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ख़सरा और रुबेला के 2023 तक ख़ात्मे का संकल्प

ख़सरा और रुबेली जैसी बीमारियों के वायरस बच्चों को ज़्यादा निशाना बनाते हैं, ख़ासतौर से कुपोषित और कमज़ोर रोग प्रतिरोधी क्षमता वाले बच्चों को.
Pan American Health Organization (PAHO)
ख़सरा और रुबेली जैसी बीमारियों के वायरस बच्चों को ज़्यादा निशाना बनाते हैं, ख़ासतौर से कुपोषित और कमज़ोर रोग प्रतिरोधी क्षमता वाले बच्चों को.

ख़सरा और रुबेला के 2023 तक ख़ात्मे का संकल्प

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण पूर्वी एशिया के क्षेत्र के सदस्य देशों ने अपने यहाँ ख़सरा और रुबेला बीमारियों को साल 2023 तक पूरी तरह से ख़त्म करने का संकल्प व्यक्त किया है. दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की क्षेत्रीय समिति के नई दिल्ली में 5 सितंबर को हुए 72वें सत्र में ये संकल्प लिया गया.

अत्यधिक संक्रामक वायरसों के ज़रिए फैलने वाली ये बीमारियाँ ज़्यादातर बच्चों को अपने चपेट में लेती हैं और इनसे मरीज़ की अक्सर मौत हो जाती है और कुछ विकलांग भी हो जाते हैं.

दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर पूनम खेत्रपाल सिंह ने इस अवसर पर कहा, “इन दोनों बीमारियों का ख़ात्मा करने के लिए निर्धारित किए गए नए लक्ष्य से मौजूदा प्रयासों को और ज़्यादा रफ़्तार मिलेगी. इन बीमारियों का मुक़ाबला करने के लिए हाल के वर्षों में मज़बूत राजनैतिक इरादे देखे गए हैं जिनमें असाधारण प्रयास, प्रगति और कामयाबी नज़र आई है.”

क्षेत्र में ख़सरा का ख़ात्मा करने और रुबेला पर नियंत्रण करने का लक्ष्य वर्ष 2014 से ही प्राथमिकता पर रहा है. पाँच देशों ने अपने यहाँ ख़सरा को ख़त्म कर दिया है. इनके नाम हैं – भूटान, डीपीआर कोरिया, मालदीव, श्रीलंका और तिमोर-लेस्टे. छह देशों ने रुबेला पर नियंत्रण कर लिया है – बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल, श्रीलंका और तिमोर लेस्टे.

नए लक्ष्य हासिल करने के लिए सदस्य देशों ने ख़सरा और रुबेला दोनों ही तरह के वायरसों से छुटकारा पाने के लिए टीकाकरण और अन्य चिकित्सा सुविधाएँ मज़बूत करने का संकल्प व्यक्त किया है. साथ ही राष्ट्रीय स्तर व उप राष्ट्रीय स्तर पर आबादी की रोग प्रतिरोधी क्षमता का स्तर ख़सरा और रुबेला के मामलों में और ज़्यादा बढ़ाने के लिए भी प्रतिबद्धता जताई गई है.

संकल्प पत्र ने प्रयोगशालाओं पर आधारित एक उच्च संवेदनशीलता वाली निगरानी व्यवस्था बनाने और नियोजन व संक्रमण के मामलों से निपटने की रणनीति में बेहतर सबूत सुनिश्चित करने का भी आहवान किया गया है.

सभी देशों ने ख़सरा और रुबेला के संक्रमण को रोकने इस संकल्प को 2030 तक पूरा करने के लिए राजनैतिक, वित्तीय और समाज के स्तर पर समर्थन जुटाने की शपथ भी व्यक्त की.  

सदस्य देशों ने ख़सरा और रुबेला के 2020-2024 तक उन्मूलन के लिए एक रणनीतिक योजना भी मंज़ूर की है. इस योजना में क्षेत्र में ख़सरा और रुबेला के उन्मूलन के लिए एक रोडमैप दिया गया है और ध्यान देने वाले क्षेत्रों की निशानदेही की गई है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर पूनम खेत्रपाल सिंह का कहना था, “ख़सरा के उन्मूलन से क्षेत्र में एक साल में पाँच लाख लोगों की मौत को रोकने में मदद मिलेगी. जबकि रुबेला का ख़ात्मा करने और गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के दीर्घकालीन स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने वाली सहायता मुहैया कराकर लगभग 55 हज़ार लोगों की ज़िंदगी बचाने में मदद मिलेगी.”

सभी 11 सदस्य देशों में बच्चों को ख़सरा से बचाने वाली दो ख़ुराकें पिलाए जाने की व्यवस्था है जिसे एमसीवी कहा जाता है. दस देशों में रुबेला को रोकने वाली दवाइंया भी उपलब्ध हैं.

ख़सरा से मुख्य रूप से ग़रीब लोग बहुत ज़्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि ये कुपोषित और उन बच्चों को अपनी चपेट में ज़्यादा लेती है जिनकी रोग प्रतिरोधी क्षमता कमज़ोर होती है. ख़सरा की वजह से स्वास्थ्य संबंधी बहुत सी जटिलताएँ भी हो जाती हैं जिनमें अंधापन, एनसेफ़लाइटिस, डायरिया, कानों का संक्रमण और न्यूमोनिया भी शामिल हैं. रुबेली की वजह से जन्म के समय ही ऐसी स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ होती हैं जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता.