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बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए वैश्विक कार्रवाई की पुकार

संयुक्त राष्ट्र उपमहासचिव आमिना जे मोहम्मद नई दिल्ली में कॉप-14 सम्मेलन के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ स्टेज पर. (9 सितंबर 2019)
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संयुक्त राष्ट्र उपमहासचिव आमिना जे मोहम्मद नई दिल्ली में कॉप-14 सम्मेलन के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ स्टेज पर. (9 सितंबर 2019)

बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए वैश्विक कार्रवाई की पुकार

जलवायु और पर्यावरण

भारत की राजधानी नई दिल्ली में कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ यानी कॉप-14 में सोमवार को उच्च-स्तरीय खंड का आयोजन हुआ जिसमें भूमि के मरुसस्थलीकरण से बचाकर उसे उपजाऊ बनाने के उपाय करने में तेज़ी लाने का आहवान किया गया.

संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया भर में अब भी क़रीब 80 करोड़ लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिलता है और खेतीबाड़ी की पैदावार बहुत कम हो रही है. जबकि आने वाले दशकों में खाद्य पदार्थों की माँग में 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होने का अनुमान है.

सम्मेलन में मेज़बान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सम्मेलन के अध्यक्ष प्रकाश जावड़ेकर व अन्य सभी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत करते हुए संयुक्त राष्ट्र की उप-महासचिव, आमिना जे मोहम्मद ने कहा, “हमारे पास अब बैठकें कर अगले 10 साल तक लक्ष्य तैयार करते रहने का समय नहीं है. हमारे पास केवल दो हफ्ते बचे हैं कि हम एक साझा एजेंडा तैयार कर, कार्रवाई और उसका असर दिखाते हुए तापमान को दो डिग्री तक सीमित करने की दिशा में उचित क़दम बढ़ाएँ.”

उन्होंने कहा, “अगर 15 करोड़ हैक्टेयर भूमि में फिर से खेतीबाड़ी शुरू हो जाए तो हर वर्ष लगभग 20 करोड़ लोगों को खाद्य ज़रूरतें पूरी की जा सकेंगी.”

“साथ ही इससे छोटे किसानों और अन्य लोगों के लिए लगभग 30 अरब डॉलर की आमदनी होगी और प्रतिवर्ष दो गीगाटन कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी.”

उन्होंने कहा कि इस दौर में सबकी निजी और सामूहिक ज़िम्मेदारियों की सख़्त ज़रूरत है, शायद पहले के किसी भी समय के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा. ये एक बहुत बड़ा काम है लेकिन अगर एकजुट होकर प्रयास किए जाएं तो हम सभी मिलकर क्लाइमेट एक्शन के एजेंडे से संबंधित आकांक्षाओं को हासिल कर सकते हैं.

संयुक्त राष्ट्र उपमहासचिव आमिना जो मोहम्मद नई दिल्ली में कॉप-14 के सम्मेलन में. (सितंबर 2019)

उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद का कहना था, "जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन" पहला और अंतिम पड़ाव नहीं है. ये केवल ठोस कार्रवाई की दिशा में पहला क़दम है और इस बार हम अपने सदस्य देशों से मज़बूत वादे चाहते हैं. वित्तीय सेक्टर के साथ जुड़ना बहुत आवश्यक है क्योंकि अगर धन नहीं होगा तो काम में अवरोध पैदा होगा. इसलिए वित्तीय वादे आगे बढ़ने बहुत ज़रूरी हैं.”

“हम ये नहीं कह रहे कि ग्रीन क्लाइमेट फंड में धन नहीं हैं – धन है और सभी देश इसमें योगदान देते हैं - जो दो हफ्तों में होने वाले जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन के लिए एक अच्छा संकेत है. यह जुड़ाव निरंतर चलते रहना चाहिए – बस यही इस सम्मेलन का उद्देश्य है." 

इस अवसर पर मेज़बान देश भारत के प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी ने समूचे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मरुस्थलीकरण और भूमि क्षय से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर जल कार्रवाई एजेंडा अपनाने का आह्वान किया.     

सोमवार को इस सम्मेलन के उच्च-स्तरीय सम्मेलन में सेंट विन्सेंट एंड द ग्रेनाडाइंस के प्रधानमंत्री समेत दुनियाभर के 8000 से ज़्यादा प्रतिनिधि मौजूद थे.

मरुस्थलीकरण और भूमि क्षय से निपटने के उपाय तलाश करने के लिए चल रहे कॉप-14 सम्मेलन के इस खंड की शुरूआत करते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि 2030 तक भारत अतिरिक्त 50 लाख हेक्टेयर भूमि को पुन: उपजाऊ बनाएगा यानी कुल मिलाकर 2 करोड़ 60 लाख हेक्टेयर भूमि बहाल की जाएगी.

