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जिनीवा संधि: इंसानी बर्ताव के लिए नायाब मानक

1921, 1923 और 1933 की जिनीवा संधियों में संशोधन करने वाले प्रोटोकोलों पर हस्ताक्षर करने के लिए 1947 में संयुक्त राष्ट्र के 17 सदस्य देश इकट्ठा हुए थे.
Credit English (NAMS)
1921, 1923 और 1933 की जिनीवा संधियों में संशोधन करने वाले प्रोटोकोलों पर हस्ताक्षर करने के लिए 1947 में संयुक्त राष्ट्र के 17 सदस्य देश इकट्ठा हुए थे.

जिनीवा संधि: इंसानी बर्ताव के लिए नायाब मानक

शान्ति और सुरक्षा

संघर्ष और युद्ध वाले क्षेत्रों में घायल लोगों के अधिकारों की हिफ़ाज़त सुनिश्चित करने वाले जिनीवा कन्वेंशन के 70 वर्ष पूरे होने के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष ने कहा है कि इस संधि ने सशस्त्र संघर्षों की क्रूरता को सीमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

दूसरे विश्व युद्ध के बाद वजूद में आई इस संधि ने युद्ध और संघर्ष के माहौल में इंसानी बर्ताव के आधुनिक व अंतरराष्ट्रीय मानक स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई. इस संधि में चार कन्वेंशन और तीन अतिरिक्त प्रोटोकोल शामिल हैं. 

मानवीय बर्ताव के इन अंतरराष्ट्रीय मानकों पर 12 अगस्त 1949 को सहमति हुई और कुछ अपवादों को छोड़कर, 192 देशों ने इस संधि को मंज़ूरी दे दी थी.

पोलैंड के विदेश मंत्री जासेक ज़ापुतोविच ने अपने देश की तरफ़ से बोलते हुए कहा कि इस संधि को दुनिया के लगभग हर देश ने मंज़ूरी दी है और स्वीकार किया है और इसमें क़ानूनी और सैद्धांतिक मानक शामिल किए गए हैं.

जिनीवा संधि को परंपरागत अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के रूप में भी मान्यता मिली है जिन्हें सार्वभौमिक रूप में स्वीकार किया गया है.

इस समय सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता अगस्त महीने के लिए पोलैंड के पास है. उन्होंने कहा कि जिनीवा संधि किसी बहुपक्षीय सहमति का बहुत नायाब नमूना पेश करती है.

जिनीवा संधि में अन्य प्रावधानों के अलावा सशस्त्र संघर्षों के दौरान नाज़क हालात का सामना करने वाले लोगों और समूहों की सुरक्षा के मानक निर्धारित हैं. इनमें युद्धों और सशस्त्र संघर्षों में घायल और बीमार लोगों, युद्ध बंदियों, आम लोगों और क़ब्ज़ा किए हुए क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की मदद के लिए मानक तय किए गए हैं.

पोलैंड के विदेश मंत्री ने कहा कि चूँकि उनका देश अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर कुछ देशों द्वारा अमल नहीं करने के गंभीरे नतीजे भुगत चुका है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों को मज़बूत बनाना हमेशा ही उनके देश की प्राथमिकता रही है. उन्होंने कहा कि पोलैंड अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा क़ायम करने के क्षेत्र में भी अपनी ज़िम्मेदारी भली-भाँति  समझता है.

उन्होंने कहा, "मौजूदा दौर में युद्धों और संघर्षों में मानवीय जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी है कि देशों के सशस्त्र बल और निजी तौर पर काम करने वाले सशस्त्र गुट सभी तमाम नियम और क़ानूनों का सख़्ती से पालन करें."

"अगर मौजूदा क़ानूनों और नियमों का पालन किया जाए तो सशस्त्र संघर्षों में होने वाले भारी इंसानी नुक़सान और तकलीफ़ों से बचा जा सकता है."

पोलैंड के विदेश मंत्री ने टैक्नोलॉजी के विकास के साथ ही हथियारों की नई चुनौतियों की तरफ़ भी ध्यान दिलाया और ज़ोर देकर कहा कि तमाम आधुनिक हथियारों को अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के अनुरूप होना चाहिए. 

उन्होंने कहा, "कृत्रिम बुद्धिमत्तता और स्वचालित हथियार प्रणालियां - जैसेकि सैन्य रोबोट और सायबर हथियारों ने युद्धों के दौरान मानवीय विवेक और दख़ल को सीमित कर दिया है."

उन्होंने इस पर भी चिंता जताते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के उन प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा है जिनमें बेरहम और अमानवीय हथियारों पर पाबंदी लगाई गई है. 

उन्होंने जिनीवा कन्वेंशन के तहत अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के दो सिद्धांतों की तरफ़ विशेष ध्यान दिलाया जिनमें निहत्थे आम लोगों, युद्धबंदियों, घायलों और बीमारों की हिफ़ाज़त करना सभी पक्षों की ज़िम्मेदारी है. साथ ही सशस्त्र गुटों द्वारा युद्ध गतिविधियाँ चलाने और उनमें हथियारों का इस्तेमाल करने पर भी बहुत सी सीमाएँ निर्धारित हैं.

उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मानवीय सिद्धांत बहुत दबाव में हैं और नई चुनौतियों की जटिलता ने संघर्षों वाले हालात का जायज़ा लेने और उनके लिए सटीक नियम और क़ानून निर्धारित करने के काम को बहुत मुश्किल बना दिया है.