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सशस्त्र संघर्षों में फंसे बच्चों के लिए मिलकर प्रयास करने होंगे

वर्ष 2018 में सशस्त्र संघर्षों में बाल अधिकारों के हनन के 24 हज़ार मामले सामने आए हैं.
UNICEF/UNI150195/Diffidenti
वर्ष 2018 में सशस्त्र संघर्षों में बाल अधिकारों के हनन के 24 हज़ार मामले सामने आए हैं.

सशस्त्र संघर्षों में फंसे बच्चों के लिए मिलकर प्रयास करने होंगे

मानवाधिकार

बच्चों और सशस्त्र संघर्षों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि वर्जीनिया गांबा ने कहा है कि सशस्त्र संघर्षों में फंसे बच्चों की मदद के लिए सुरक्षा परिषद को एकजुट होना होगा. शुक्रवार को उन्होंने कहा कि बेहद कठिन परिस्थितियों में जीवन गुज़ारने को मजबूर हैं और उनकी व्यथा को देखते हुए सुरक्षा परिषद को एक साथ मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है.

सुरक्षा परिषद को जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि 2018 में बच्चों के हताहत होने के रिकॉर्ड मामलों की पुष्टि हुई. साथ ही यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश की उन चिंताओं से सहमति जताई जिसमें उन्होंने कहा था कि बाल अधिकारों के हनन में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा बलों का हाथ है.

“यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे तमाम प्रयासों के बावजूद हम अभी एक ऐसे बिंदु पर नहीं पहुंचे हैं जहां हम विश्वास से कह सकें कि स्थिति में साल दर साल सुधार हो रहा है."

सुरक्षा परिषद द्वारा बच्चों और सशस्त्र संघर्षों पर पारित प्रस्ताव को 2019 में 20 साल पूरे हो रहे हैं. इसके अलावा इसी वर्ष बाल अधिकारों पर संधि की 30वीं वर्षगांठ है.

वर्जीनिया गांबा ने कहा कि पिछले महीने माली में उन्होंने बच्चों की हालत को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करते हुए लड़कों और लड़कियों के लिए संरक्षण बढ़ाने की पैरवी की थी.

“यह स्पष्ट है कि बाल संरक्षण विरोधी पक्षों के बीच आपसी विश्वास बढ़ाने का मुद्दा बन सकता है. यह शांति प्रक्रिया को सकारात्मक ढंग से प्रभावित कर सकता है – जैसाकि हमने हाल में देखा जब दो गुटों ने आपसी दुश्मनी ख़त्म करने का संकल्प लिया.”

एक विशेष प्रतिनिधि के तौर पर उन्होंने कई ऐसे क्षेत्रों में हिंसा में शामिल पक्षों से बातचीत की जो वार्ता का हिस्सा बनना चाहते थे और इससे प्रेरणादायी सकारात्मक परिणाम मिले हैं.

बच्चों और सशस्त्र संघर्षों पर यूएन की विशेष प्रतिनिधि वर्जीनिया गांबा.
UN Photo/Loey Felipe
बच्चों और सशस्त्र संघर्षों पर यूएन की विशेष प्रतिनिधि वर्जीनिया गांबा.

अनेक मामले ऐसे सामने आए जहां निगरानी और रिपोर्टिंग तंत्र का इस्तेमाल होता रहा है. इससे सरकार को कार्रवाई आगे बढ़ाने और तत्काल प्रगति में मदद मिली है.

यूएन प्रतिनिधि ने सुरक्षा परिषद से पुकार लगाई कि अब उसे दोगुने प्रयास करने की आवश्यकता है.

सशस्त्र संघर्षों के दौरान बाल अधिकारों के हनन के छह गंभीर मामले इस प्रकार हैं:

- बच्चों की सैनिकों के रूप में भर्ती और इस्तेमाल

- बच्चों की हत्या करना या उन्हें अपंग बनाना

- बच्चों के ख़िलाफ़ यौन हिंसा

- स्कूलों और अस्पतालों पर हमले

- बच्चों को अगवा किया जाना

- मानवीय सहायता न पहुंचने देना

विशेष प्रतिनिधि ने चिंता जताई कि बलात्कार और यौन हिंसा के अन्य रूपों के  मामलों की सही संख्या का पता नहीं चल पाता क्योंकि इससे कथित कलंक और बदले की कार्रवाई का भय होता है.

इसके अलावा ग़वाहों को संरक्षण न मिल पाने और पीड़ितों की देखभाल की सेवाएं न होने से भी बच्चे सामने आने से कतराते हैं.

इस स्थिति से निपटने के लिए जवाबदेही बढ़ाने और देखभाल के लिए ज़रूरी सेवाएं मुहैया कराने की पैरवी की गई है.

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की प्रमुख हेनरिएटा फ़ोर ने अपने संबोधन में रिपोर्ट के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए कहा कि 2018 में सशस्त्र संघर्षों में बाल अधिकारों के हनन के 24 हज़ार मामले सामने आए हैं.

इनमें से आधे मामले बच्चों की मौत होने या उन्हें अपंग बनाए जाने के हैं. यूनीसेफ़ प्रमुख ने कहा कि अभी और ज़्यादा प्रयास करने होंगे क्योंकि ये सिर्फ़ वो मामले हैं जिनकी पुष्टि हो पाई है.

विस्फोटक हथियारों और बच्चों पर उनके प्रभाव के संबंध में उन्होंने गहरी चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि 2009 में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1882 के बावजूद अभी सशस्त्र संघर्ष में बाल अधिकारों के हनन के मामले रोकने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि बच्चों का सैनिकों के तौर पर इस्तेमाल रोकने के लिए ज़िम्मेदारी सरकारों की है लेकिन यूनीसेफ़ भी इस विषय में परियोजनाओं पर काम कर रहा है.

उन्होंने अनुरोध किया है कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों के विरुद्ध अत्यधिक सैन्य बल प्रयोग की रोकथाम के लिए अधिकतम संयम बरता जाना चाहिए.

यूनीसेफ़ ने हथियारबंद गुटों के साथ जुड़े बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक सुरक्षा और बुनियादी अधिकारों के संबंध में विशेष रूप से चिंता व्यक्त की है.

उन्होंने कहा कि सालों के भयावह अनुभव के बाद जब बच्चे इन गुटों को छोड़ते हैं तो उन्हें मानवीय मदद और संरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन इसके बजाए उनका बहिष्कार किया जाता है.

यूनीसेफ़ प्रमुख ने स्पष्ट किया कि अधिकांश मामलों में बच्चे बेहद तनाव, डर या बहलाने-फुसलाने की वजह से सशस्त्र गुटों में शामिल होते हैं.

उनका कहना है कि ऐसे बच्चों को समाज में फिर से एकीकृत किया जाना चाहिए और उनकी जटिल ज़रूरतें पूरी की जा सकें.