यूएनसीसीसडी के लक्ष्यों से प्रतिबद्धता जताते हुए उन्होंने सभी विश्व नेताओं से अपील की कि वे सभी जल संरक्षण को अपना केंद्रीय मुद्दा बनाकर भूमि क्षय के ख़िलाफ कार्रवाई के लिए आगे आएँ.

भारत की ये पहल कोरिया गणराज्य की चांगवोन अभियान और तुर्की की अंकारा मुहिम को मज़बूत करती है जो पिछली दो कॉन्फ्रेस ऑफ पार्टीज़ के दौरान शुरू की गई थीं.

मरुस्थलीकरण से निपटना राष्ट्रीय लक्ष्य

कॉप-14 के वर्तमान अध्यक्ष, भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री, प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि सम्मेलन के अंत में जारी होने वाला ‘दिल्ली घोषणा-पत्र’ इसी विशेष मंत्री-स्तरीय खंड से अपनाया जाएगा.

उन्होंने कहा कि इस उच्च-स्तरीय बैठक का मक़सद है – मरुस्थलीकरण, भूमि क्षय और सूखे के मानवीय चेहरे की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करना. उन्होंने सभी प्रतिनिधियों को आश्वासन दिया कि “अगले 2 साल तक कॉप की अध्यक्षता भारत के पास है और हम आप सबके साथ मिलकर काम करना चाहते हैं. मैं ये विश्वास दिलाता हूं कि हमारे सकारात्मक क़दमों से ही आने वाली पीढ़ी को एक बेहतर पृथ्वी हासिल होगी.”

सम्मेलन में विशेष अतिथि, सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनाडाइंस के प्रधानमंत्री, रॉल्फ़ गोंज़ाल्वेज़ ने कहा, “जितना बड़ा संकट है उससे निपटने के लिए विश्व-स्तर पर राष्ट्रों की प्रतिक्रियाएं उम्मीद के मुताबिक नहीं रही हैं. इसलिए मैं ये मानता हूं कि मरुस्थलीकरण के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र का कॉप सम्मेलन, बेहतर और सतत् जीवन की तलाश में मानवता की एक लाभदायक कोशिश है.” 

इस अवसर पर यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहीम चियाओ ने विश्व स्तर पर हो रहे भूमि क्षय के वर्तमान और पीढ़ी-दर-पीढ़ी हो रहे प्रभावों पर प्रकाश डाला और उन बच्चों की दुर्दशा पर ध्यान देने को कहा, “जिनका भविष्य केवल उनके माता-पिता के हाथ में ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानवता पर निर्भर करता है.”

साथ ही उन्होंने वैज्ञानिक शोधों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया जिसमें बंजर होती भूमि के नुक़सान की चेतावनी दी गई थी.  

इस कॉप सम्मेलन के ज़रिए इब्राहिम चियाओ ने न्यूयॉर्क में होने वाले शिखर सम्मेलन के लिए ‘बदलाव की बुनियाद’ रखने पर ज़ोर दिया और कहा, “समानता, भागीदारी और नापतोल के तीन सिंद्धांत मिलकर हमें अपने साझा लक्ष्य हासिल करने के काफी क़रीब ले जा सकते हैं.”  

इसके लिए उन्होंने ख़ासतौर पर कमज़ोर वर्गों और गांवों में मौजूद छोटे किसानों के उत्थान के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को अहम माना.    

आख़िर में COP14 के अध्यक्ष, प्रकाश जावड़ेकर ने दोहराते हुए, “सभी को मरुस्थलीकरण से निपटने के लक्ष्य को अपना राष्ट्रीय लक्ष्य बनाना होगा. भारत में हम पहले से ही मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए हरियाली बढ़ाने में लगे हैं. पिछले 5 सालों में ये हरियाली 24% बढ़कर लगभग 15,000 वर्ग किमी की दर से बढ़ते हुए अब 33% का लक्ष्य पार करने के क़रीब है.”

"अगर मानवीय क्रिया-कलापों ने दुनिया और पर्यावरण को नुक़सान पहुंचाया है, तो अब सकारात्मक मानवीय गतिविधियाँ वो फर्क़ लाएंगे जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए बेहतर धरती का निर्माण हो सके."

11 दिन तक चलने वाले कॉप 14 का विषय है – अवसर खोजने के लिए पुन: स्थापन में निवेश.”

शुक्रवार, 13 सितंबर को समाप्त होने वाले कॉप-14 से 30 से अधिक महत्वपूर्ण फैसले आने की उम्मीद है.

माना जा रहा है कि इससे कई देशों में सरकारें उचित क़दम उठाकर बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने की दिशा में ठोस कार्रवाई की पहल करेंगी – ख़ासतौर पर सबसे अहम अगले दो सालों के भीतर.