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डिजिटल खाई बढ़ने और आपसी सहयोग की कमी से बढ़ेगी असमानता

डिजिटल तकनीक आधारित अर्थव्यवस्था में विकासशील देश पिछड़ रहे हैं.
ITU/D. Procofieff
डिजिटल तकनीक आधारित अर्थव्यवस्था में विकासशील देश पिछड़ रहे हैं.

डिजिटल खाई बढ़ने और आपसी सहयोग की कमी से बढ़ेगी असमानता

आर्थिक विकास

संयुक्त राष्ट्र की व्यापार मामलों के संगठन (UNCTAD) ने अपनी एक नई रिपोर्ट में सचेत किया है कि डिजिटल तकनीक में अग्रणी और पीछे छूट रहे देशों के बीच चौड़ी होती खाई को अगर नहीं पाटा गया तो वैश्विक असमानता का रूप बदतर हो जाएगा. डिजिटल अर्थव्यवस्था पर पहली बार जारी रिपोर्ट दर्शाती है कि देशों को आपस में जोड़ने वाली डिजिटल अर्थव्यवस्था के फ़ायदों काो कैसे साझा किया जा सकता है.

रिपोर्ट में डिजिटल अर्थव्यवस्था से उपजने वाली संपदा की संभावनाओं को पूरा करने और उसके लाभ का व्यापक रूप से विस्तार करने के लिए पारस्परिक सहयोग बढ़ाने की अपील की गई है.

अध्ययन के अनुसार डिजिटल अर्थव्यवस्था में चीन और अमेरिका सबसे अहम भूमिका निभा रहे हैं. ब्लॉकचेन टैक्नोलॉजी में 75 फ़ीसदी पेटेंट पर इन दो देशों का नाम है जबकि ‘इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स’ पर विश्व में कुल ख़र्च का 50 फ़ीसदी यही दो देश करते हैं. क्लाउड कंप्यूटिंग बाज़ार के 75 फ़ीसदी हिस्से पर भी इन्हीं दो देशों की कंपनियों का क़ब्ज़ा है.

दुनिया के बाक़ी देश, विशेषकर अफ़्रीकी और लातीनी अमेरिकी देश, बेहद पीछे चल रहे हैं और आने वाले समय में भी यह रुझान जारी रहने की संभावना है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा है कि इससे असमानता को बढ़ावा मिलेगा.

यूएन प्रमुख ने स्पष्ट किया कि विश्व में आधी आबादी के पास या तो इंटरनेट तक पहुंच नहीं है या फिर सीमित रूप से उपलब्ध है. “सभी की भलाई के लिए डिजिटल अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए समावेशन बेहद ज़रूरी है.”

डेटा में भारी बढ़ोत्तरी संभव

वैश्विक स्तर पर हाल के वर्षों में डिजिटल डेटा से व्यापक बदलाव देखने को मिला है लेकिन इसे अभी डेटा आधारित अर्थव्यवस्था का शुरुआती चरण ही माना जा रहा है.

रिपोर्ट के अनुसार अगले कुछ वर्षों में डेटा में नाटकीय ढंग से बढ़ोत्तरी देखने को मिलेगी.

इसके साथ ही इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि होगी और ब्लॉकचेन, डेटा एनैलिटिक्स, आर्टिफ़िशियल इंटैलीजेंस, 3-डी प्रिंटिंग, रोबोटिक्स और क्लाउड कंप्यूटिंग जैसी आधुनिकतम तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ेगा.

शीर्ष 70 प्लेटफ़ॉर्म के कुल बाज़ार मूल्य (market value) का दो-तिहाई हिस्सा महज़ सात कंपनियों के पास.
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शीर्ष 70 प्लेटफ़ॉर्म के कुल बाज़ार मूल्य (market value) का दो-तिहाई हिस्सा महज़ सात कंपनियों के पास.

डिजिटल क्षेत्र में संपदा और शक्ति ज़्यादा से ज़्यादा ऐसे चुनिंदा ब्रैंड के पास एकत्र होती जा रही है जिन्हें सुपर प्लैटफ़ॉर्म के नाम से जाना जाता है: माइक्रोसॉफ़्ट, एप्पल, ऐमेज़ॉन, गूगल, फ़ेसबुक, टेनसेंट और अलीबाबा.

शीर्ष 70 प्लैटफ़ॉर्म की कुल बाज़ार मूल्य (Market value) का दो-तिहाई हिस्सा इन्हीं सात कंपनियों के पास है.

चीन में ‘वीचैट’ और ‘अलीपे’ ने लगभग पूरे मोबाइल भुगतान बाज़ार पर क़ब्ज़ा जमा लिया है.

वैश्विक इंटरनेट सर्च बाज़ार के 90 फ़ीसदी हिस्से पर गूगल का दबदबा है और 90 से ज़्यादा देशों में फ़ेसबुक शीर्ष सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म है.

रिपोर्ट दर्शाती है कि शीर्ष पर अपना स्थान बनाए रखने के लिए कंपनियां आक्रामक ढंग से प्रयास कर रही हैं.

वे अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को ख़रीद रही हैं, नई सेवाओं में विस्तार कर रही हैं, नीति-निर्धारकों के साथ लॉबिंग में जुटी हैं और पारंपरिक क्षेत्रों में अग्रणी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ रणनीतिक साझेदारी स्थापित कर रही हैं.

समान अवसरों के लिए सरकारों की भूमिका

अंकटाड ने सचेत किया है कि इन प्लैटफॉर्म के दबदबे की वजह से डिजिटल क्षेत्र में देशों के बीच और देशों  के भीतर असमानता घटने के बजाय डिजिटल वैल्यू का केंद्रीकरण हो रहा है – विकासशील देश इस प्रक्रिया में पिछड़ रहे हैं.

इस चुनौती के नज़रिए से रिपोर्ट में अपील की गई है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था से हो रहे फ़ायदों के न्यायसंगत वितरण को सुनिश्चित करने के लिए पुर्नविचार की आवश्यकता है.

यूएन संगठन के महासचिव मुखीसा किटूई ने बताया कि इस विषय में नियमों को निर्धारित करने में सरकारें अहम भूमिका निभा सकती हैं और ऐसा मौजूदा नियमों में ज़रूरी बदलाव लाकर और नए क़ानून बनाकर किया जा सकता है.

“डिजिटल विकास रणनीतियों और वैश्वीकरण की भावी हदों के पुर्ननिर्धारण के लिए नई तकनीकों को स्मार्ट ढंग से अपनाना, साझेदारियों को मज़बूत बनाना और व्यापक बौद्धिक नेतृत्त्व को बढ़ाना आवश्यक है.”

रिपोर्ट में डिजिटल अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने की अपील की गई है ताकि विकासशील देशों की पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित की जा सके. इन मुद्दों में प्रतिस्पर्धा, टैक्स, सीमा पार डेटा के आदान-प्रदान, बौद्धिक संपदा, व्यापार और रोज़गार नीतियां प्रमुख हैं.