लीबिया: भूमध्य सागर में फँसे लोगों के लिए अहम यूरोपीय समझौता

संयुक्त राष्ट्र की दो प्रमुख एजेंसियों के अध्यक्षों ने लीबिया में शरणार्थियों और प्रवासियों को मनमाने तरीक़े से बंदी बनाए जाने पर तुरंत रोक लगाने का आहवान किया है. भूमध्य सागर के रास्ते बेहतर मंज़िल की तलाश में निकलने वाले लोगों को एक नई वितरण प्रणाली के ज़रिए सुरक्षित विकल्प मुहैया कराने के वास्ते यूरोपीय संघ के देशों के बीच हुए एक समझौते के बाद ये आहवान किया गया है.
अंतरराष्ट्रीय प्रवासन एजेंसी (आईओएम) के महानिदेशक एंतोनियो वितोरीनो और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) के उच्चायुक्त फिलिपो ग्रांडी ने मंगलवार को कहा, “हाल के सप्ताहों के दौरान त्रिपोली में हुई हिंसा की वजह से हालात अभूतपूर्व रूप से ख़राब हो गए हैं और तुरंत ठोस कार्रवाई करने की ज़रूरत है.”
यूरोपीय देशों के बीच इस मुद्दे पर मतभेद थे कि भूमध्यसागर के रास्तों में बचाए जाने वाले लोगों को कौन से देश कितनी संख्या में स्वीकार करेंगे. इन मतभेदों के कारण यूरोपीय देशों ने साल 2019 के आरंभ में भूमध्य सागर में गश्त लगाना बंद कर दिया था क्योंकि इटली ने सागर में बचाए गए लोगों की एकमुश्त संख्या को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था.
In Paris today, some European states moved closer to a shared, predictable disembarkation mechanism for refugees+migrants arriving across the Mediterranean - now is the time to depoliticize the issue, overcome differences and make practical plans. https://t.co/iQ3oxxKVyc
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अलबत्ता अभी विस्तृत ब्यौरा नहीं मिला है लेकिन ख़बरों में जानकारी मिली है कि यूरोपीय संघ के 14 देशों के बीच प्रवासियों और शरणार्थियों को बराबर संख्या में स्वीकार करने के मुद्दे पर सहमति बन गई है.
संयुक्त राष्ट्र अधिकारियों ने बंदी बनाए गए लोगों को रिहा करने के लिए एक व्यवस्थित प्रक्रिया बनाए जाने की हिमायत की है. इन एजेंसियों का कहना है कि बंदी बनाए गए लोगों को शहरी इलाक़ों या बंदीगृहों में, जहाँ भी रखा जाए, उन्हें कुछ सीमा तक घूमने-फिरने, किसी घर नुमा जगह पर रहने, किसी प्रकार के ख़तरे या नुक़सान से सुरक्षा में सहायता उपलब्ध कराई जाए. साथ ही मानवीय सहायता एजेंसियों को नियमित और बिना किसी बाधा के स्वतंत्र रूप से निगरानी करने की छूट दी जाए.
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने ज़ोर देकर कहा कि चूँकि लीबिया में इन लोगों को प्रताड़ित किए जाने, बुरे बर्ताव और यहाँ तक कि उनकी मौत का भी ख़तरा है, इसलिए भूमध्य सागर में बचाए गए लोगों को क़तई भी लीबिया में बंदीगृहों को वापिस ना भेजा जाए.
एजेंसियों का कहना है कि भूमध्य सागर में ख़तरनाक़ यात्राओं पर निकलने वाले लोगों के हित के लिए यूरोपीय संघ के देशों के बीच हुआ समझौता बहुत स्वागत योग्य घटनाक्रम है. इन एजेंसियों के उच्चाधिकारियों ने कहा, “ख़तरे का शिकार होने वाले लोगों की तलाश करना और उन्हें बचाने का कार्य स्वयं-सेवी संगठनों या व्यासायिक जहाज़ों पर छोड़ दिए जाने की यथा-स्थिति को जारी नहीं रहने दिया जा सकता.”
इन एजेंसियों के उच्चाधिकारियों ने यूरोपीय संघ की तरफ़ से सरकारी तलाशी और बचाव अभियान चलाने का भी अनुरोध किया है, जैसाकि हाल के वर्षों के दौरान चलाया जाता था. संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का ये भी कहना था कि स्वयं-सेवी संगठनों की भूमिका और योगदान को समुचित पहचान मिलनी चाहिए और उन्हें भूमध्य सागर में लोगों की ज़िंदगियाँ बचाने के लिए ना तो बदनाम किया जाए और ना ही उनकी आपराधिक छवि बनाई जाए.
एजेंसियों ने कहा कि भूमध्य सागर में फँसने वाले लोगों की तलाश करने और उन्हें बचाने के लिए जिन व्यावसायिक जहाज़ों पर भरोसा किया जाता है, उन्हें बचाए गए लोगों को वापिस लीबियाई सीमा गार्ड के हवाले करने के लिए नहीं कहा जा सकता, ना ही उन्हें लीबियाई क्षेत्र में फिर से वापिस भेजने के लिए कहा जा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने कहा कि भूमध्य सागर से लोगों को बचाए जाने के बाद उन्हें कहाँ भेजा जाए, इस बारे में कोई अस्थाई व्यवस्था करने और उसके बाद उन्हें यूरोपीय संघ के देशों में भेजे जाने पर हुई सहमति बहुत उत्साहजनक है. “इस मामले में मिले-जुले प्रयासों से कोई हल निकालना सभी के हित में है.”
संयुक्त राष्ट्र की दोनों एजेंसियों ने ज़ोर देकर कहा कि लीबिया में स्थाई शांति स्थापित करने के रास्ते निकालना सभी के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए.
इस बीच ऐसे लोगों को लीबिया से बाहर निकालना और किसी अन्य स्थान पर ही उनका पुनर्वास कराना बहुत अहम मुद्दा है, जिन लोगों की जान को ख़तरा है.
उनका कहना था, “सबसे पहले तो इसी समस्या का हल ढूँढना होगा कि लोगों को आख़िर अपने घर छोड़ने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ता है.”
एजेंसियों के मुखियाओं ने कहा कि उत्तर और सब सहारा अफ्रीका क्षेत्र में बहुत से संघर्ष तो अनसुलझे ही रहेंगे और ऐसे में विकास संबंधी चुनौतियाँ भी जारी रहेंगी, तो कुछ लोग तो ख़ुद और अपने परिवारों के लिए बेहतर हालात की तलाश में निकलते ही रहेंगे.
संयुक्त राष्ट्र के इन दो प्रमुख उच्चाधिकारियों का कहना था कि “अंतरराष्ट्रीय समुदाय को युद्धरत पक्षों के बीच बातचीत संभव बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए ताकि एक टिकाऊ राजनैतिक समाधान निकाला जा सके जिससे देश में स्थिरता और सुरक्षा का माहौल बन सके.”