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म्यांमार की सेना की व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक की माँग

मिशन ने अपनी रिपोर्ट में म्यांमार की सेना पर पाबंदियां लगाने की मांग की है.
IRIN/Steve Sandford
मिशन ने अपनी रिपोर्ट में म्यांमार की सेना पर पाबंदियां लगाने की मांग की है.

म्यांमार की सेना की व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक की माँग

मानवाधिकार

म्यांमार की सेना पर आरोप लगा है कि अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर व्यापार के ज़रिए सेना जो धन एकत्र कर रही है उसका इस्तेमाल मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों को अंजाम देने में किया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र के स्वंतत्र समूह की एक नई रिपोर्ट में म्यांमार में सेना के व्यापारिक हितों को गहराई से परखा गया है और ज़िम्मेदार लोगों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की गई है.

तथ्य जुटाने के काम में लगे मिशन ने म्यांमार की सेना पर पाबंदियां लगाने और उसे हथियार बेचे जाने पर रोक लगाने की अपील की है.

यह पहला मौक़ा है जब किसी रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि म्यांमार की सेना किस तरह अपने व्यापारिक हितों, विदेशी कंपनियों और हथियारों पर समझौतों के ज़रिए जातीय समुदायों के विरुद्ध सैन्य अभियान चलाती है.

रिपोर्ट के अनुसार इन अभियानों को अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत गंभीर अपराधों की श्रेणी में रखा जा सकता है जिन्हें अंजाम देते समय वह नागरिक प्रशासन की देखरेख और जवाबदेही के बिना अपने काम करती है.

सेना पर आरोप है कि कचीन, शान और राखीन प्रांत में व्यापक और सुनियोजित ढंग से मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया – इसमें 2016 से अब तक सात लाख से ज़्यादा रोहिंज्या शरणार्थियों को जबरन बांग्लादेश भेजा जाना भी शामिल है.

इस अवधि के दौरान सात देशों की 14 विदेशी कंपनियों ने म्याँमार की सेना को लड़ाकू विमान, बख़्तरबंद गाड़ियां, युद्धपोत, मिसाइल और मिसाइल लॉंचर उपलब्ध कराए.

मिशन की रिपोर्ट में दो कंपनियों का नाम लिया गया है – म्यांमार इकॉनॉमिक होल्डिंग्स लिमिटेड और म्यांमार इकॉनॉमिक कॉरपोरेशन.

इन दोनों कंपनियां का स्वामित्व वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के पास है और कामकाज में उनका प्रभाव रहता है. इन अधिकारियों में कमांडर-इन-चीफ़ सीनियर जनरल मिन ऑंग ह्लाइंग और डिप्टी कमांडर-इन-चीफ़ वाइस सीनियर जनरल सोई विन का नाम शामिल हैं.

म्याँमार से बचकर भागे रोहिंज्या शरणार्थी बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में भी अक्सर मौसम की मार जैसी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.
IOM/Mohammed
म्याँमार से बचकर भागे रोहिंज्या शरणार्थी बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में भी अक्सर मौसम की मार जैसी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.

इससे पहले मिशन टीम दोनों अधिकारियों पर जनसंहार, मानवता के विरुद्ध अपराध और युद्धापराध के आरोपों की जांच करने और मुक़दमा चलाने का आग्रह कर चुकी है.

रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि राखीन प्रांत में सेना की ओर से वित्तीय संसाधन प्राप्त परियोजनाओं में दोनों कंपनियों की अहम भूमिका रही है.

उदाहरण के तौर पर म्यांमार-बांग्लादेश सीमा पर एक अवरोध के रूप में दीवार का निर्माण किया गया है जिससे रोहिंज्या समुदाय के म्यांमार से जुड़े होने के सबूतों को मिटाया जा सके.

रिपोर्ट में मांग की गई है कि ऐसी कंपनियों के अधिकारियों की जांच की जानी चाहिए और आपराधिक मुक़दमा चलाए जाने पर विचार होना चाहिए

इस रिपोर्ट में विदेशी कंपनियों की भूमिका को क़रीब से जांचा गया है. रिपोर्ट के अनुसार 15 विदेशी कंपनियों के सेना के साथ साझा उद्यम हैं और 44 कंपनियां ऐसी हैं जो किसी न किसी रूप में सेना द्वारा संचालित व्यवसायों से जुड़ी हैं.

इन विदेशी कंपनियों पर संदेह जताया गया है कि वे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार और मानवीय क़ानूनों के उल्लंघन के मामलों में शामिल हो सकती हैं.

इसलिए गहन जांच के ज़रिए यह सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी है कि वे म्यांमार की सेना को लाभ नहीं पहुंचा रही हैं.

जांच मिशन टीम के प्रमुख मारज़ूकी दारुसामन पेशे से एक वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता और इंडोनेशिया के पूर्व अटॉर्नी जनरल हैं.

उनका कहना है कि इस रिपोर्ट में जो अनुशंसा की गई है उससे सेना के आर्थिक हितों पर चोट पहुंचेगी और सुधार प्रक्रिया में सेना द्वारा खड़े किए जाने वाले अवरोध दूर किए जा सकेंगे.   

“हमें ग़ैर-सैन्य कंपनियों के साथ आर्थिक संबंधों और व्यापार को बढ़ावा देना होगा. इससे उदारीकरण और म्यांमार की अर्थव्यस्था को प्रोत्साहन मिलेगा - देश के प्राकृतिक संसाधन के सैक्टर को भी. और यह इस ढंग से होगा कि जनसंख्या के लिए जवाबदेही, समान हिस्सेदारी और पारदर्शिता में योगदान दिया जा सके.”

तथ्य जुटाने के लिए बनाया गया मिशन अपनी अंतिम रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में सितंबर 2019 में प्रस्तुत करेगा.