ग़ैर-क़ानूनी मानव हत्या के मामलों में चिंताजनक बढ़ोत्तरी

विश्व भर में साल 2017 में चार लाख 64 हज़ार लोग मानव हत्या (होमीसाइड) का शिकार हुए और यह संख्या इसी अवधि में सशस्त्र हिंसा की वजह से होने वाली मौतों की तुलना में पांच गुना ज़्यादा है. मादक पदार्थों और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) की ओर से जारी नई रिपोर्ट ‘ग्लोबल स्टडी ऑन होमीसाइड 2019’ रिपोर्ट में ये तथ्य सामने आए हैं.
रिपोर्ट के अनुसार रहने के लिहाज से मध्य अमेरिका दुनिया में सबसे ज़्यादा ख़तरनाक स्थान है जहां प्रति एक लाख लोगों पर 62 मानव हत्याएं होती हैं.
एशिया, योरोप और ओशनिया क्षेत्र को तुलनात्मक रूप में सुरक्षित माना गया है जहां प्रति एक लाख आबादी पर हत्या की दर क्रमश: 2.3, 3.0 और 2.8 दर्ज की गई जो वैश्विक औसत (6.1) से कहीं नीचे है.
अफ़्रीका में यह दर 13.0 आंकी गई, हालांकि यूएन एजेंसी ने माना है कि वहां आंकड़े जुटाने की प्रक्रिया में कमी रह जाने की संभावना रहती है.
इस सदी की शुरुआत से ही सगंठित अपराध और हिंसक घटनाओं में मौतों के बीच गहरा संबंध रहा है और नई रिपोर्ट भी इसी संबंध को रेखांकित करती है.
यूएन एजेंसी के कार्यकारी निदेशक यूरी फ़ेदोतोफ़ ने बताया कि साल 2017 में 19 फ़ीसदी मानव हत्याओं के पीछे का कारण सिर्फ़ अपराध था.
सशस्त्र संघर्ष और आतंकवाद से होने वाली मौतों को जोड़ दें तो भी उनसे ज़्यादा मौतें अपराध की वजह से हुई हैं.
रिपोर्ट दर्शाती है कि हिंसा और अशांति की तरह, संगठित अपराध भी देशों को अस्थिर करता है, सामाजिक-आर्थिक विकास की प्रक्रिया कमज़ोर बनाता है और क़ानून के राज के क्षरण का कारण बनता है.
📢Homicide Report OUT NOW‼️In 2017 5️⃣ times more people were killed in #homicide than in armed conflict.464,000 people killed in homicides89,000 people killed in armed conflicts🧐#HomicideReport 2019 https://t.co/0oGULYuGME 📑Press Release https://t.co/N8y4nW90sW pic.twitter.com/bXRmMaP3Tz
UNODC
यूएन एजेंसी का कहना है कि अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने निर्णायक क़दम नहीं उठाए तो टिकाऊ विकास के 16वें लक्ष्य को पाना मुश्किल होगा.
यह लक्ष्य हर प्रकार की हिंसा और उसकी वजह से होने वाली मौतों में व्यापक कमी लाने पर केंद्रित है.
विश्व के सभी क्षेत्रों में लड़कों के मानव हत्या का शिकार होने की संभावना उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती जाती है.
वैश्विक स्तर पर 15 से 29 साल की उम्र वाले युवा ये जोखिम सबसे ज़्यादा झेलते हैं.
उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में 18-19 वर्ष के युवाओं के मानव हत्या का शिकार होने की दर प्रति लाख आबादी में 46 आंकी गई है – जो अन्य क्षेत्रों की तुलना में कहीं ज़्यादा है.
साथ ही वहां ऐसी हिंसक घटनाओं में बंदूकों का इस्तेमाल भी ज़्यादा होता है.
