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कश्मीर पर सुरक्षा परिषद की बैठक - तीन देशों का रुख़

बाएँ से दाएँ - संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत झांग जून, भारत के राजदूत सैयद अकबरुद्दीन और पाकिस्तान की राजदूत मलीहा लोधी, तीनों राजदूतों ने अपने-अपने देशों का रुख़ रखा.
UN Photo/Evan Schneider
बाएँ से दाएँ - संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत झांग जून, भारत के राजदूत सैयद अकबरुद्दीन और पाकिस्तान की राजदूत मलीहा लोधी, तीनों राजदूतों ने अपने-अपने देशों का रुख़ रखा.

कश्मीर पर सुरक्षा परिषद की बैठक - तीन देशों का रुख़

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने कश्मीर स्थिति पर शुक्रवार 16 अगस्त 2019 को गोपनीय बैठक की जिसे बंद कमरे में हुई चर्चा भी कहा गया है. इस चर्चा के बारे में परिषद की तरफ़ से कोई आधिकारिक वक्तव्य नहीं जारी किया गया, अलबत्ता तीन देशों - चीन, पाकिस्तान और भारत के राजदूतों ने पत्रकारों के सामने अपने-अपने देशों का रुख़ रखा. 

सबसे पहले चीन के राजदूत झाँग जून ने मीडिया के सामने अपने देश की स्थिति पेश की. उनके बाद पाकिस्तान की राजदूत मलीहा लोधी ने और अंत में भारत के राजदूत सैयद अकबरुद्दीन ने पत्रकारों के सामने अपने-अपने देश का नज़रिया पेश किया. 

भारत के राजदूत सैयद अकबरुद्दीन ने पत्रकारों के सवालों के जवाब भी दिए. यहाँ प्रस्तुत है तीनों देशों के राजदूतों के बयान जिनकी मूल भावना के साथ रूपांतरण करने की कोशिश की गई है. 

ध्यान दिला दें कि ये ना तो संयुक्त राष्ट्र और ना ही सुरक्षा परिषद की तरफ़ से जारी किए गए बयान हैं. इन बयानों को संयुक्त राष्ट्र या  सुरक्षा परिषद द्वारा स्वीकृत नहीं नहीं समझा जाना चाहिए. सभी पक्षों के साथ निष्पक्षता और समान बर्ताव की नीति के तहत इन बयानों को यहाँ जगह दी गई है.

चीन के राजदूत जांग जून का कश्मीर पर बयान

 

सुरक्षा परिषद ने अनौपचारिक विचार विमर्श किया है और तमाम जानकारी सावधानीपूर्वक सुनी. इसमें सचिवालय की रिपोर्ट और कश्मीर में मौजूद संयुक्त राष्ट्र के सैन्य निगरानी समूह की जानकारी भी शामिल थीं. उन रिपोर्टों के ज़रिए हमें स्थिति को समझने में बहुत मदद मिली है. मेरा विश्वास है कि आप सब महासचिव के उस बयान से भी अवगत होंगे जो उन्होंने कुछ दिन पहले जारी किया था. 

सुरक्षा परिषद में हुई चर्चा के आधार पर मैं ये कहना चाहता हूँ कि सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों ने जम्मू कश्मीर में ताज़ा स्थिति के बारे में गंभीर चिंता जताई है. सदस्य देश जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार स्थिति के बारे में भी चिंतित हैं. सदस्य देशों की ये आम राय भी नज़र आई कि संबद्ध पक्ष ऐसी कोई एकतरफ़ा कार्रवाई करने से बचें जिससे तनाव बढ़ने का अंदेशा हो, क्योंकि वहाँ तनाव पहले ही बहुत बढ़ा हुआ है और हालात बेहद ख़तरनाक हैं.

