वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

समुद्रों को सहेजकर रखने के लिए समझौते की कोशिश

समुद्रों में प्लास्टिक प्रदूषण ने जीव-जंतुओं के वजूद के लिए ख़तरा पैदा कर दिया है.
Saeed Rashid
समुद्रों में प्लास्टिक प्रदूषण ने जीव-जंतुओं के वजूद के लिए ख़तरा पैदा कर दिया है.

समुद्रों को सहेजकर रखने के लिए समझौते की कोशिश

जलवायु और पर्यावरण

समुंदरों में ज़ाहिरा तौर पर तो लगभग दो लाख प्रजातियों की मौजदूगी के बारे में जानकारी उपलब्ध है मगर असल में ये संख्या लाखों में होने के अनुमान व्यक्त किए गए हैं. चिंता की बात ये है कि ये समुद्री प्रजातियाँ जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और दोहर के ख़तरों का सामना कर रही हैं.

 

इन ख़तरों को कम कर के इरादे से संयुक्त राष्ट्र एक ऐसी संधि के लिए बातचीत कर रहा है जिसके ज़रिए ज़मीनी सतह के लगभग तीन चौथाई हिस्से को 2030 तक संरक्षित किया जा सके.

समुद्र संरक्षण पर एक वैश्विक संधि को हासिल करने के इरादे से चार दौर की बातचीत होनी है जिसमें से तीसरा दौर सोमवार, 20 अगस्त को न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय में शुरू हुआ.

ये बातचीत अंतरसरकारी सम्मेलन के ढाँचे के तहत चल रही है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क़ानूनी रूप से मान्य होती है.

ये संभावित संधि समुद्री क़ानून पर संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन के दायरे में होगी जिसे UNCLOS भी कहा जाता है.

मानव गतिविधियों से समुद्री जीवन बड़े पैमाने पर प्रभावित हुआ है. समुद्री जैव विविधता को सहेजने के लिए एक संधि पर बातचीत चल रही है.

क़ानूनी मामलों के अवर महासचिव मिगुएल डी सरपा सोआरेस ने सोमवार को मुख्यालय में बातचीत शुरू करते हुए कहा, “मैं विश्वस्त हूँ कि इस बातचीत में हिस्सा लेने वाले प्रतिनिधि भविष्य की पीढ़ियों को स्वस्थ, टिकाऊ और उत्पादक समुंदर मुहैया कराने की सामूहिक रुचि से प्रेरणा हासिल करेंगे.”

इस बातचीत का लक्ष्य वर्ष 2020 की पहली छमाही में कोई समझौता कर लेना है.

अवर महासचिव मिगुएल डी सरपा सोआरेस ने कहा कि इस गुट की पिछली बैठक के बाद 2019 में जैव विविधता और पारिस्थितिकी सेवाओं पर वैश्विक आकलन रिपोर्ट आई है जिसमें पता चला है कि लगभग पूरी दुनिया में इंसानों ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की है जिससे पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता में बहुत तेज़ी से गिरावट आ रही है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ज़मीन और समुद्रों के इस्तेमाल के बदलते तरीक़ों, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और जलवायु परिवर्तन की वजह से नकारात्मक असर 2050 तक और उससे आगे भी जारी रहने की संभावना है.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि समुद्रों के 66 प्रतिशत हिस्से में मानव गतिविधियों के प्रभाव नज़र आ रहे हैं, इनमें मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के दबाव शामिल हैं.

इन कारणों से समुद्रों की सतह के तापमान संबंधी अनियमितताएं, समुद्रों के रसायनिकीकरण और अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन की स्थितियाँ पैदा हो रही हैं.

इन चुनौतियों के बावजूद उम्मीद बरक़रार है कि इन स्थितियों को और ज़्यादा गंभीर होने से रोकने के प्रयास करके और बहुस्तरीय सहयोग के ज़रिए समुद्री जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र की टिकाऊ तरीक़े से संरक्षा की जा सकती है.

अवर महासचिव मिगुएल डी सरपा सोआरेस ने ज़ोर देकर कहा, “इसलिए मुझे पूरी उम्मीद है कि ये सम्मेलन बदतर होते हालात में हवा का रुख़ बदलने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.”

उन्होंने कहा कि जलवाउ परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल समुद्रों की स्थिति पर भी अपनी विशेष रिपोर्ट जारी करने पर विचार कर सकता है.

संधि

वैश्विक समुद्र संधि विशालकाय ब्लू व्हेल से लेकर छोटी-छोटी प्रजातियों तक, सभी को संरक्षित करने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए जैव विविधता सहेजने में मदद करेगी.

इस संधि वार्ता में देशों की राष्ट्रीय सीमाओं के भी पार समुद्री जैव विविधता को संरक्षित करने करने के टिकाऊ तरीक़ों पर विचार किया जा रहा है. इन प्रयासों में प्रबंधन और फ़ायदों में साहभागिता से काम लिया जाएगा.