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भूमि की उर्वरता बहाल करने की योजना पर सहमति

दिल्ली में कॉप-14 सम्मेलन में क़रीब नौ हज़ार प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.
UN India/Ruhani Kaur
दिल्ली में कॉप-14 सम्मेलन में क़रीब नौ हज़ार प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.

भूमि की उर्वरता बहाल करने की योजना पर सहमति

एसडीजी

मरुस्थलीकरण रोकने और भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने के प्रयासों को मज़बूती देने के इरादे से कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ यानी कॉप-14 सम्मेलन में ठोस कार्रवाई की पहल की गई है. सम्मेलन के अंतिम दिन शुक्रवार को ‘दिल्ली घोषणापत्र’ जारी किया गया जिसके तहत वर्ष 2030 तक ‘लैंड डिग्रेडेशन न्यूट्रैलिटी’ हासिल करना यानी भूमि क्षय के स्तर को स्थिर रखना अब देशों की राष्ट्रीय कार्ययोजनाओं में शामिल होगा.

टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडा के अनुरूप तैयार इन कार्ययोजनाओं में ज़मीन की पट्टेदारी और उसके इस्तेमाल के अधिकारों में पेश आने वाली चुनौतियों को भी दूर करने के प्रयास होंगे. इनके ज़रिए भूमि अधिकारों में व्याप्त लैंगिक असमानता को हटाने, भूमि के इस्तेमाल से होने वाला कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए भूमि को फिर से उपयोग योग्य बनाने, और सरकारी व निजी क्षेत्र से वित्तीय संसाधनों का इंतेज़ाम किया जाएगा.

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भूमि क्षय, मरुस्थलीकरण व सूखे पर कार्रवाई की प्रगति को दर्शाने के लिए फ़्रेमवर्क बेहतर बनाया जाएगा ताकि लैंगिक समानता, सूखे से निपटने की कार्रवाई और उत्पादन व खपत के स्वरूप से भूमि क्षय पर पड़ने वाले असर जैसे प्रमुख बिंदुओं की समीक्षा हो सके.

कॉप-14 सम्मेलन के दौरान अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने स्वीकार किया है कि भूमि क्षय और मरुस्थलीकरण के कारण बड़े आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण संकट पैदा हो रहे हैं जिनसे विश्व कई देश और क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं.

‘दिल्ली घोषणापत्र’ के ज़रिए मंत्रियों ने उन नई पहलों और सहबंधनों के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया है जिनका उद्देश्य मानव स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देना, पारिस्थितिकी तंत्रों की हालत सुधारना और शांति व सुरक्षा सुनिश्चित करना है.

कॉप-14 सम्मेलन में सूखे के ख़तरे को कम करने, बेहतर प्रबंधन और सहनशीलता बढ़ाने के लिए वैश्विक प्रयासों को समर्थन देने पर भी सहमति हुई है.

यूएन संधि (यूएनसीसीडी) के कार्यकारी सचिव इब्राहिम चियाउ ने मरुस्थलीकरण का मुक़ाबला करने के लिए बताया, “हम इस तथ्य को स्वीकार कर चुके हैं कि हमें बार-बार और पहले से ज़्यादा गंभीर सूखे का सामना करना होगा, जलवायु परिवर्तन ऐसी घटनाओं को और गंभीर बनाएगा.”

न्यूयॉर्क में 23 सितंबर को होने वाली जलवायु कार्रवाई शिखर वार्ता में कॉप-14 के योगदान पर जानकारी देते हुए कार्यकारी सचिव ने ध्यान दिलाया कि भूमि को फिर से उपयोग योग्य बनाना उन सस्ते समाधानों में हैं जिनसे जलवायु और जैव विविधता के संकट का सामना किया जा सकता है.

न्यूयॉर्क में होने वाली जलवायु शिखर वार्ता से पहले उन्होंने स्पष्ट संदेश देते हुए कहा कि भूमि में निवेश के ज़रिए विविध प्रकार के अवसरों का रास्ता खुल सकता है.  

प्रकृति पर आधारित समाधानों के ज़रिए भूमि की उर्वरा को बहाल करने से रियो डी जनेरियो में हुई 'अर्थ समिट' की तीन संधियों के लाभ स्पष्ट दिखाई देंगे जिनसे विश्व के बड़े मुद्दों का हल निकलने में मदद मिलेगी.

मरुस्थलीकरण रोकने में निजी क्षेत्र की भूमिका को उन्होंने अहम बताया जिसे ‘टिकाऊ वैल्यू-चेंस’ और प्रोत्साहनकारी नीतियों के माध्यम से बढ़ावा दिया जा सकता है.

इसके तहत टिकाऊ भूमि प्रबंधन में नव-प्रवर्तन (इनोवेशन) के समर्थन में विनियम सुनिश्चित करना, संसाधनों का टिकाऊ उपयोग और संरक्षण के प्रयासों को पुरस्कृत करना महत्वपूर्ण होगा.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 सितंबर को सेंट विंसेंट एंड ग्रेनेडाइंस के प्रधानमंत्री राल्फ़ गोंज़ाल्वेज़ और यूएन उपमहासचिव आमिना जे मोहम्मद की मौजूदगी में मंत्रिस्तरीय खंड शुरू किया था.

प्रधानमंत्री मोदी ने भूमि क्षय से निपटने में जल की अहमियत को रेखांकित करते हुए  यूएनसीसीडी से ‘ग्लोबल वॉटर एक्शन एजेंडा’ तैयार करने का आग्रह किया जो भूमि क्षय की रोकथाम की रणनीति के केंद्र में होगा.

2 से 13 सितबंर तक चले इस सम्मेलन में लगभग नौ हज़ार प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जिनमें मंत्री, संयुक्त राष्ट्र अधिकारी, युवा, स्थानीय निकायों, व्यावसायिक और ग़ैर-सरकारी संगठनों से जुड़े प्रतिनिधि शामिल थे.