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महिलाओं व लड़कियों के लिए 'बदलाव की रफ़्तार धीमी'

आइवरी कोस्ट में संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षा अभियानों में कार्यरत महिला शांतिरक्षक एक गश्त के दौरान बच्चों से मिलते हुए.
ONUCI/Patricia Esteve
आइवरी कोस्ट में संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षा अभियानों में कार्यरत महिला शांतिरक्षक एक गश्त के दौरान बच्चों से मिलते हुए.

महिलाओं व लड़कियों के लिए 'बदलाव की रफ़्तार धीमी'

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि महिलाएँ, शांति व सुरक्षा पर आधारित एजेंडा यूएन की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में बने रहना चाहिए. उन्होंने सुरक्षा परिषद में मंगलवार को एक खुली बहस के दौरान दुख ज़ाहिर करते हुए कहा कि संकल्पों के बावजूद दुनिया भर में वास्तविक बदलाव अभी नहीं दिखाई दे रहा है और परिवर्तन की गति धीमी है.

यूएन प्रमुख के मुताबिक़ “बदलाव ऐसी गति से हो रहा है जो उन महिलाओं व लड़कियों के लिए कम है जिनका जीवन उस पर निर्भर करता है. ”

यूएन प्रमुख ने सुरक्षा परिषद को ध्यान दिलाया कि दो दशक पहले ‘प्रस्ताव 1325’ में स्वीकार किया गया था कि सशस्त्र संघर्षों का महिलाओं व लड़कियों पर ज़्यादा असर पड़ता है – इसके बावजूद महिलाओं को अब भी शांति और राजनैतिक प्रक्रिया से बाहर रखा जाता है.

“नाज़ुक और हिंसक संघर्ष प्रभावित परिस्थितियों में द्विपक्षीय मदद का महज़ 0.2 फ़ीसदी हिस्सा ही महिला संगठनों को मिल पाता है.”

उन्होंने क्षोभ जताते हुए कहा कि महिला मानवाधिकार व शांति कार्यकर्ताओं और मानवीय राहतकर्मियों पर हमले बढ़ रहे हैं और यौन व लिंग आधारित हिंसा का इस्तेमाल युद्ध के हथियार के रूप में किया जा रहा है.

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महासचिव गुटेरेश ने स्पष्ट किया कि ऐसे हथियारबंद गुटों की संख्या बढ़ रही है जो लैंगिक असमानता का इस्तेमाल रणनीतिक उद्देश्यों के लिए करते हैं और स्त्री-द्वेष उनकी विचारधारा के मूल में है.

उन्होंने बताया कि यह तथ्य भी सर्वविदित है कि हिंसक संघर्ष की सबसे बड़ी क़ीमत महिलाओं और लड़कियों को ही चुकानी पड़ती है.

पूर्वोत्तर सीरिया में हालात का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हज़ारों लड़कियों व महिलाओं को हिंसा से बचने के लिए भागना पड़ा है जिनकी मदद करने से वह कभी पीछे नहीं हटेंगे.

यूएन प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि शांति व पुनर्निर्माण प्रक्रियाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र लगातार प्रयास कर रहा है.

उदाहरण के तौर पर यमन में महिलाओं का एक तकनीकी सलाहकार समूह स्थापित किया गया है ताकि उनके विचारों को सम्मिलित किया जा सके.

उन्होंने कहा कि महिलाएँ, शांति व सुरक्षा के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में नई और मज़बूत नीतियां तैयार की जा रही हैं. साथ ही विशेष राजनैतिक मिशनों और दूतों से कहा गया है कि नियमित रूप से ऐसी रिपोर्टें भेजी जाएं जिनमें शांति प्रक्रिया के हर चरण में महिलाओं की प्रत्यक्ष हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर जानकारी साझा की जाए.

शांतिरक्षा अभियानों में भी यौन उत्पीड़न, शोषण का अंत करने व महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर ज़ोर दिया जा रहा है.

यूएन प्रमुख का कहना था, “यौन शोषण व उत्पीड़न के मामलों में पचास फ़ीसदी की कमी आई है, और हम अंतत: इन अभियानों के सैन्य और पुलिस अंगों में महिलाओं की संख्या बढ़ा रहे हैं.”

उन्होंने बताया कि लैंगिक संतुलन हासिल करने के लिए वह आपात क़दम उठा रहे हैं और कई मिशनों में महिलाएँ प्रमुख और उपप्रमुख के तौर पर नियुक्त की गई हैं.

उन्होंने सुरक्षा परिषद को बताया कि 150 देशों के समर्थन प्राप्त ‘एक्शन फ़ॉर पीसकीपिंग’ के आठ स्तंभों में महिलाएँ, शांति व सुरक्षा भी शामिल है.

उन्होंने संबोधन समाप्त करते हुए कहा कि अगर कोई क़सर बाक़ी रह जाती है तो उसके नतीजे समाज के सभी सदस्यों को भुगतने होते हैं. उसी तरह महिला अधिकारों के लिए कार्रवाई ना कर पाने की क़ीमत सभी को चुकानी होगी.

कथनी और करनी में अंतर

संयुक्त राष्ट्र की महिला संस्था की कार्यकारी निदेशक पुमज़िले म्लाम्बो-न्गुका ने सुरक्षा परिषद को एक ताज़ा रिपोर्ट सौंपते हुए बताया कि समर्थन के प्रस्तावों और वास्तविक स्थिति में बड़ा अंतर है.

“हम अब भी एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां शांति व राजनैतिक प्रक्रिया और संस्थाओं में महिलाओं को बाहर रखा जाना सहन कर लिया जाता है.”

उन्होंने कहा कि हिंसक संघर्षों के बाद व्यापक पैमाने पर पुनर्निर्माण की ज़िम्मेदारी पुरुष संभालते हैं जबकि महिलाओं की भूमिका महज़ छोटे-मोटे उद्यमों तक ही सीमित रह जाती है.

“निरस्त्रीकरण, हथियार नियंत्रण और सैन्य ख़र्चों के बजाय सामाजिक निवेश करने की नारीवादी संगठनों की पुकारों को अनसुना कर दिया जाता है.”

कार्यकारी निदेशक ने आशा जताई कि महिलाओं की प्रत्यक्ष और अर्थपूर्ण हिस्सेदारी हासिल की जा सकती है लेकिन उसके लिए सुरक्षा परिषद की मज़बूत राजनैतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है.

एक नया प्रस्ताव

सुरक्षा परिषद की बैठक समाप्त होने से पहले प्रस्ताव 2493 पारित किया गया जिसमें महिलाओं, शांति व सुरक्षा के मुद्दे पर प्रगति व रुकावटों के बारे में ज़्यादा जानकारी मांगी गई है. साथ ही नई और उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए सिफ़ारिशें भी शामिल की जाएंगी.

इस प्रस्ताव में लैंगिक और महिला संरक्षण सलाहकारों की नियुक्ति की अपील की गई है ताकि चुनावों की तैयारियों, निरस्त्रीकरण, न्यायिक सुधारों और पुनर्निर्माण प्रक्रियाओं में महिलाओं की पूर्ण व प्रभावी हिस्सेदारी और संरक्षण सुनिश्चित किए जा सकें.

इस प्रस्ताव में सुरक्षा परिषद से संयुक्त राष्ट्र समर्थिक शांति वार्ताओं में महिलाओं के समावेशन के लिए संदर्भ आधारित तरीक़े विकसित किए जाने का अनुरोध किया गया है.