“हिंसा के उच्च स्तर और युवा पुरुषों में मज़बूत संबंध देखा गया है, अपराध करने वालों और पीड़ित दोनों में. इसीलिए हिंसा की रोकथाम के लिए कार्यक्रमों में युवा पुरुषों को सहारा देने पर केंद्रित होने चाहिए ताकि उन्हें गैंग व ड्रग्स के तस्करी जैसे काम लुभा न पाएं.”
मानव हत्या के पीड़ितों की संख्या में पुरुषों की तुलना में महिलाओं और लड़कियों की हिस्सेदारी कम है लेकिन अपने साथी या पारिवारिक कारणों से जुड़ी मानव हत्याओं का बोझ उन्हीं को सहना पड़ता है.
रिपोर्ट के अनुसार मानव हत्या के ऐसे मामलों में 10 में से नौ संदिग्ध पुरुष ही होते हैं और कई बार वास्तविक मामलों की सही संख्या का पता भी नहीं चल पाता या उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है.
सगंठित अपराधों से परे जाकर इस अध्ययन में कई अन्य कारकों की भी पहचान की गई है जो इस समस्या को बढ़ावा दे रहे हैं.
बंदूकों की उपलब्धता, नशीली दवाओं और शराब, असमानता, बेरोज़गारी, राजनैतिक अस्थिरता जैसे मूल कारणों से निपटकर इस चुनौती से निपटा जा सकता है.
रिपोर्ट में भ्रष्टाचार पर लगाम कसने, क़ानून के राज को मज़बूत बनाने और सार्वजनिक सेवाओं – विशेषकर शिक्षा - में निवेश की आवश्यकता को भी रेखांकित किया गया है.
विशेषज्ञों का मानना है कि हिंसक अपराधों को घटाने में ये क़दम अहम भूमिका निभा सकते हैं.
इस रिपोर्ट में घातक गैंग हिंसा से लेकर असमानता और लिंग संबंधी हत्याओं तक, समस्या के व्यापक आयामों पर नज़र डाली गई है.
एजेंसी के कार्यकारी निदेशक का कहना है कि आपराधिक नेटवर्क से उपजने वाले ख़तरों का सामना लक्षित नीतियों के ज़रिए किया जा सकता है.
उदाहरण के तौर पर, सामुदायिक संबंधों को बढ़ावा देकर, पुलिस गश्त बढ़ाकर और पुलिस में सुधार प्रक्रिया के ज़रिए इन ख़तरों से निपटा जा सकता है और आम जनता में अधिकारियों के प्रति विश्वास क़ायम करने में भी मदद मिल सकती है.
आपराधिक गैंग में फंसे युवाओं को मदद की ज़रूरत है ताकि वे ख़ुद को इस समस्या से उबार सकें. इस संबंध में सामाजिक कार्य, पुनर्वास कार्यक्रमों और अहिंसक विकल्पों के प्रति जागरूकता के प्रसार की आवश्यकता पर बल दिया गया है.
इन प्रयासों को ज़्यादा प्रभावी तभी बनाया जा सकता है जब उन्हें दक्षिण और मध्य अमेरिका, अफ़्रीका और एशिया के कुछ देशों और उन देशों में लागू किया जाए जहां मानव हत्या की राष्ट्रीय दर ऊंची है.
रिपोर्ट के मुताबिक़ ऐसे मामले कुछ देशों, प्रांतों और शहरों में ज़्यादा व्याप्त हैं और इन ‘हॉटस्पॉट’ पर विशेष ध्यान केंद्रित कर घातक हिंसा से निपटा जा सकता है.
यूएन एजेंसी का अध्ययन दर्शाता है कि 1992 में मानव हत्या के चार लाख मामले दर्ज किए गए जो 2017 में बढ़कर चार लाख 60 हज़ार से ज़्यादा हो गए. लेकिन जनसंख्या वृद्धि की वजह से मानव हत्या की वास्तविक दर में कमी आई है और यह 1992 में 7.2 से घटकर 2017 में 6.1 रह गई है.