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श्रीलंका में मानवाधिकार उल्लंघन के लिए जवाबदेही तय करने की पुकार

श्रीलंका में 26 वर्ष के गृहयद्ध के दौरान लापता हुए लोगों के परिजन राजधानी कोलंबो में एक मीटिंग में उनकी तस्वारों के साथ
Photo: IRIN/Amantha Perera
श्रीलंका में 26 वर्ष के गृहयद्ध के दौरान लापता हुए लोगों के परिजन राजधानी कोलंबो में एक मीटिंग में उनकी तस्वारों के साथ

श्रीलंका में मानवाधिकार उल्लंघन के लिए जवाबदेही तय करने की पुकार

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र  के मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक समूह ने श्रीलंका में लैफ्टिनेंट जनरल शावेंद्र सिल्वा को देश का नया सेना प्रमुख नियुक्त किए जाने पर गहरी चिंता व्यक्त की है और श्रीलंका सरकार का आहवान किया है कि सुरक्षा क्षेत्र में और अतीत में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की जाँच कराई जाए जिनमें पहले ही बहुत देर हो चुकी है.

श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सीरीसेवना ने 18 अगस्त 2019 को लैफ़्टिनेंट जनरल शावेंद्र सिल्वा को देश की सेना का कमांडर नियुक्त किया था जिस पर अनेक हस्तियों ने गंभीर चिंताएँ व्यक्त की थीं. इनमें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट भी थीं.

ये गंभीर चिंताएँ श्रीलंका में क़रीब 25 वर्षों तक चले गृह युद्ध के दौरान मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर मामलों में सेना के कथित रूप से शामिल होने के आरोपों के मद्देनज़र उठाई गई हैं.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने मंगलवार को एक वक्तव्य जारी करके कहा, "देश के सर्वोच्च सैन्य पद पर लैफ्टिनेंट शावेंद्र सिल्वा की नियुक्ति मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों के ज़ख़्मों पर नमक रगड़ने जैसा है जबकि लैफ्टिनेंट जनरल पर इस तरह के मानवाधिकार उल्लंघन के कथित आरोप लगे हुए हैं. साथ ही इससे देश में क़ानून के लिए कोई डर नहीं होने के वातावरण का भी संकेत मिलता है."

उन्होंने कहा कि इससे देश के संस्थानों में श्रीलंकाई समाज का भरोसा कम होगा और उससे और ज़्यादा अस्थिरता को भड़कने का मौक़ा मिलेगा.

लैफ्टिनेंट जनरल शावेंद्र सिल्वा मई 2009 में श्रीलंकाई सेना की 58 डिवीज़न के कमांडिंग ऑफ़ीसर थे जब सरकार ने गृह युद्ध को ख़त्म करने के लिए सैनिक कार्रवाई की थी.

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों में लैफ्टिनेंट जनरल सिल्वा और उनके सैनिकों को कथित रूप से युद्धापराओं और मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों में संलिप्त होने का आरोप लगाया गया है. 

इन्हीं आरोपों की वजह से लैफ्टिनेंट शावेंद्र सिल्वा को 2012 में शांति रक्षा अभियानों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष सलाहकार समूह से हटा दिया गया था. 

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है, "लैफ्टिनेंट जनरल शावेंद्र सिल्वा और उनके सैनिकों पर लगे आरोपों की अभी तक समुचित जाँच नहीं कराई गई है."

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने याद करते हुए कहा कि श्रीलंका सरकार ने गृह युद्ध के दौरान मानवाधिकार उल्लंघन व प्रताड़ना के गंभीर आरोपों की जाँच कराने का स्वैच्छिक रूप से ही वादा किया था. श्रीलंका सरकार का ये स्वैच्छिक संकल्प संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव संख्या 30/1 में भी झलकता है. 

विशेषज्ञों ने कहा, "इन अपराधों की ठोस जाँच और ज़िम्मेदारों पर मुक़दमे चलाए जाने में कोई प्रगति नहीं होने व देश के सुरक्षा क्षेत्र में व्यापक सुधार नहीं करने पर हम गंभीर चिंता व्यक्त करते हैं, जबकि सुरक्षा क्षेत्र के कुछ सदस्यों पर गंभीर आरोप लगे हैं. हम अधिकारियों से इस क्षेत्र में तेज़ी से ठोस प्रगति दिखाने का आग्रह करते हैं." 

विश्व में सत्य और न्याय को बढ़ावा देने के मामलों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर ने अक्तूबर 2017 में श्रीलंका की यात्रा की थी और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में न्याय व्यवस्था की सीमितताओं व धीमी रफ़्तार का मुद्दा श्रीलंका सरकार के साथ उठाया था. 

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है, "अगर श्रीलंका सरकार इन व अन्य गंभीर आरोपों की जाँच कराने के लिए अनिच्छुक व अयोग्य है तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जवाबदेही निर्धारित करने के लिए अन्य उपायों की तलाश करनी चाहिए, इनमें  सार्वभौमिक न्याय प्रणाली के सिद्धांत भी शामिल हैं."

मानवाधिकार विशेषज्ञों का ये  संदर्भ उस प्रक्रिया की तरफ़ था जिसमें युद्धापरादों के लिए मुक़दमा किसी भी देश के न्यायालय में चलाया जा सकता है, भले ही वो अपराध किसी भी देश में हुए हों.

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, "हम आहवान करते हैं कि जवाबदेही और मानवाधिकारों का उल्लंघन फिर से ना होने की गारंटी जैसे न्याय उपाय सुनिश्चित किए जाएँ, इनमें सुरक्षा क्षेत्र में सुधार भी शामिल हैं. क़ानून का शासन मज़बूती के साथ सुनिश्चित करने और हिंसा का सिलसिला फिर से शुरू ना होने देने के लिए ये बहुत ज़रूरी हैं."

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि हाल में किए गए उपाय और एक ठोस न्याय प्रक्रिया के लिए संकल्प और ज़िम्मेदारी की कमी को देखते हुए तो इसके उलट हालात नज़र आते हैं.

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.