जहाँ तक चीन के रुख़ का सवाल है तो आप सभी ने हमारे स्टेट काउंसिलर और विदेश मंत्री वांग यी की पाकिस्तानी विदेश मंत्री से मुलाक़ात के दौरान की गई टिप्पणी को सुना होगा, और भारतीय विदेश मंत्री के साथ मुलाक़ात के दौरान भी. चीन का ये रुख़ है कि जम्मू और कश्मीर एक ऐसा मुद्दा है जो इतिहास द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच छूटा हुआ है. सुरक्षा परिषद के संबंधित प्रस्तावों के अनुसार जम्मू कश्मीर का दर्जा अभी अनिर्णीत है, और ये एक अंतरराष्ट्रीय दर्जे का विवाद है.

कश्मीर मुद्दे को शांतिपूर्ण तरीक़ों से यूएन चार्टर, सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों, और दोनों पक्षों के बीच हुए समझौतों के अनुसार हल किया जाना चाहिए. इस स्थिति में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सहमति नीहित है. 
 
ये स्वभाविक है कि भारत सरकार द्वारा किए गए संवैधानिक संशोधन ने कश्मीर में यथास्थिति बदल दी है जिससे क्षेत्र में तनाव पैदा हो गया है. चीन मौजूदा स्थिति के बारे में गंभीर रूप से चिंतित है और ऐसी किसी भी एकतरफ़ा कार्रवाई का विरोध करता है जिससे स्थिति और जटिल हो जाए. हम सभी संबंद्ध पक्षों से संयम बरतने और समझदारी दिखाने का आहवान करते हैं, ख़ासतौर से ऐसी किसी भी कार्रवाई से बचने का जिससे तनाव बढ़ने का अंदेशा हो.

इस तरफ़ ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है कि भारत द्वारा की गई कार्रवाई ने चीन के संप्रभु हितों को भी चुनौती दी है और सीमावर्ती इलाक़ों में स्थिरता और शांति बरक़रार रखने के द्विपक्षीय समझौतों का उल्लंघन किया है. इस स्थिति पर चीन बहुत गंभीर रूप से चिंतित है. 

और हम ज़ोर देकर कहना चाहते हैं कि भारत द्वारा इस तरह की एकतरफ़ा कार्रवाई चीन के साथ उसके संबंधों में वैध नहीं है, और क्षेत्र पर चीन के प्रभावी प्रशासनिक अधिकार पर संप्रभुता का प्रयोग करने में कोई बदलाव नहीं आएगा. 

मैं इस तरफ़ भी ध्यान दिलाना चाहता हूँ कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही चीन के पड़ोसी मित्र हैं और हम सभी प्रमुख विकासशील देश हैं. भारत और पाकिस्तान दोनों ही विकास के एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर हैं, हम दोनों ही देशों का आहवान करते हैं कि वो अपने – अपने विकास और दक्षिण एशिया में शांति के एजेंडा पर काम करें, अपने ऐतिहासिक मुद्दों का ठोस समाधान तलाश करें, ऐसी गतिविधियों से बचें जिनसे कोई फ़ायदा नहीं हो रहा है, एकतरफ़ा कार्रवाई से बचें, और विवादों का शांतिपूर्ण समाधान तलाश करें. साथ ही मिलजुलकर और सामूहिक रूप से क्षेत्र में शांति और सुरक्षा क़ायम करें. 

मीडिया के सहकर्मियों से मैं बस इतना ही कहना चाहता हूँ, मैं सवालों के जवाब देने की स्थिति में नहीं हूँ, मैं आने वाले दिनों में ऐसा कर सकता है, जब समय ज़्यादा सुविधाजनक होगा, धन्यवाद.

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मलीहा लोधी, संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की राजदूत

 

... पाकिस्तान की तरफ़ से मैं ये कहना चाहती हूँ, विवादित राज्य जम्मू कश्मीर पर चर्चा करने के लिए हुई सुरक्षा परिषद की बैठक का पाकिस्तान स्वागत करता है. ये बैठक हमारे देश के विदेश मंत्री के अनुरोध पर 72 घंटों के भीतर आयोजित की गई थी. विदेश मंत्री ने एक पत्र के ज़रिए इस बैठक का अनुरोध किया था और उस पत्र को मैंने सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष को सौंपा था, परिणाम स्वरूप ये बैठक बुलाने में हमारा साथ देने के लिए हम चीन के आभारी हैं.

