यूएन रिपोर्ट: भोजन की बर्बादी रोकने की पुकार

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (UNFAO) की नई रिपोर्ट दर्शाती है कि मानव उपभोग के लिए पैदा किया जाने वाला एक तिहाई से ज़्यादा भोजन या तो बर्बाद हो जाता है या फिर उसका नुक़सान होता है. इस रिपोर्ट में ऐसे समाधान भी पेश किए गए हैं जिन्हें अपनाए जाने से असरदार ढंग से भोजन की विशालकाय बर्बादी की रोकथाम के साथ-साथ भुखमरी से निपटने और टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने में भी मदद मिलेगी.
यूएन एजेंसी की नई रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ़ फ़ूड एंड एग्रीकल्चर 2019’ के अनुसार उत्पादन के बाद भोजन का नुक़सान और उसकी बर्बादी खेतों में होने वाली गतिविधियों, भंडारण और उसकी ढुलाई के दौरान होती है.
यूएन एजेंसी के महानिदेशक क्यू डोंग्यू ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा है कि एक ऐसे समय जब हम भोजन की बर्बादी रोकने के प्रयासों में प्रगति पथ पर आगे बढ़ रहे हैं, हमारे प्रयास तभी असरदार हो सकते हैं जब समस्या के प्रति हमारी गहन समझ हो. “हम भोजन की बर्बादी कैसे स्वीकार कर सकते हैं जब 82 करोड़ से ज़्यादा लोग दुनिया में हर दिन भूखे रहते हैं.”
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FAO
भोजन की बर्बादी और नुक़सान को रोकने से खाद्य प्रणाली की दक्षता को बढ़ाने और खाद्य उत्पादन से जुड़े ख़र्च को कम करने के साथ-साथ कई टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने में भी मदद मिल सकती है.
इन लक्ष्यों में टिकाऊ जल प्रबंधन (एसडीजी-6), जलवायु परिवर्तन (एसडीजी-13), समुद्री संसाधन (एसडीजी-14) और पारिस्थितिकी तंत्र, वन जैवविविधता (एसडीजी-15) सहित अन्य लक्ष्य शामिल हैं.
भोजन का नुक़सान खाद्य आपूर्ति श्रृंखला (फ़ूड सप्लाई चेन) के विभिन्न चरणों – पैदावार, पशुवध, मछली पकड़ना - में होता है लेकिन उसमें खुदरा स्तर को नहीं मापा जाता. वहीं भोजन की बर्बादी को खुदरा और उपभोग के स्तर पर मापा जाता है.
रिपोर्ट में ज़ोर देकर कहा गया है कि खाद्य आपूर्ति श्रृंखला (फ़ूड सप्लाई चेन) के हर चरण में भोजन बर्बादी को ध्यानपूर्वक मापा जाना चाहिए और इसे सुनिश्चित करने के लिए एक नई पद्धति भी साझा की गई है ताकि सप्लाई चेन में उन चरणों की ख़ासतौर पर पहचान की जा सके जहां नुक़सान ज़्यादा होता है.
रिपोर्ट बताती है कि एक ही प्रकार के भोजन की बर्बादी का स्तर विश्व में क्षेत्रों के हिसाब से बदल जाता है और जहां बर्बादी की मात्रा ज़्यादा है वहां उचित उपायों के ज़रिए उसे रोका जा सकता है.
अनाज और दलहन की तुलना में सप्लाई चेन में फलों और सब्ज़ियों का नुक़सान और बर्बादी आम तौर पर ज़्यादा होती है.
औद्योगिक देशों की तुलना में निम्न आय वाले देशों में ताज़ा फलों और सब्ज़ियों का नुक़सान होने का मुख्य कारण वहां बदहाल बुनियादी ढांचे को बताया गया है.
ऐसे कई देशों में भंडारण के समय बड़ी मात्रा में भोजन का नुक़सान होता है क्योंकि वहां ठंडा वातावरण प्रदान करने वाले गोदामों सहित भंडारण की अन्य पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं.
अधिकांश उच्च-आय वाले देशों में भंडारण की पर्याप्त सुविधा होने के बावजूद नुक़सान होता है क्योंकि कई बार सही तापमान का ख़याल नहीं रखा जाता, गोदामों में तकनीकी ख़राबी पेश आती है या फिर ज़रूरत से ज़्यादा मात्रा में भोजन रखा जाता है.
जिन चरणों पर भोजन की बर्बादी का पैमाना सबसे अधिक है वे खाद्य सुरक्षा पर सबसे अधिक असर पड़ने के कारण हैं जिसके आर्थिक नतीजे भी होते हैं. यह खुदरा और उपभोक्ता के स्तर पर पर होने वाली भोजन की बर्बादी को कम करने की अहमियत को भी दर्शाता है.
रिपोर्ट में देशों से अनुरोध किया गया है कि सभी चरणों में भोजन के नुक़सान और उसकी बर्बादी के मूल कारणों की रोकथाम के लिए प्रयास तेज़ किए जाने चाहिए.
इसके लिए ज़रूरी नीतियों के लिए सुझाव भी प्रदान किए गए हैं. इस नुक़सान और बर्बादी को रोकने में काफ़ी लागत आती है.
यही वजह है कि किसान, आपूर्तिकर्ता और उपभोक्ता बर्बादी को रोकने के लिए तभी क़दम उठाएंगे जब उससे होने वाला फ़ायदा इन प्रयासों की क़ीमत से ज़्यादा हो.
सप्लाई चेन में शामिल सभी हिस्सेदारों को प्रोत्साहन देने के लिए ऐसे विकल्पों की पहचान करनी होगी जिसे अपनाने से उन्हें होने वाले नैट फ़ायदे में वृद्धि हो या मौजूदा फ़ायदों के बारे में जानकारी मुहैया कराई जाए.
भोजन की बर्बादी को रोकने के प्रयासों में ख़र्च के अलावा भी अक्सर कई अन्य अवरोधों का सामना करना पड़ता है.
विकासशील देशों में ऐसे उपाय लागू करने में बड़ी लागत आती है जो निजी क्षेत्र और छोटे व मझोले किसानों के लिए मुश्किल का सबब बनती है.
इस समस्या पर पार पाने के लिए क़र्ज़ की आसान उपलब्धता को अहम समझा गया है.
रिपोर्ट में भोजन की बर्बादी को रोकने के लिए अपनाई जाने वाली नीतियों को स्पष्ट और सुसंगत बनाने के साथ-साथ उनके मूल्यांकन और समीक्षा की अहमियत रेखांकित की गई है ताकि जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके.