश्य से करते हुए कहा कि हमारी दुनिया मुश्किलों में घिरी है. यह अब दो ध्रुवीय या एक ध्रुवीय तो नहीं है लेकिन वास्तविक मायनों में अभी बहुध्रुवीय नहीं हो पाई है. शक्ति का संतुलन लगातार बदल रहा है.
यूएन प्रमुख ने कहा कि अक्सर संप्रभु देशों के बीच युद्ध तो नहीं देखे जाते लेकिन राज्यसत्ता से इतर हथियारबंद गुटों और लड़ाकों से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.
हिंसक संघर्ष में प्रत्यक्ष तौर पर शामिल पक्षों के अलावा अन्य ताक़तें भी अक्सर हस्तक्षेप करती हैं जिससे क्षेत्रीय अस्थिरता को ख़तरा पैदा हो जाता है.
The world is fracturing, but no country can repair the cracks in isolation.We need more international cooperation - working closer with people and adapting to the challenges of today and tomorrow.#ParisPeaceForumhttps://t.co/TdEBf7y6v9 pic.twitter.com/nkAyYupuDE
antonioguterres
महासचिव गुटेरेश ने चिंता जताई कि विश्व में बड़ी शक्तियों के आपसी रिश्ते पहले से कहीं ज़्यादा कटु हो गए हैं. “इसी का नतीजा है कि सुरक्षा परिषद कई अवसरों पर निर्णय लेने में अक्षम नज़र आती है, और जब परिषद की ओर से कार्रवाई होती भी है तो बाहरी हस्तक्षेप के कारण उसके प्रस्तावों को लागू करना और भी ज़्यादा मुश्किल हो जाता है.”
उन्होंने आगाह किया कि हिंसक संघर्ष अब आपस में जुड़ते जा रहे हैं जिससे वैश्विक आतंकवाक का एक नया स्वरूप आकार ले रहा है. लीबिया में लड़ाई से साहेल और लेक चाड क्षेत्र पर असर इसी का एक उदाहरण है.
परमाणु प्रसार की आशंका वैश्विक सुरक्षा के लिए ख़तरा बढ़ा रही है इसलिए उसकी रोकथाम पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा अहम हो गई है.
यूएन प्रमुख ने कहा कि विश्व को पांच बड़े जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है. पहला जोखिम - आर्थिक, तकनीकी भू-रणनीतिक है. इससे दुनिया के दो हिस्सों में बंट जाने का ख़तरा है जिसमें दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं विश्व को आपस में बांट लेंगी और अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में ख़ुद के वित्तीय व आर्थिक नियम लागू करेंगी.
“इस बड़े विभाजन को ना होने देने, वैश्विक प्रणाली की रक्षा करने, क़ानून का सम्मान करने वाली एक सार्वभौमिक अर्थव्यवस्था और मज़बूत बहुपक्षीय संस्थाओं वाली बहुध्रुवीय दुनिया को बनाए रखने के लिए हमें हरसंभव प्रयास करना होगा.”
दूसरा जोखिम सरकारों और नागरिकों के बीच सामाजिक अनुबंध (सोशल कॉन्ट्रैक्ट) पर मंडरा रहा है जिसकी वजह से विश्व के कई देशों में प्रदर्शन हो रहे हैं. यह दर्शाता है कि संस्थाओं और राजनैतिक नेताओं में भरोसा घट रहा है. “लोग पीड़ा में हैं और वे अपनी आवाज़ सुनाना चाहते हैं.”
इसी से जुड़ा तीसरा जोखिम है जो एकजुटता के अभाव से पनप रहा है. इसमें अल्पसंख्यकों, शरणार्थियों, प्रवासियों, महिलाओं व बच्चों को विशेष तौर पर जूझना पड़ रहा है.
“विदेशियों के डर का इस्तेमाल राजनैतिक हितों के लिए हो रहा है. असहिष्णुता व नफ़रत सामान्य बात होती जा रही है. जिन लोगों ने अपना सब कुछ ख़ो दिया है उन पर विश्व भर की समस्याओं का ठीकरा फोड़ा जा रहा है. इससे राजनैतिक जीवन में ध्रुवीकरण बढ़ता है और विभाजित समाजों का ख़तरा भी.”
यूएन प्रमुख ने चौथे जोखिम के रूप में जलवायु संकट का नाम लिया जिससे निपटने और मानव सभ्यता को बचाने के लिए प्रभावी कार्रवाई का समय निकला जा रहा है. उनके मुताबिक़ तापमान में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी, पिघलते ग्लेशियरों, फैलते मरुस्थल और विनाशकारी तूफ़ानों से दुनिया के कई हिस्सों में लोगों को तबाही का सामना करना पड़ रहा है.
पांचवें जोखिम से उनका आशय तकनीक के प्रसार में असमानता से था. उनके मुताबिक़ आधुनिकतम तकनीकों से शांति व टिकाऊ विकास के लिए नई संभावनाएं पैदा हुई हैं लेकिन असमानता का जोखिम भी बढ़ रहा है.
यूएन प्रमुख ने कहा है अगर हम कार्रवाई करने में विफल रहते हैं तो इतिहास याद रखेगा कि चुनौतियों से निपटने के माध्यमों के बावजूद हमने कुछ ना करने का निर्णय लिया. उन्होंने ध्यान दिलाया कि समाधान मौजूद हैं लेकिन उन्हें इस्तेमाल में लाने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है.
महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि तनाव और हिंसक संघर्ष की बुनियादी वजहों को बहुपक्षवाद के ज़रिए ही सुलझाया जा सकता है.
“मैंने संयुक्त राष्ट्र में जो सुधार शुरू किए हैं उनके मूल में यही विचार हैं. उनका मक़सद हमारी गतिविधियों के केंद्र में संकट की रोकथाम और मध्यस्थता को लाना है. साथ ही हिंसक चरमपंथ से निपटने और अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा को मज़बूत बनाने के लिए एक फ़्रेमवर्क तैयार करना है जिसे अफ़्रीकी संघ और योरोपीय संघ जैसे क्षेत्रीय संगठनों के साथ मिलकर तैयार किया जाएगा.”
कार्बन उत्सर्जन कम करने, टिकाऊ विकास के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने और तबाही को टालने के लिए अपने वादों का सम्मान किया जाना होगा.
उन्होंने नफ़रत भरे भाषणों और सूचना के ग़लत इस्तेमाल के रुझानों पर कहा है कि वह यूएन को एक ऐसी जगह बनाना चाहते हैं जिसमें सरकारें, कंपनियां, रिसर्चर और नागरिक समाज एक साथ आकर ख़तरों की पहचान कर सकें और उनसे निपटने के सर्वश्रेष्ठ तरीक़ आज़मा सकें.