मैं अपनी बात यहाँ से शुरू करती हूँ, कि कश्मीरी लोगों की आवाज़, क़ब्ज़े वाले कश्मीर के लोगों की आवाज़ आज विश्व के सर्वोच्च राजनयिक मंच पर सुनी गई है. उनकी आवाज़ सुनी गई है. वो अकेले नहीं हैं. उनकी तकलीफ़ें, उनकी मुश्किलें, उनका दर्द, उनके इलाक़े पर क़ब्ज़ा और क़ब्ज़े के परिणामों सभी के बारे में उनकी आवाज़ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आज सुनी गई हैं.

ये वास्तविकता कि ये बैठक आयोजित हुई, ये इस बात का सबूत है कि ये एक अंतरराष्ट्रीय विवाद है. इस बैठक को आयोजित होने से रोकने का भी प्रयास किया गया, और हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी 15 सदस्यों के आभारी हैं कि वो ये बैठक आयोजित करने के लिए सहमत हुए. 

इस बैठक ने क़ब्ज़ा किए हुए राज्य जम्मू कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों की वैधता एक बार फिर पुष्ट कर दी है. जहाँ तक हमारे देश के सवाल है, तो हम जम्मू कश्मीर राज्य के शांतिपूर्ण समाधान के लिए हमेशा तैयार हैं. मेरे विचार में आज की सुरक्षा परिषद बैठक ने भारत के इस दावे को बेमानी कर दिया है कि जम्मू कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है. आज, पूरी दुनिया क़ब्ज़ा किए हुए क्षेत्र और वहाँ की स्थिति के बारे में चर्चा कर रही है.  

चीन के राजदूत ने ज़ोर देकर कहा कि जम्मू कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति बहुत ख़तरनाक है और वहाँ भारत बिना किसी डर के मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है, इस विषय पर भी आज सुरक्षा परिषद की बैठक में चर्चा हुई.

मैं ये कहना चाहती हूँ कि मैं अपने विदेश मंत्री के साथ टेलीफ़ोन के ज़रिए बातचीत करती रही हूँ और उन्होंने हमें संदेश दिया है कि पाकिस्तान के अनुरोध पर ये पहला क़दम है जो हमने जम्मू कश्मीर के लोगों की तरफ़ से उठाया है. ये पहला क़दम है, और ये अंतिम क़दम नहीं है. ये यहीं ख़त्म नहीं होगा. ये तभी समाप्त होगा जब जम्मू कश्मीर के लोगों के साथ न्याय हो जाएगा.

निषकर्षतः मैं सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूँगी, जो मैंने शुरू में भी कहा: जम्मू कश्मीर के लोगों को भले ही बंद कर दिया गया हो, भले ही उनकी आवाज़ उनके अपने घरों में और उनकी अपनी ज़मीन पर नहीं सुनी जा सकती हो. लेकिन उनकी आवाज़ें आज सुरक्षा परिषद में सुनी गईं और उनकी आवाज़ें हमेशा सुनी जाती रहेंगी क्योंकि पाकिस्तान हमेशा उनके साथ खड़ा नज़र आएगा, पूरे कूटनीतिक व राजनैतिक समर्थन के साथ.
ये मुद्दा उठाने के लिए हम सुरक्षा परिषद के शुक्रगुज़ार हैं. पिछले क़रीब 50 वर्षों में ये पहला मौक़ा है जब ये मुद्दा सुरक्षा परिषद में विचार विमर्श के लिए आया. आप सबका शुक्रिया.

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संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत व स्थाई प्रतिनिधि – सैयद अकबरुद्दीन


अभिवादन दोस्तो... 
ये पहला मौक़ा है जब मैं आपसे बातचीत कर रहा हूँ. मैं एक परंपरागत राजनयिक हूँ, मैं अपना काम करता हूँ, बढ़ते तनाव की आग में घी डालना मेरा काम नहीं है.

