जलवायु संकट से जूझते द्वीपीय देशों को अंतरराष्ट्रीय मदद की ज़रूरत

लघु द्वीपीय विकासशील देशों में टिकाऊ विकास लक्ष्यों की दिशा में प्रगति के लिए तत्काल निवेश की आवश्यकता पर बल दिया गया है. शुक्रवार को ‘स्माल आईलैंड डिवैलपिंग स्टेट्स एक्सीलरेटेड मॉडैलिटीज़ ऑफ़ एक्शन’ (समोआ पाथवे) की समीक्षा के लिए हुई बैठक में जलवायु परिवर्तन से जूझते द्वीपीय देशों प्रभावी मदद के रास्तों पर चर्चा हुई.
शुक्रवार को प्रतिनिधियों के सामने युवा पैरोकारों ने उनके देशों के सामने मंडरा रहे ख़तरों को जीवंत रूप से बयां किया.
निजी अनुभवों को साझा करने वाली कहानियों के ज़रिए जलवायु और विकास से जुड़े ऐसे मुद्दे उठाए गए जिनका सामना द्वीपीय देश कर रहे हैं.
इन चुनौतियों में जलवायु परिवर्तन और आर्थिक जोखिम शामिल हैं जो विकास प्रक्रिया में अवरोध पैदा कर सकते हैं.
‘स्माल आईलैंड डिवैलपिंग स्टेट्स एक्सीलरेटेड मॉडैलिटीज़ ऑफ़ एक्शन’ (समोआ पाथवे) पर सितंबर 2014 में सहमति हुई थी जिसके ज़रिए द्वीपीय देशों की विकास के लिए विशिष्ट ज़रूरतों और उनकी संवेदनशीलताओं को देखते हुए दुनिया का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया गया.
इस योजना को पारित किए जाने के पांच साल बाद इसे लागू करने की प्रक्रिया की समीक्षा के लिए न्यूयॉर्क में 27 सितंबर को विश्व नेता एकत्र हुए.
उन्होंने माना कि लघु द्वीपीय विकासशील देशों में टिकाऊ विकास के लिए प्रगति के लिए तत्काल निवेश की आवश्यकता है.
And that's a wrap on the #SamoaPathway Midterm Review! World leaders said progress toward sustainable development in small island developing States will require a major increase in urgent investment. Recap 👉🏽 https://t.co/NrmC1L4Bti pic.twitter.com/lUCkQE5Wdb
SustDev
कई द्वीपीय देश पर्यावरणीय ख़तरों, आर्थिक संकटों, खाद्य असुरक्षा और अन्य चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जिनसे वहां स्थिरता के लिए ख़तरा बना हुआ है.
सामाजिक समावेशन, लैंगिक समानता, ग़रीबी और बेरोज़गारी को दूर करने में कुछ हद तक सफलता मिली है लेकिन असमानता अब भी समस्या बनी हुई है.
इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव जीवन और संपत्ति को नुक़सान पहुंचा रहे हैं.
यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि इन योजनाओं के क्रियान्वयन के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुटता प्रदर्शित करने का अवसर मिला है.
“’टिकाऊ विकास के लिए लघु द्वीपीय विकासशील देशों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है. उन्हें दीर्घकालीन और केंद्रित ढंग से प्रयासों और पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के निवेश की आवश्यकता होगी.”
इस कार्यक्रम का आयोजन आयरलैंड की ओर से किया गया. आयरलैंड के राष्ट्रपति माइकल हिगिन्स ने ज़ोर देकर कहा कि द्वीपीय देशों के लिए तबाही का अर्थ दूसरा है. यह एक ऐसी तबाही है जो बार-बार आएगी और इसलिए बचाव के लिए कार्रवाई को तैयार करते समय उसके फिर से आने के ख़तरे का ध्यान रखा जाना चाहिए.
‘समोआ पाथवे’ की समीक्षा एक ऐसे समय में हुई है जब एक महीने पहले चक्रवाती तूफ़ान डोरियन से बहामास में भारी तबाही हुई.
इसके बाद से ही प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती संख्या, स्तर और तीव्रता से द्वीपीय देशों को उपजते ख़तरे पर चिंताएं नए सिरे से बढ़ गई हैं.
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता और हॉलीवुड अभिनेता जेसन मोमोआ ने 2015 के पेरिस समझौते का ज़िक्र करते हुए कहा कि, “मैं आज यहां खड़ा हूं क्योंकि मैं शर्मिंदा हूं कि सभी नेता सहमति नहीं चाहते थे.”
उनका इशारा वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी का स्तर 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने के संकल्प की ओर था.
उन्होंने कहा कि वह भली-भांति समझते है कि एक स्थान किसी दूसरे के लिए अनजान किस तरह रह सकता है. लेकिन मैंने समझना शुरू किया है कि एक के लिए समस्या सभी के लिए समस्या में तब्दील हो सकती है.