वन्य जीवों के संरक्षण के लिए रौशनी की किरण
दुनिया भर में अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे बहुत से वन्य जीवों को बुधवार को कुछ राहत मिली. वो इस तरह कि विश्व भर में पशुओं और पेड़-पौधों के व्यापार को टिकाऊ बनाने और उनके संरक्षण के लिए बेहतर उपाय करने के बारे में देशों ने जिनीवा में एक बड़ी बैठक हुई जिसमें आमतौर पर देशों के बीच सहमति बन गई.
विलुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए संयुक्त राष्ट्र समर्थित अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन (CITES) की तीन वर्षों में होने वाली बैठक में अनेक प्रजातियों के नियमों में बदलाव किए गए हैं. इनमें वो प्रजातियाँ शामिल हैं जिनकी या तो बहुत ज़्यादा पैदावार की जाती है या जिनका बहुत ज़्यादा शिकार किया जाता है.
कन्वेंशन की महासचिव इवॉन हाइगुएरो ने इस घटनाक्रम का स्वागत किया कि इस संधि पर हस्ताक्षर करने वालों ने वन्य जीवों के ऐसे व्यापार का समर्थन किया जो टिकाऊ, क़ानूनी और ऐसा हो जिस पर नज़र रखी जा सके. उन्होंने ऐसे वन्य जीवों के ग़ैर-क़ानूनी कारोबार में लिप्त होने के ख़िलाफ़ आगाह भी किया जो आपराधिक गैंग ऑनलाइन चलाते हैं.
मछलियों से लेकर पेड़-पौधों और भारी-भरकम जानवरों तक
इवॉन ने कहा कि इंसानों को इन विलुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के लिए नए तरीक़े सोचने होंगे जिनमें आज तक दुनिया भर में वन्य जीवों और पेड़-पौधों का प्रबंधन करने के तरीक़ों में बदलाव करना भी शामिल हो.
उन्होंने कहा कि अभी तक वन्य जीवों और पेड़-पौधों के बारे में जो ग़ैर-क़ानूनी बर्ताव होता रहा है अब उसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.
व्यावसायिक पैमाने पर शिकार की जाने वाली मछलियों, पेड़-पौधों और स्तनपायी जानवरों, जिनमें जिराफ़ को भी पहली बार शामिल किया गया है. इन सभी के अस्तित्व और व्यापार के मानक निर्धारित करने के लिए इस कन्वेंशन के 183 पक्षों ने 56 प्रस्ताव पेश किए. इन प्रस्तावों में ऐसे रैप्टाइल्स यानी उभयचर व सरीसृप भी शामिल थे जिन्हें पालतू बनाने का चलन बढ़ रहा है.
आमतौर पर उभयचर व सरीसृपों के बारे में आम लोगों में कम ही जानकारी होती है कि उनका अस्तित्व ख़तरे में पड़ रहा है. ये ध्यान देने की बात है कि पृथ्वी पर जीवन के ताने-बाने के लिए इनका अस्तित्व और मौजूदगी बहुत ज़रूरी है.
इस कन्वेंशन की महासचिव इवॉन ने कहा, "हमें इन प्रजातियों पर बहुत ज़्यादा ध्यान देना होगा, उतना ही जितना हम महंगी मछलियों, लकड़ियों और विशालकाय स्तनपायी जानवरों पर ध्यान देते हैं."
इस सम्मेलन में लिए गए फ़ैसलों में एक ये भी था जिसमें CITES के पक्षों ने मैक्सिको से अनुरोध किया कि वो शिकारी जहाज़ों को उन क्षेत्रों तक पहुँचने से रोकने के लिए अपनी नौसेना का इस्तेमाल करे जहाँ शिंशुमार (Porpoise) के शरणस्थल होते हैं. ये प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है.
जिराफ़ व हाथियों का मुद्दा
अब ये भी तथ्य सामने आए हैं कि जिराफ़ भी हाथियों से ज़्यादा ख़तरे के दायरे में शामिल हो गए हैं और जिराफ़ों की संख्या घटकर कुछ लाख तक ही रहने की आशंका पैदा हो गई है. इसके लिए कई तरह के दबाव ज़िम्मेदार हैं. सम्मेलन में इस पर सहमति हुई कि अगर जिराफ़के कारोबार को नियंत्रित नहीं किया जाता है तो दुनिया का ये सबसे ऊँचा जानवर पर विलुप्ति का ख़तरा बढ़ जाएगा.
एशिया में पाए जाने वाले ऊद बिलाव के संरक्षण उपायों में भी इज़ाफ़ा करने को मंज़ूरी दी गई. इन ऊद बिलावों के त्वचा पर चिकनी परत होती है और उनके पंजे बहुत छोटे होते हैं. ये ऊद बिलाव भी विलुप्ति के ख़तरे का सामना कर रहे हैं क्योंकि उनके रहने के ठिकाने ख़त्म होते जा रहे हैं और इनका कारोबार भी बहुत होता है.
नए प्रस्तावों के तहत ऊद बिलावों की दो सूचीबद्ध प्रजातियों का कारोबार निषिद्ध कर दिया गया है.
गिटारफ़िस का व्यापार करने में प्रतिबंधों की संख्या भी बढ़ाई गई है. गिटारफ़िश का शिकार और कारोबार इसके पंखों की ख़ातिर किया जाता है.
सम्मेलन में शार्क की 18 अन्य प्रजातियों के संरक्षण के लिए भी कुछ उपाय शामिल करने का फ़ैसला किया गया. इनमें से अनेक प्रजातियों को पर्यारणविद पहले ही विलुप्तप्राय प्रजाति मान चुके हैं.
हाथियों की संख्या भी घटकर लाखों में ही रह गई है. अफ्रीकी हाथियों के दाँतों के सीमित कारोबार के प्रस्तावों को भी सम्मेलन में नामंज़ूर कर दिया गया. इसका मतलब है कि इस बारे में मौजूदा प्रतिबंध जारी रहेंगे.
वन्य जीव प्रबंधन
कन्वेंशन प्रमुख इवॉन ने वन्य जीव प्रबंधन में टिकाऊ पन की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि स्थानीय लोगों और समुदायों के साथ मेलमिलाप और समझदारी बढ़ाने की ज़रूरत है ताकि उनकी आमदनी और जीवन जीने के साधनों की ज़रूरतों के बारे में सही समझ विकसित की जा सके.
उन्होंने बताया कि कन्वेंशन के 100 से ज़्यादा पक्षों ने सिर्फ़ इसी मुद्दे पर अपनी बात रखी. ये भी ध्यान देने की बात है कि ये समुदाय वन्य जीव संरक्षण के नज़रिए से बहुत अहम स्थानों पर रहते हैं और उनकी मदद और सक्रिय सहयोग के बिना वन्य जीव संरक्षण के प्रयासों में मुश्किल पैदा होगी.