... सुरक्षा परिषद की बंद चर्चा के बाद हमने देखा है कि दो देशों ने अपने राष्ट्रीय बयानों को इस तरह से पेश करने की कोशिश की है जैसे कि वो अंतरराष्ट्रीय समुदाय की इच्छा हो. लेकिन आप सब ख़ुद समझदार हैं और सुरक्षा परिषद किस तरह काम करती है, उस बारे में भी बाखूबी जानते हैं. इसलिए मुझे आप सबको ये बताने की ज़रूरत नहीं है कि सुरक्षा परिषद के बहुत परिवपक्व संस्था है और ये बहुत विवेकशील तरीक़े से काम करती है, इसके निष्कर्ष हम सभी को अध्यक्ष के ज़रिए मुहैया कराए जाते हैं. इसलिए अगर राष्ट्रीय वक्तव्यों को अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का रुख़ पेश करने की कोशिश की गई है तो मैंने भी तय किया कि आपके सामने आकर आपसे सीधे बातचीत करें और हमारा राष्ट्रीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करें.

... भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 पर हमारी राष्ट्रीय स्थिति ये रही है और अब भी है, कि ये पूर्ण रूप से भारत का आंतरिक मामला है. इसके कोई बाहरी सरोकार नहीं हैं. भारत सरकार और हमारी विधायी संस्थाओं द्वारा हाल ही में लिए गए फ़ैसले जम्मू कश्मीर और लद्दाख में अच्छे प्रशासन और वहाँ के लोगों के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जाने की नीयत से लिए गए हैं.

आप सभी जानते ही होंगे कि जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव ने कुछ ऐसे उपायों की घोषणा की है जिनके ज़रिए क्षेत्र में हालात सामान्य होंगे. 
हम आभारी हैं कि सुरक्षा परिषद ने अपनी गोपनीय चर्चा में हमारे इन प्रयासों की सराहना की है, उन्हें मान्यता दी है और ये भी संकेत दिया है कि परिषद अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसी दिशा में आगे बढ़ते देखना चाहती है. हम धीरे-धीरे सभी प्रतिबंधों को हटाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, आपको इसके टाइम टेबल की जानकारी है. मैं आपको ये भी बताना चाहता हूँ, चूँकि ये बदलाव भारत का अंदरूनी मामला है, इससे हमारे बाहरी सरोकारों पर कोई असर नहीं पड़ा है. भारत क्षेत्र में स्थिति सामान्य और शांतिपूर्ण रखने के लिए प्रतिबद्ध है. हम इस मुद्दे पर हुए उन सभी समझौतों के लिए भी प्रतिबद्ध हैं जिन पर हमने दस्तख़त किए हैं.

हमने ये देखा है कि कुछ पक्षों ने स्थिति को चिंताजनक तरीक़े से पेश करने की कोशिश की है, जोकि ज़मीनी हक़ीक़त से बहुत दूर है. विशेष चिंता की बात ये है कि एक देश जेहाद शब्द को भारत के ख़िलाफ़ और भारत में हिंसा को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल कर रहा है, उसके नेता भी ऐसा कर रहे हैं. दोस्तो, हिंसा ऐसी किसी भी समस्या का समाधान नहीं है जो आज हमारे सामने दरपेश हैं, हमारा हमेशा ये रुख़ रहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच व भारत और अन्य देशों के बीच तमाम मुद्दों का हल द्विपक्षीय, शांतिपूर्ण और ऐसे तरीक़ों से निकाला जाना चाहिए जिनसे देशों के बीच सामान्य संबंधों को बढ़ावा मिले.

हमें अफ़सोस है कि आतंकवाद की आग में ईंधन झोंका जा रहा है, जेहाद की ऐसी भाषा और शब्दावली इस्तेमाल की जा रही है जो वही लोग बेहतर समझ सकते हैं, आप सभी यहाँ स्थिति को समझ रहे हैं, मुझे बताने की ज़रूरत नहीं है कि सुरक्षा परिषद की गोपनीय बैठक के नतीजे क्या रहे, आप ख़ुद ही इस बारे में जान गए होंगे.

हम सभी मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधानों के लिए अपने प्रयास एक ऐसे वातावरण में जारी रखने के लिए तैयार हैं जो आतंकवाद और हिंसा से मुक्त हो. धन्यवाद.