दक्षिण-दक्षिण सहयोग से टिकाऊ विकास को मिलेगा बढ़ावा

विकासशील देशों के बीच सहयोग को एक ऐसा अनूठा रास्ता बताया गया है जिसके ज़रिए 2030 एजेंडा में निर्धारित टिकाऊ विकास लक्ष्यों की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ा जा सकता है. 12 सितंबर को दक्षिण-दक्षिण सहयोग के संयुक्त राष्ट्र दिवस पर आयोजित एक समारोह में विकासशील देशों में पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक नया प्लैटफ़ॉर्म शुरू किया गया है.
ग्लोबल नॉलिज शेयरिंग एंड पार्टनरशिप प्लेटफ़ॉर्म, South-South Galaxy, वैश्विक स्तर पर ज्ञान बांटने और साझेदारी का एक ऐसा प्लैटफ़ॉर्म है जिसके ज़रिए विकासशील देश अपने साझेदारों से डिजिटल माध्यमों पर जुड़ सकेंगे, उनसे सीखेंगे और सहयोग भी संभव होगा.
इस नई तकनीक को मार्च 2019 में ब्यूनस आयर्स में हुई शिखर वार्ता में पेश किया गया था लेकिन न्यूयॉर्क में गुरूवार को आधिकारिक रूप से इसकी शुरुआत हुई.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस अवसर पर कहा, “पिछले दशकों के दौरान टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने में दक्षिण-दक्षिण सहयोग की ताक़त प्रदर्शित की गई है.”
“दक्षिण-दक्षिण सहयोग को एकजुटता की भावना, राष्ट्रीय संप्रभुता के प्रति सम्मान और समान साझेदारी की भावना से आगे बढ़ाया गया है जिससे साझा विकास चुनौतियों के ठोस समाधान पेश किए गए हैं.”
इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र दिवस इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ‘ब्यूनस आयर्स प्लान ऑफ़ एक्शन’ को 40 वर्ष पूरे हो रहे हैं.
मार्च 2019 में ब्यूनस आयर्स में ही उच्चस्तरीय सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसे ‘ब्यूनस आयर्स प्लान ऑफ़ एक्शन+40' (BAPA+40 या बापा+40) का नाम दिया गया था.
दक्षिण-दक्षिण सहयोग से अर्थ दुनिया के विकासशील देशों में तकनीकी सहयोग से है जिसके ज़रिए सदस्य देश, अंतरराष्ट्रीय संगठन, शिक्षाविद, नागरिक समाज और निजी सैक्टर आपस में मिलकर काम करते हैं और ज्ञान, कौशल और सफल उपक्रमों साझा करते हैं.
यह सहयोग मुख्य रूप से कृषि विकास, मानवाधिकार, शहरीकरण, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों पर केंद्रित है.
इस सहयोग पर आधारित साझेदारियों से कई क्षेत्रों में सफलता हासिल हुई है – ज़्यादा संख्या में बच्चों को शिक्षा मिल रही है, बाल मृत्यु दर में कमी आई है और चरम ग़रीबी भी कम हुई है.
लेकिन यूएन प्रमुख ने सचेत किया है कि प्रगति के बावजूद विकास की रफ़्तार धीमी है और 2030 तक टिकाऊ लक्ष्यों को पाने में पर्याप्त नहीं है.
उन्होंने कहा कि विश्व में दो अरब से ज़्यादा लोग पर्याप्त साफ़-सुविधाओं के अभाव में रहने को मजबूर हैं जिनमें से अधिकांश दक्षिणी गोलार्ध में स्थित विकासशील देशों में रहते हैं.
84 करोड़ लोगों तक अभी बिजली नहीं पहुंची है जबकि 88 करोड़ से ज़्यादा लोगों के पास पीने का साफ़ पानी नहीं है.
“ये स्थितियाँ कठोर ढंग से ध्यान दिलाती हैं कि जब देश आर्थिक लाभ की फ़सल काट रहे हों तो भी हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि समृद्धि को बड़े पैमाने पर साझा किया जाए.”
महासचिव ने ख़ुशी जताई कि यूएन संस्थाएं अब रणनीति विकसित कर रही हैं जिसमें व्यापक रूप से दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग का समावेशन होगा.
त्रिकोणीय सहयोग में तीन पक्षों की भूमिका होती है. दो दक्षिण से और एक उत्तर से, और यह एक अंतरराष्ट्रीय संगठन भी हो सकता है. इसके तहत उत्तर में स्थित पक्ष, वित्तीय संसाधन प्रदान करता है ताकि दक्षिण के देश किसी ख़ास विषय पर तकनीकी सहयोग का आदान-प्रदान कर सकें.
"उत्तर" और "दक्षिण" के विभाजन से तात्पर्य सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विभिन्नताओं से है जो विकसित देशों (उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित देश) और विकासशील देशों (दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित देश) में मौजूद हैं.
हालांकि उच्च आय वाले अधिकतर देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित हैं लेकिन यह मुख्य रूप से वास्तविक भौगोलिक स्थिति पर ही निर्भर नहीं करता. किसी देश को उत्तर या दक्षिण, उसके स्थान की वजह से नहीं बल्कि कुछ निश्चित आर्थिक कारणों और वहां जीवन की गुणवत्ता के आधार पर कहा जाता है.