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ओज़ोन परत के क्षतिग्रस्त हिस्से तेज़ी से बेहतरी की ओर

‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ अभी तक एकमात्र ऐसी संधि है जिसे सभी सदस्य देशों ने पारित किया है.
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‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ अभी तक एकमात्र ऐसी संधि है जिसे सभी सदस्य देशों ने पारित किया है.

ओज़ोन परत के क्षतिग्रस्त हिस्से तेज़ी से बेहतरी की ओर

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण एजेंसी (UNEP) ने कहा है कि अगर मौजूदा प्रगति आने वाले समय में भी बरक़रार रही तो पृथ्वी की सुरक्षा परत के रूप में काम करने वाले ओज़ोन परत के कई क्षतिग्रस्त हिस्सों में वर्ष 2030 तक पूरी तरह सुधार हो जाएगा.  यूएन संस्था ने एक बयान जारी करके कहा कि ओज़ोन परत को क्षति पहुंचाने वाले पदार्थों के सीमित इस्तेमाल को बंद करने से भावी पीढ़ियों के लिए ओज़ोन संरक्षण में मदद मिली है और मानव स्वास्थ्य को भी सुरक्षित रखने में सफलता हासिल हुई है.

16 सितंबर को ‘विश्व ओज़ोन दिवस’ के अवसर पर इस सफलता को पहचाना गया है – साथ ही ऐतिहासिक मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में ओज़ोन परत के संरक्षण के संकल्प को ’32 ईयर्स एंड हीलींग’ के तौर पर याद किया जा रहा है. अब तक ओज़ोन को क्षति पहुंचाने वाले 99 फ़ीसदी से ज़्यादा पदार्थों का इस्तेमाल बंद किया जा चुका है जिनमें रेफ़्रिजरेटर, एयर कंडीशनर और अन्य उत्पादों में इस्तेमाल होने वाले रसायन थे.

ओज़ोन परत क्षरण की वैज्ञानिक समीक्षा का अनुमान दर्शाता है कि वर्ष 2000 से अब तक ओज़ोन परत में प्रति दस वर्ष में 1-3 फ़ीसदी की दर से सुधार आया है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण (UNEP) ने उम्मीद जताई है कि अगर इसी तरह सुधार होता रहा तो उत्तरी गोलार्ध और मध्य अक्षांश पर ओज़ोन की परत साल 2030 तक पूरी तरह ठीक हो जाएगी.

दक्षिणी गोलार्द्ध वाले हिस्से में सुधार वर्ष 2050 तक और धुर्वीय क्षेत्रों में सुधार उसके बाद के दशक में आने का अनुमान जताया गया है.

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संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि यह ख़्याल रखा जाना होगा कि ओज़ोन परत की अनदेखी एक ऐसे समय में ना हो जब दुनिया का ध्यान जलवायु परिवर्तन से निपटने में लगा है.

ओज़ोन परत में सुधार आने से जलवायु परिवर्तन के असर को भी रोकने में मदद मिली है – 1990 से 2010 तक ओज़ोन परत की मज़बूत ढाल से 135 अरब टन कार्बन डाय ऑक्साइड उत्सर्जन को रोकने में मदद मिली.

वर्ष 2018 के अंत में, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने स्पष्ट किया था कि कार्बन डाय ऑक्साइड सहित अन्य ग्रीनहाउस गैसों की वातावरण में सघनता अब भी लगातार बढ़ रही है जिसका दुष्प्रभाव वैश्विक तापमान बढ़ने और ओज़ोन परत को क्षति के रूप में सामने आएगा.

ओज़ोन परत के क्षतिग्रस्त होने से पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणें बढ़ी मात्रा में धरती तक पहुंचने लगती हैं जिससे त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद जैसी बीमारियों के अलावा शरीर की प्रतिरक्षण प्रणाली कमज़ोर पड़ने का ख़तरा बढ़ता है और कृषि योग्य भूमि और जंगलों को भी नुक़सान पहुंचता है.

‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ अभी तक एकमात्र ऐसी संधि है जिसे सभी सदस्य देशों ने पारित किया है और वे ओज़ोन परत को नुक़सान पहुंचाने वाले पदार्थों का चरणबद्ध ढंग से इस्तेमाल बंद करने पर राज़ी हुए हैं जिस संबंध में प्रगति को वार्षिक रिपोर्टिंग के ज़रिए साझा किया जाएगा.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने कहा कि अपनी सफलता पर हम ख़ुश हो सकते हैं लेकिन इस प्रगति को बरक़रार रखने के लिए हमें सतर्क रहना होगा और ओज़ोन को क्षति पहुंचाने वाले पदार्थों के ग़ैरक़ानूनी स्रोतों से निपटना होगा.

पर्यावरण एजेंसी ने ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ के ‘किगाली संशोधन’ को पूर्ण समर्थन दिए जाने की अपील की है जो इस 1 जनवरी 2019 से लागू हुआ है.

इसके तहत हाइड्रोफ़्लोरोकार्बन्स, जलवायु को गर्म करने वाली गैसों को चरणबद्ध ढंग से हटाया जाएगा जिससे इस सदी के अंत तक औसत तापमान में 0.4 डिग्री की बढ़ोत्तरी रोकने में मदद मिल सकती है.