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असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में बदलावों पर गंभीर चिंता

अहमद शहीद धर्म और आस्था की स्वतंत्रता मामलों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत हैं.
UN Photo/Jean-Marc Ferré
अहमद शहीद धर्म और आस्था की स्वतंत्रता मामलों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत हैं.

असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में बदलावों पर गंभीर चिंता

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत के असम राज्य में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) में लगातार किए जा रहे बदलावों और लाखों लोगों पर इनसे होने वाले भारी नुक़सान की संभावनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की है. प्रभावित होने वाले ज़्यादातर लोग अल्पसंख्यक समुदायों से हैं. इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इन अल्पसंख्यक समुदायों के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे नफ़रत भरे माहौल पर भी गंभीर चिंता जताई है.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि 'हेट स्पीच' के इस माहौल से असम में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लाखों लोगों पर अलग-थलग पड़ने और अस्थिरता व अनिश्चितता का ख़तरा पैदा हो गया है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, “राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में बदलावों की वजह से देश में नफ़रत के माहौल को बढ़ावा मिल सकता है जिससे धार्मिक असहिष्णुता और भेदभाव भी ज़ोर पकड़ सकता है.”

जून 2018 में असम में रहने वाले 40 लाख से ज़्यादा लोगों के नाम राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के संशोधित मसौदे से बाहर कर दिए गए थे. 

इनमें विशेष रूप से बांग्ला मूल के मुस्लिम और हिंदू शामिल थे.

उसके बाद से लगभग तीस लाख लोगों ऐसे लोगों ने रजिस्टर की समीक्षा करने के दावे दायर किए हैं जिनके नाम संशोधित रजिस्टर से निकाल दिए गए थे.

साथ ही लगभग दो लाख ऐसे के ख़िलाफ़ आपत्तियाँ दर्ज कराई गई हैं जिनके नाम पहले के रजिस्टर में शामिल थे.

हम भारत सरकार का आहवान करते हैं कि वो असम व अन्य राज्यों में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लागू करने के बारे में कोई फिर से सोचे. साथ ही ये भी सुनिश्चित करे कि एनआरसी को लागू करने के कारण कोई व्यक्ति देश विहीन ना हो जाएँ, उनके साथ भेदभावपूर्ण बर्ताव ना हो और उन्हें मनमाने तरीक़े से उनकी नागरिकता व राष्ट्रीयता से वंचित ना कर दिया जाए. लोगों को बड़े पैमाने पर जबरन उनके स्थानों से ना हटाया जाए और प्रभावित लोगों को मनमाने तरीक़े से बंदी बनाकर ना रखा जाए 

इस संशोधित राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के अंतिम रूप के प्रकाशन की तारीख़ 31 जुलाई 2019 तय की गई है.

ऐसी ख़बरें हैं कि जिन निवासियों के नाम रजिस्टर से निकाल दिए गए हैं, उन्हें असम में रहने वाले “विदेशी” क़रार दे दिया जाएगा.

1946 के विदेशी (नागरिक) अधिनियम के सैक्शन 9 के अंतर्गत ऐसे लोगों को ये साबित करना होगा कि वे “ग़ैर-क़ानूनी विदेशी” नहीं हैं.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है, “असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के संशोधित रूप को लागू करने और लाखों लोगों पर दीर्घकालीन प्रभावों के बारे में हम बहुत चिंतित हैं."

"विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के देश विहीन हो जाने का ख़तरा पैदा हो जाएगा, या तो उन्हें जबरन देश से निकाला जाएगा या फिर उन्हें लंबी अवधि के लिए बंदीगृहों में रखा जाएगा.”

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, “किसी व्यक्ति की नागरिकता या राष्ट्रीयता निर्धारित करने की प्रक्रिया में ज़िम्मेदारी देश की सरकार पर होनी चाहिए, ना कि किसी व्यक्ति पर.”

जटिलताएँ व त्रुटियाँ

विशेषज्ञों ने इस मुद्दे पर मौजूदा क़ानूनी प्रक्रिया की भेदभावकारी और मनमानी प्रकृति की तरफ़ भी ध्यान दिलाया.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों के शब्दों में, “ये बहुत अफ़सोस की बात है कि बड़ी संख्या में आपत्तियों और अदालतों में दायर दावों व लंबित संशोधन समीक्षा की अपीलों के बावजूद संशोधित राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के प्रकाशन की अंतिम तारीख़ 31 जुलाई 2019 ही निर्धारित है.”

ये भी ग़ौरतलब है कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की जटिल प्रक्रियाओं, विदेशी का दर्जा तय करने वाले ट्राइब्यूनलों की प्रक्रियाओं के बारे में अनिश्चितताओं और बहुत सी त्रुटियों के बारे में भी गंभीर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की प्रक्रिया और मतदान के लिए पंजीकरण के बीच तालमेल के अभाव की तरफ़ भी ध्यान खींचा है.

साथ ही विदेशी नागरिकता निर्धारित करने संबंधी एक अलग न्यायिक प्रक्रिया असम विदेशी ट्राइब्यूनल में होने का मुद्दा भी उठाया है.

“ये मुद्दे इस पूरे प्रकरण को बहुत जटिल बनाते हैं और मनमाने तरीक़े से कार्रवाई करने और पूर्वाग्रह के माहौल के दरवाज़े खोलते हैं.”

भारत सरकार द्वारा संशोधित राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के असम में लागू किए जाने वाले प्रारूप को देश में अन्य क्षेत्रों में भी लागू किए जाने के इरादों पर भी गंभीर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं.

ख़ासतौर से मिज़ोरम के विधान मंडल ने मार्च 2019 में एक विधेयक मंज़ूर कर दिया है जिसमें “निवासियों” और “ग़ैर-निवासियों” के लिए अलग-अलग रजिस्टर रखे जाने का प्रावधान किया जाएगा.

विशेषज्ञों ने कहा कि उन्हें इन चिंताओं और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर प्रक्रिया के बारे में स्पष्टीकरण के अनेक अनुरोध भेजने के बावजूद भारत सरकार की तरफ़ से अभी  तक कोई जवाब नहीं मिला है.

“हम भारत सरकार का आहवान करते हैं कि वो असम व अन्य राज्यों में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लागू करने के बारे में कोई फिर से सोचे. साथ ही ये भी सुनिश्चित करे कि एनआरसी को लागू करने के कारण कोई व्यक्ति देश विहीन ना हो जाएँ, उनके साथ भेदभावपूर्ण बर्ताव ना हो और उन्हें मनमाने तरीक़े से उनकी नागरिकता व राष्ट्रीयता से वंचित ना कर दिया जाए."

"लोगों को बड़े पैमाने पर जबरन उनके स्थानों से ना हटाया जाए और प्रभावित लोगों को मनमाने तरीक़े से बंदी बनाकर ना रखा जाए.”

ये रिपोर्ट विशेष रूप से तीन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने मिलकर तैयार की है. इनमें अहमद शहीद धर्म और आस्था की स्वतंत्रता मामलों पर संयुक्त राष्ट्र के स्पेशल रैपोर्टेयर हैं.

फ़र्नांड डी वेरेन्नेस अल्पसंख्यक मुद्दों पर स्पेशल रैपोर्टेयर हैं और सुश्री तेंदाई एश्यूम नस्लवाद, जातीय भेदभाव और असहिष्णुता के अन्य व सामयिक रूपों संबंधी मामलों पर स्पेशल रैपोर्टेयर हैं.