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नेपाल में मानवाधिकार उल्लंघन, यातना और जबरन मज़दूरी का मामला

भोली काठमांठू में 9 साल की उम्र से घरों में नौकर के रूप में काम कर रहे थे.
UN News Centre/Vibhu Mishra
भोली काठमांठू में 9 साल की उम्र से घरों में नौकर के रूप में काम कर रहे थे.

नेपाल में मानवाधिकार उल्लंघन, यातना और जबरन मज़दूरी का मामला

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति ने नेपाल से कहा है कि यातना और जबरन मज़दूरी कराए जाने के पीड़ितों को शिकायतें दर्ज कराने में आने वाली मुश्किलों को दूर करना होगा. मानवाधिकार समिति ने जिनीवा में मंगलवार को एक व्यक्ति द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायत पर सुनाए गए अपने एक निर्णय में ये बात कही है.

यह शिकायत आदिवासी समूह के सदस्य भोली फराका (वास्तविक नाम नहीं) की ओर से दर्ज कराई गई थी.

भोली काठमांठू में 9 साल की उम्र से घरों में नौकर के रूप में काम कर रहे थे.

हर दिन उन्हें सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक काम करने के लिए मजबूर किया जाता; उन्हें स्कूल जाने की अनुमति नहीं थी और काम के बदले भुगतान भी नहीं किया गया.

भोली के साथ शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर दुर्व्यवहार भी किया गया.

दो साल के बाद वह बचकर भाग निकलने में कामयाब रहे लेकिन उनके पूर्व मालिक ने फिर चोरी का झूठा आरोप लगाकर उन्हें गिरफ़्तार कराया और पुलिस पूछताछ के दौरान उन्हें यातनाएं दी गईं.

पीड़ित और उनके परिवार की ओर से शिकायत दर्ज कराने के कई बार प्रयास किए गए लेकिन वे विफल रहे.

स्विट्ज़रलैंड के एक ग़ैरसरकारी संगठन ‘ट्रायल इंटरनेशनल’ के प्रयासों के फलस्वरूप भोली का मामला मानवाधिकार समिति तक पहुंचा जिससे उनकी याचिका को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक लाने में मदद मिली.

मानवाधिकार समिति ऐसे लोगों की शिकायतों की समीक्षा करती है जिन्होंने मानवाधिकार उल्लंघन की वजह से पीड़ा सही है लेकिन न्याय नहीं मिल पाया.

समिति ने अपने फ़ैसले में कहा है कि नेपाल ने ‘इंटरनेशनल कॉविनेन्ट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स’ के कई प्रावधानों का उल्लंघन किया है.

इस पृष्ठभूमि में नेपाल से क़ानूनों में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बदलाव लाने का आग्रह किया गया है और यातना व दासता को आपराधिक क़रार देने की बात कही गई है.

समिति का कहना है कि “बचपन में लंबी यातना और जबरन मज़दूरी से किसी की ज़िंदगी तबाह हो गई. पीड़ितों के लिए न्याय की उपलब्धता और जवाबदेही का होना बेहद ज़रूरी है ताकि वे अपने जीवन को फिर से संवार सकें और खोई हुई गरिमा को वापस पा सकें. हम आशा करते हैं कि सरकार इस तरह की घटनाओं के पीड़ितों को संरक्षण प्रदान करेगी और जीवन फिर शुरू करने में हर ज़रूरी क़दम उठाया जाएगा.”

समिति ने अपने फ़ैसले में नेपाल से स्थिति सुधारने के लिए उठाए गए क़दमों के बारे में 180 दिनों के भीतर जानकारी देने का अनुरोध किया है.

मानवाधिकार समिति सदस्य देशों द्वारा 'इंटरनेशनल कॉविनेन्ट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स' के अनुपालन की निगरानी करती है जिसमें 173 देश शामिल हैं. इस समिति में 18 सदस्य होते हैं जो स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ हैं - वे निजी तौर पर काम करते  हैं और सदस्य देशों के प्रतिनिधि नहीं हैं. 

इसके 'ऑप्शनल प्रोटोकॉल' में 116 सदस्य देश हैं.  इस प्रोटोकॉल के अंतर्गत लोगों के पास मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतें  दर्ज कराने का अधिकार है. इससे सदस्य देश के लिए समिति के रुख़ को स्वीकार करना  क़ानूनी रूप से बाध्यकारी होता है.