टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर प्रगति के लिए दिशा में बदलाव पर ज़ोर

संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त स्वतंत्र विशेषज्ञों ने अपनी एक रिपोर्ट में रेखांकित किया है कि वैश्विक विकास का मौजूदा मॉडल अगर आगे भी जारी रहा तो इससे दशकों में हासिल की गई प्रगति ख़तरे में पड़ सकती है. रिपोर्ट के अनुसार लोगों और प्रकृति के बीच रिश्ते में बुनियादी और त्वरित बदलाव लाकर मानव कल्याण को हासिल किया जा सकता है और ग़रीबी का उन्मूलन भी संभव है. संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग (UNDESA) द्वारा जारी यह रिपोर्ट टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर इस महीने होने वाली बैठक में चर्चा के केंद्र में रहेगी.
यह रिपोर्ट, The Future is Now: Science for Achieving Sustainable Development, ध्यान दिलाती है कि हर टिकाऊ विकास लक्ष्य और समाज को निर्धारित करने वाली प्रणालियों के बीच रिश्तों को समझने की ज़रूरत है ताकि विश्व को अस्थिरता से उबारन के लिए एक कार्ययोजना को तैयार किया जा सके.
टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर आधारित 2030 एजेंडा 2015 में आरंभ किया गया जिसमें ग़रीबी, भुखमरी, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसी बड़ी चुनौतियों से निपटने और सभी के लिए एक बेहतर दुनिया बनाने का ब्लूप्रिंट है.
टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर प्रगति को आंकने के लिए सदस्य देशों के अनुरोध पर ये रिपोर्ट तैयार की गई है जिसे यूएन की ओर से नियुक्त 15 विशेषज्ञों ने तैयार किया है.
रिपोर्ट में बढ़ती असमानता और पर्यावरण को पहुंची क्षति की गंभीरता को समझते हुए त्वरित ढंग से अर्थपूर्ण कार्रवाई की पुकार लगाई गई है.
रिपोर्ट के अनुसार मानव कल्याण को हासिल करने और सभी के लिए ग़रीबी का उन्मूलन अब भी संभव है लेकिन उसके लिए लोगों और प्रकृति के बीच रिश्ते में बुनियादी और त्वरित बदलाव लाने होंगे.
रिपोर्ट बताती है कि एसडीजी हासिल करने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बग़ैर आर्थिक वृद्धि हासिल की जा सके. साथ ही संपत्ति, आय और जीवन में उपलब्ध अवसरों में व्याप्त सामाजिक और लैंगिक असमानताओं को दूर करना होगा.
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UNDESA
विकसित देशों से उत्पादन और खपत के तरीक़ों में बदलाव लाने की अपील की गई है – इस संबंध में जीवाश्म ईंधन और प्लास्टिक उत्पादों के इस्तेमाल को घटाने व टिकाऊ विकास लक्ष्यों के नज़रिए से लाभकारी क्षेत्रों में निवेश महत्वपूर्ण बताया गया है.
वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि संयुक्त राष्ट्र को स्पष्ट दिशानिर्देशों के साथ एक ‘टिकाऊ विकास निवेश लेबल’ को प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि ऐसे उद्यमों और वित्तीय बाज़ारों में निवेश को बढ़ावा दिया जा सके जिनसे टिकाऊ विकास का रास्ता प्रशस्त हो.
इन बदलावों के लिए मज़बूत राजनैतिक इच्छाशक्ति और संकल्प को रेखांकित किया गया है. रिपोर्ट में निशानदेही की गई है कि विकसित और विकासशील देशों की ज़रूरतें और परिस्थितियां अलग हैं और कार्ययोजनाओं में भी उसके अनुरूप बदलाव करने होंगे.
रिपोर्ट में 20 बिंदुओं की पहचान की गई है जहां कार्रवाई के ज़रिए कायापलट कर देने वाले बदलावों और टिकाऊ विकास लक्ष्यों की दिशा में त्वरित प्रगति संभव बनाई जा सकती है.
