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प्राकृतिक आपदाएँ अक्सर बताकर तबाही नहीं करती, एहतियात ज़रूरी

इंडोनेशिया में दिसंबर 2018 में आई भीषण सूनामी में भारी तबाही हुई थी. प्रभावित लोग लापता परिजनों और सामान की तलाश करते हुए.
© UNICEF/Arimacs Wilander
इंडोनेशिया में दिसंबर 2018 में आई भीषण सूनामी में भारी तबाही हुई थी. प्रभावित लोग लापता परिजनों और सामान की तलाश करते हुए.

प्राकृतिक आपदाएँ अक्सर बताकर तबाही नहीं करती, एहतियात ज़रूरी

जलवायु और पर्यावरण

समुद्री तूफ़ान यानी सूनामी वैसे तो कभी कभी ही दस्तक देते हैं लेकिन जब आते हैं तो भारी तबाही छोड़कर जाते हैं और उनके पदचिन्ह अक्सर भीषण विनाशकारी होते हैं जिनसे जान-माल का भारी नुक़सान होता है. आपदा जोखिम प्रबंधन के लिए संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि मामी मिज़ोतूरी ने ये शब्द 5 नवंबर को विश्व सूनामी जागरूकता दिवस के अवसर पर कहे हैं.

आपदा प्रबंधन पर संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अधिकारी ने मंगलवार को कहा कि विश्व की लगभग आधी आबादी वर्ष 2030 तक ऐसे समुद्री तटवर्ती इलाकों में रह रही होगी जो सूनामी आने की आशंका वाले इलाक़े होंगे.

ऐसे हालात में सूनामी की पहले से चेतावनी या जानकारी देने वाला सिस्टम के साथ-साथ ऐसा बुनियाद ढाँचा विकसित करना होगा जो सूनामी के असर को कुछ हद तक सहन कर सके. ऐसा कहना लोगों की ज़िंदगियाँ बचाने और आर्थिक नुक़सान को कम करने के लिए बहुत अहम होगा.

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संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 4 नवंबर को विश्व सूनामी जागरूकता दिवस मनाने का निर्णय 2015 में लिए था.

मामी मिज़ोतूरी ने जलवायु संबंधी आपदाओं की ज़्यादा आशंका वाले इलाक़ों में मज़बूत शहर व बुनियादी ढाँचा तैयार करने के लिए लागत और बचत का गणित भी पेश किया.

यूएन न्यूज़ के साथ बातचीत में मामी मिज़ोतूरी ने कहा कि ज़्यादातर देश एहतियाती उपायों में ख़र्च किए गए एक डॉलर के बदले कम से कम चार गुना आर्थिक फ़ायदा देखेंगे.

इसलिए, “हम अगर ये जान सकेंगे कि समाजों को किस तरह मज़बूत और सहनशील बनाना है तो प्राकृतिक हादसों को वास्तव में मुसीबत या तबाही का रूप नहीं लेना होगा.”

संयुक्त राष्ट्र के पास मौजूद आँकड़ों के अनुसार पिछली शताब्दी में सूनामी की लगभग 58 विभिन्न घटनाओं में लगभग दो लाख 60 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी, औसतन 4600 प्रति आपदा.

किसी अन्य प्राकृतिक हादसे में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत नहीं हुई है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने विश्व सूनामी जागरूकता दिवस के मौक़े पर अपने संदेश में कहा है कि दिसंबर 2004 में भारतीय महासागर में आई भीषण सूनामी को 15 वर्ष बीत चुके हैं जिसने 14 देशों में दो लाख 30 हज़ार से भी ज़्यादा लोगों की जान ले ली थी.

दुनिया भर में अब तमाम समुद्रों के मिज़ाज को पहले से भाँपने वाली टैक्नोलॉजी में बेहतरी आई है, जिसके परिणामस्वरूप बहुत सी जानें बचाई जा सकी हैं.

उनका कहना है कि इसके बावजूद “ख़तरा अब भी बहुत बड़ा है. पिछले दो दशकों में बढ़ते आर्थिक नुक़सानों से स्पष्ट है कि हमने अभी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में सक्षम बुनियादी ढाँचा विकसित करने के लिए पर्याप्त और समुचित सबक़ सीखने की महत्ता को नहीं पहचाना है.”

यूएन प्रमुख ने कहा कि जलवायु संकट के कारण समुद्रों का बढ़ता जल स्तर सूनामी की तबाही क्षमता और ज़्यादा बढ़ा सकता है. जबकि ये भी ध्यान में रखने की बात है कि लगभग 68 करोड़ लोग ऐसे समुद्री तटवर्ती इलाक़ों में रहते हैं जिनका सतही स्तर काफ़ी नीचा है.

मज़बूत निर्माण

जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) की सितंबर 2019 में आई एक रिपोर्ट में विश्व भर में तापमान वृद्धि, जल आपूर्ति में बदलाव और जलवायु संकट की गहनता की तरफ़ ध्यान दिलाया गया है.

इसी संदर्भ में ये संभावना भी व्यक्त की गई है कि वर्ष 2050 तक समुद्रों के बढ़ते जल स्तर से संबंधित कम से कम एक घटना हर साल होगी.

संयुक्त राष्ट्र की आपदा जोखिम प्रबंधन प्रमुख मामी मिज़ोतूरी ने सवाल के अंदाज़ में कहा कि क्या हम किसी ऐसे देश की निशानदेही कर सकते हैं जो किसी तरह के संकट का सामना ना कर रहा हो.

उनका कहना था कि अब पहले के मुक़ाबले ज़्यादा आबादी समुद्री तटवर्ती इलाक़ों में रह रही है, इसलिए प्राकृतिक आपदाओं के विनाशकारी दस्तक देने से पहले ही उनकी आमद के बारे में जानकारी हासिल करना बहुत ज़रूरी होगा.

और जब हम विनाशकारी सूनामी की बात करते हैं तो पूर्व चेतावनी वाली प्रणाली बनाना और मज़बूत व सहनशील शहरों का निर्माण करना जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचने के उपायों में बहुत ज़रूरी होगा.