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'अगर पृथ्वी को बचाना है तो भूमि को बचाएं, अर्थव्यवस्था में जान फूँकें'

जलवायु परिवर्तन और भूमि के ग़ैर-ज़िम्मेदार तरीक़े से इस्तेमाल के कारण मरुस्थलीकरण का दायरा बढ़ा है. ये कैमरून के पूर्वोत्तर इलाक़े का एक दृश्य है. (जनवरी 2019)
UN News/Daniel Dickinson
जलवायु परिवर्तन और भूमि के ग़ैर-ज़िम्मेदार तरीक़े से इस्तेमाल के कारण मरुस्थलीकरण का दायरा बढ़ा है. ये कैमरून के पूर्वोत्तर इलाक़े का एक दृश्य है. (जनवरी 2019)

'अगर पृथ्वी को बचाना है तो भूमि को बचाएं, अर्थव्यवस्था में जान फूँकें'

जलवायु और पर्यावरण

भूमि को बंजर होने से बचाकर उपजाऊ बनाने में ज़्यादा संसाधन निवेश करने से ना सिर्फ़ पृथ्वी ग्रह को स्वस्थ रखने में मदद मिलेगी, बल्कि वर्तमान के कुछ सबसे बड़े मुद्दों का समाधान तलाश करने की भी शुरुआत हो सकती है. दुनिया भर में मरुस्थलीकरण के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के संगठन यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहीम चियाओ ने नई दिल्ली से वीडियो कान्फ्रेंसिंग के ज़रिए पत्रकारों से बातचीत में ये बात कही है. इस विषय पर 14 वां वैश्विक सत्र 2 से 13 सितंबर तक राजधानी दिल्ली में हो रहा है.

 

यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहीम चियाओ ने नई दिल्ली में चल रहे सम्मेलन कॉप-14 के इतर बातचीत में कहा, "अगर हम सटीक रूप में कहें तो हमें आजीविका के साधनों को बेहतर बनाने के एक तरीक़े के रूप में भूमि को उपजाऊ बनाने में ज़्यादा संसाधनों का निवेश करना होगा, ऐसी कमज़ोरियाँ दूर करनी होंगी जिनसे जलवायु परिवर्तन का संकट बढ़ रहा है और अर्थव्यवस्थाओं के लिए दरपेश ख़तरों को कम करना होगा."

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इस सम्मेलन में लगभग 196 देशों के सरकारी प्रतिनिधियों, मंत्रियों, वैज्ञानिकों, ग़ैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों और अनेक सामुदायिक संगटनों के प्रतिनिधियों ने शिरकत की है और भूमि को ज़्यादा उपजाऊ बनाने के उपायों पर मंथन किया है. 

इब्राहीम चियाओ का कहना था, "आज जो हम भोजन खाते हैं उसका 99.7 प्रतिशत हिस्सा ज़मीन से हासिल होता है. ज़मीन ही हमें पीने का पानी मुहैया कराती है. हमारे पीने के पानी की गुणवत्ता ज़मीन और इसके पारिस्थितिकितंत्र से ही हमें मिलती है" लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि ये बहुमूल्य संसाधन अब गंभीर ख़तरे में हैं.

इब्राहीम चियाओ ने कहा कि  साल 2018 में 25 देशों ने व्यापक सूखा पड़ने के बाद आपात उपाय किए जाने का आहवान किया था. औसतन हर साल 70 देश सूखे से प्रभावित होते हैं. अक्सर सबसे ग़रीब समुदायों को ही इन हालात की सबसे ज़्यादा मार झेलनी पड़ती है, उनके संसाधन ख़त्म हो जाते हैं और उन्हें अन्य स्रोतों से मिलने वाली मानवीय सहायता पर निर्भर होना पड़ता है.

उन्होंने कहा,  "भूमि का क्षय होने का संबंध शांति और सुरक्षा से भी है" इन हालात में समुदायों को भूमि और जल संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा में शामिल होना पड़ता है, और कुछ क्षेत्रों  तो ये प्रतिस्पर्धा संघर्ष का रूप ले लेती है.

मरुस्थलीकरण की वास्तविकता का दायरा जैसे-जैसे बड़ा हो रहा है, एक प्यासे ग्रह ने जबरन विस्थापन को बढ़ावा दे दिया है. इससे उपजाऊ ज़मीन पर दबाव बढ़ रहा है, खाद्य पदार्थों की असुरक्षा बढ़ रही है और वित्तीय संकट भी बढ़ रहे हैं. 

इब्राहीम चियाओ ने कहा, "ऐसा अनुमान है कि सिर्फ़ मरुस्थलीकरण की वजह से विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10 से 17 प्रतिशत के बीच का नुक़सान हो रहा है."

यूएनसीसीडी का अनुमान है कि जैव विविधता क्षेत्र में हो रहे नुक़सान, ज़मीन के ख़राब होते स्वास्थ्य की वजह और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों ने पर्यावरण समीकरण बदल दिए हैं जिनकी वजह से 2050 तक 70 करोड़ लोगों का प्रवासन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

इस सम्मेलन में लगभग 30 फ़ैसले लिए जाने की संभावना है जिनका मुख्य उद्देश्य संगठन के 2018-2030 के लक्ष्यों को हासिल करना होगा. ये लक्ष्य इस संगटन के रणनीतिक फ्रेमवर्क में वर्णित हैं जोकि भूमि क्षय को रोकने के लिए व्यापक संकल्पों वाला एक दस्तावेज़ है.