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‘जल गुणवत्ता के अदृश्य संकट’ से मानवता और पर्यावरण को बड़ा ख़तरा

जल की गुणवत्ता लगातार बिगड़ने से आर्थिक संभावनाओं को भी झटका पहुंचने की आशंका है.
John Hogg / World Bank
जल की गुणवत्ता लगातार बिगड़ने से आर्थिक संभावनाओं को भी झटका पहुंचने की आशंका है.

‘जल गुणवत्ता के अदृश्य संकट’ से मानवता और पर्यावरण को बड़ा ख़तरा

एसडीजी

विश्व बैंक की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि जल की गुणवत्ता बदतर होती जा रही है जिससे भारी प्रदूषण के शिकार इलाक़ों में आर्थिक संभावनाओं पर बुरा असर पड़ेगा. मंगलवार को जारी इस रिपोर्ट में सचेत किया गया है कि जल की ख़राब गुणवत्ता एक ऐसा संकट है जिससे मानवता और पर्यावरण के लिए ख़तरा पैदा हो रहा है.

रिपोर्ट के अनुसार कुछ क्षेत्रों में नदियों और झीलों में प्रदूषण का स्तर इतना अधिक है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि उनमें आग लगने से धुंआ निकल रहा है. उदाहरण के तौर पर भारत के बेंगलूरू महानगर की बेल्लनडुर झील का ज़िक्र किया गया है जहां से छह मील दूर स्थित इमारतों में भी राख देखी गई है.

विश्व बैंक की रिपोर्ट - Quality Unknown: The Invisible Water Crisis  के अनुसार कीटाणुओं, सीवर, रसायनों और प्लास्टिक के मिश्रण से नदियों, झीलों और जलाशयों में ऑक्सीजन ख़त्म हो रही है और पानी ज़हर में तब्दील हो रहा है.

रिपोर्ट को तैयार करने के लिए जल गुणवत्ता पर निगरानी केंद्रों, रिमोट सेन्सिंग तकनीक और मशीन लर्निंग टूल्स का इस्तेमाल किया गया है.

तत्काल कार्रवाई के अभाव में जल की गुणवत्ता का बिगड़ना जारी रहेगा जिससे मानवीय स्वास्थ्य पर असर पड़ने के साथ-साथ खाद्य उत्पादन में भी भारी कमी आएगी और वैश्विक आर्थिक प्रगति में अवरोध खड़े हो जाएंगे. 

नयापाड़ा शिविर में कुछ बच्चे एक तालाब से पानी लेते हुए, ये पानी नहाने, भोजन पकाने और पीने के लिए इस्तेमाल होता है.

जल की गुणवत्ता घटने का दंश झेलने वाले देशों में आर्थिक संभावनाओं में एक-तिहाई की कमी का अनुमान ‘बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड’ (बीओडी) पर आधारित है.

जल में जैविक प्रदूषण को ‘बीओडी’ के ज़रिए मापा जा सकता है और इससे परोक्ष रूप से जल की गुणवत्ता का भी पता चलता है. जब ‘बीओडी’ एक निश्चित सीमा को पार करता है तो स्वास्थ्य, कृषि और पारिस्थितिकी तंत्रों पर असर पड़ता है और सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि में एक-तिहाई की कमी आ सकती है.

कृषि में खाद के रूप में नाइट्रोजन के इस्तेमाल पर विशेष रूप से चिंता जताई गई है क्योंकि इसके जल में घुलने से उसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है.

नाइट्रोजन के नदियों, झीलों और महासागरों में प्रवेश करने से यह नाइट्रेट में तब्दील हो जाता है. छोटे बच्चों के लिए नाइट्रेट बेहद नुक़सानदेह होता है जिससे उनके बढ़ने की क्षमता और मस्तिष्क के विकास पर असर पड़ता है. इससे प्रभावित बच्चों के भविष्य में धन कमाने की क्षमता पर भी असर पड़ता है और उनकी संभावित कमाई में कम से कम दो प्रतिशत की कमी आ सकती है. इस रिपोर्ट में जल के अंधाधुंध दोहन, बढ़ते खारेपन, सूखे, तबाही लाने वाले भीषण तूफ़ानों पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है – इन वजहों से कृषि योग्य भूमि की उत्पादकता प्रभावित हो रही है.

रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि पानी के खारेपन की वजह से हर वर्ष 17 करोड़ लोगों का पेट भरने लायक भोजन गंवाया जा रहा है.  

इस चुनौती से निपटने के लिए वर्ल्ड बैंक ने विकसित और विकासशील देशों से अपील की है कि वैश्विक, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर कार्ययोजनाओं के ज़रिए इन ख़तरों को दूर किया जाना चाहिए.

रिपोर्ट बताती है कि प्रभावित देश किन प्रयासों को अपनाकर जल की गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं.

इनमें पर्यावरण की बेहतरी के लिए नीतियां और मानक लागू करने; प्रदूषण के स्तर की सटीक निगरानी करने; प्रभावी प्रणालियों को लागू करने; जल शोधन ढांचे में मदद के लिए निजी निवेश को प्रोत्साहन देने; और नागरिकों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए विश्वसनीय व सटीक सूचना प्रदान करने के संबंध में सुझाव दिए गए हैं.