उदाहरण के तौर पर, गुणवत्तापरक बुनियादी सेवाओं – स्वास्थ्य, शिक्षा, जल उपलब्धता और साफ़-सफ़ाई, आवास और सामाजिक संरक्षण – की उपलब्धता के ज़रिए टिकाऊ विकास पथ में बड़े क़दम बढ़ाए जा सकते हैं.
रिपोर्ट में भोजन और ऊर्जा प्रणालियों को बेहद अहम क़रार दिया गया है क्योंकि दोनों प्रणाली मानव स्वास्थ्य और कल्याण के लिए अति आवश्यक हैं लेकिन इनकी मौजूदा स्थिति से विश्व के सामने पर्यावरण संकट खड़ा हो रहा है.
दुनिया में दो अरब लोग खाद्य असुरक्षा से पीड़ित हैं और 82 करोड़ लोग अल्पपोषण का शिकार हैं.
विकासशील देशों के लिए, मज़बूत सामाजिक संरक्षण नीतियों की आवश्यकता पर बल दिया गया है ताकि खाद्य सुरक्षा और पोषण को बढ़ावा दिया जा सके.
देशों से अपील की गई है कि खाद्य उत्पादन प्रणालियों से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को घटाया जाना चाहिए.
इसके लिए खाने की बर्बादी रोकने और पशु आधारित प्रोटीन स्रोत पर निर्भरता को कम करना अहम होगा.
विकासशील और विकसित देशों से कुपोषण के सभी स्वरूपों के प्रति आगाह रहने का भी आग्रह किया गया है.
क़रीब एक अरब लोगों को बिजली उपलब्ध नहीं है जिनमें अधिकांश सब-सहारा अफ़्रीका में रहते हैं और तीन अरब लोग भोजन पकाने के लिए प्रदूषित ईंधन का इस्तेमाल करते हैं.
इस वजह से हर वर्ष 38 लाख से ज़्यादा लोगों की असामयिक मौत हो जाती है.
ऊर्जा दक्षता और सुलभता को बढ़ाने के साथ-साथ जीवाश्म ईंधन पर आधारित ऊर्जा संयंत्रों को चरणबद्ध ढंग से बंद करने का भी सुझाव दिया गया है ताकि पेरिस समझौते के अनुरूप विश्व अर्थव्यवस्था में कार्बन पर निर्भरता को समाप्त किया जा सके.
वर्ष 2050 तक विश्व जनसंख्या के दो-तिहाई हिस्से का शहरों में रहने का अनुमान है.
2030 एजेंडा को पूरा करने के लिए सुगठित और नियोजित शहरों का निर्माण अहम होगा जहां गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक परिवहन तंत्र सहित अन्य बुनियादी सेवाएं और टिकाऊ आजीविका के साधन उपलब्ध हों जिन्हें तकनीक और प्रकृति आधारित उद्योगों से समर्थ बनाया जा सके.
वैज्ञानिकों से ज़ोर देकर कहा है कि साझा पर्यावरणों – वातावरण, वर्षावन और महासागर – पारिस्थितिकी तंत्रों और प्राकृतिक संसाधनों के अहम स्रोत हैं और उनका हर हाल में संरक्षण सुनिश्चित होना चाहिए.
रिपोर्ट में कहा गया है कि टिकाऊ विकास हासिल करने में विज्ञान की अहम भूमिका होगी और इस सिलसिले में विश्वविद्यालयों, नीति-निर्माताओं और शोधकर्ताओं को बड़े समर्थन की आवश्यकता होगी.
विज्ञान-नीति-समाज पर ध्यान केंद्रित करने से ऐसी उपयोगी जानकारी हासिल की जा सकती है जिसके ज़रिए विकास से जुड़ी समस्याओं का हल निकलता हो.