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आदिवासी जनसमूह की भाषा और संस्कृति को सहेजने की ज़रूरत

रूस में इज़होर नामक आदिवासी जनसमूह के लोगों ने अपनी भाषा और परंपरा को सहेजकर रखा है.
Photo: Dmitry Kharakka-Zaitsev
रूस में इज़होर नामक आदिवासी जनसमूह के लोगों ने अपनी भाषा और परंपरा को सहेजकर रखा है.

आदिवासी जनसमूह की भाषा और संस्कृति को सहेजने की ज़रूरत

संस्कृति और शिक्षा

नौ अगस्त को हर वर्ष दुनिया भर के आदिवासी जनसमूह लोगों के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. दुनिया भर में इस समय आदिवासी जनसमूह के लोगों की संख्या लगभग 37 करोड़ है जो 90 देशों में रहते हैं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस दिवस के अवसर पर आदिवासी जनसमूह के लोगों की पहचान और भाषाओं को सहेजकर रखने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है.

आदिवासी जनसमूह यानी Indigenous People की संख्या विश्व की कुल आबादी का लगभग पाँच प्रतिशत हिस्सा है.

लेकिन दुनिया भर के ग़रीब लोगों में उनका हिस्सा लगभग 15 फ़ीसदी है.

युक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस मौक़े पर कहा कि भाषाओं के ज़रिए हम आपसी संवाद करते हैं और भाषाएँ हमारी संस्कृति, इतिहास और पहचान से बहुत गहरे रूप में जुड़ी हुई होती हैं.

ध्यान दिला दें कि वर्ष 2019 को आदिवासी जनसमूह की भाषाओं का वर्ष भी घोषित किया गया है.

महासचिव ने कहा कि दुनिया भर में लगभग 6 हज़ार 700 भाषाएँ आदिवासी जनसमूह के लोगों के साथ जुड़ी हैं और उनमें से लगभग आधी भाषाएँ विलुप्त होने के कगार पर हैं.

उन्होंने कहा कि हमें याद रखना चाहिए कि विश्व में अगर एक भाषा भी विलुप्त होती है तो मानव सभ्यता उसके साथ परंपरागत ज्ञान का ख़ज़ाना खो बैठती है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने विश्व दिवस पर आदिवासी जनसमूह के लोगों की स्थिति की तरफ़ ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है कि दुनिया के अनेक हिस्सों में इन लोगों को अब भी बहुत से बुनियादी अधिकार हासिल नहीं हैं.

उनके साथ व्यवस्थागत भेदभाव होता है, उन्हें मुख्य धारा से अलग-थलग रखा जाता है जिससे उनके जीवन, उनकी संस्कृति और पहचान के लिए ख़तरा पैदा होता है.

ये स्थिति आदिवासी समूह के लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र और 2030 के टिकाऊ विकास एजेंडा के विपरीत है. ध्यान रहे कि इस एजेंडा में किसी को भी पीछे ना छोड़ने का लक्ष्य रखा गया है.

उप महासचिव आमिना मोहम्मद ने भी इस मौक़े पर कहा कि शिक्षा के ज़रिए ये सुनिश्चित करने में आसानी हो सकती है कि आदिवासी समूह के लोगों को अपनी संस्कृति और पहचान को सहेजने के साथ-साथ उनका आनंद लेने के भी मौक़े मिल सकें.

उन्होंने कहा कि बहुभाषी और बहु-संस्कृति वाली शिक्षा मुहैया कराने में अगर हम नाकाम होते हैं तो इससे आदिवासी समूह के लोगों के हितों और वजूद के लिए ख़तरा पैदा हो जाता है.