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तापमान बढ़ने से 2,400 अरब डॉलर का नुक़सान होने का अनुमान

वियतनाम में एक निर्माण स्थल पर मेहनतकश लोग: निर्माण कार्य व कृषि क्षेत्र सबसे ज़्यादा गर्मी से प्रभावित होते हैं.
World Bank/Mai Ky
वियतनाम में एक निर्माण स्थल पर मेहनतकश लोग: निर्माण कार्य व कृषि क्षेत्र सबसे ज़्यादा गर्मी से प्रभावित होते हैं.

तापमान बढ़ने से 2,400 अरब डॉलर का नुक़सान होने का अनुमान

जलवायु और पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में कामकाज की उत्पादन क्षमता पर गंभीर असर पड़ने वाला है जिससे आमदनी वाले कामकाज और भारी आर्थिक नुक़सान होगा. ग़रीब देश सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे और कृषि व निर्माण क्षेत्र सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक तापमान वृद्धि की वजह से होने वाली थकान और कार्यक्षमता में कमी के कारण साल 2030 तक दुनिया भर में लगभग आठ करोड़ नियमित आमदनी वाले कामकाज ख़त्म हो जाएंगे.

ध्यान रहे कि 21वीं सदी के अंत तक पृथ्वी के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी होने के अनुमान व्यक्त किए गए हैं. इस आधार पर ये अनुमान लगाए गए हैं कि वर्ष 2030 तक भारी गर्मी होने की वजह से दुनिया भर में कामकाजी घंटों की लगभग 2.2 प्रतिशत संख्या का नुक़सान होगा.

ये क़रीब आठ करोड़ नियमित कामकाजी लोगों की कुल उत्पादन क्षमता के बराबर होगा. दूसरे शब्दों में कहें तो दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को लगभग 2400 अरब डॉलर का नुक़सान होगा.  

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रिपोर्ट आगाह करती है कि ये काफ़ी सीमित आकलन है और इस उम्मीद पर लगाया गया है कि पृथ्वी का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा नहीं बढ़ेगा. गर्मी से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्र खेतीबाड़ी और निर्माण कार्य दोनों ही अगर किसी छाँव में किए जाएँ तो नतीजे बेहतर हो सकते हैं.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की इस नई रिपोर्ट में जलवायु, मनोवैज्ञानिक और रोज़गार संबंधी आँकड़े जुटाकर उनसे वर्तमान और भविष्य में कामकाजी उत्पादन क्षमता पर राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर होने नुक़सानों के बारे में अनुमान पेश किए गए हैं.

हीट स्ट्रैस यानी अत्यधिक गर्मी इस रूप में परिभाषित किया जाता है जो कोई भी व्यक्ति शारीरिक कमज़ोरी महसूस किए बिना सहन कर सके.

हीट स्ट्रैस आमतौर पर 35 डिग्री सेल्सियस के ज़्यादा तापमान या गर्मी में महसूस होता है.

किसी भी कामकाज के दौरान ज़रूरत से ज़्यादा गर्मी पड़ने से स्वास्थ्य संबंधी ख़तरे होते हैं, व्यक्ति की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कार्यक्षमता कम होती है और अंततः आमदनी से संबंधित उत्पादन कम होता है.

कुछ मामलों में तो गर्मी के दौरे भी पड़ते हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत गंभीर साबित हो सकते हैं.

अत्यधिक गर्मी से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाला क्षेत्र है खेतीबाड़ी. दुनिया भर में लगभग 94 करोड़ लोग कृषि क्षेत्र में काम करते हैं.

अनुमान है कि वर्ष 2030 तक अत्यधिक गर्मी के कारण कृषि क्षेत्र में लगभग 60 फ़ीसदी कामकाजी समय का नुक़सान होगा.

निर्माण क्षेत्र भी अत्यधिक गर्मी से बहुत बड़े पैमाने पर प्रभावित होने वाला है जिसमें इसी समयावधि में लगभग 19 फ़ीसदी कामकाजी घंटों यानी समय का नुक़सान होने का अनुमान है.

इनके अलावा कुछ अन्य क्षेत्रों पर भी अत्यधिक गर्मी का भारी असर पड़ने वाला है. इनमें पर्यावरण संबंधी सामान और सेवाएँ, कूड़ा-करकट एकत्र करने वाली सेवाएँ, आपात सेवाएँ, मरम्मत कार्य, परिवहन, पर्यटन, खेलकूद और कुछ औद्योगिक कार्य क्षेत्र शामिल हैं.

रिपोर्ट ये भी कहती है कि अत्यधिक गर्मी से होने वाला नुक़सान सभी देशों में एक जैसा नहीं होगा.

जिन देशों में अत्यधिक गर्मी से सबसे ज़्यादा नुक़सान होगा उनमें ज़्यादातर देश दक्षिण एशिया और पश्चिमी अफ्रीका क्षेत्र के होंगे.

इन क्षेत्रों में वर्ष 2030 तक लगभग 5 प्रतिशत कामकाजी समय का नुक़सान होगा.

इसका अर्थ है कि दक्षिण एशियाई देशों में लगभग 4 करोड़ 30 लाख और दक्षिण अफ्रीकी देशों में लगभग 90 लाख नियमित आमदनी वाले कामकाज का नुक़सान होगा.

इसके अलावा एक गंभीर पहलू ये भी है कि अत्यधिक ग़रीब देशों को सबसे ज़्यादा आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ेगा.

निम्न मध्यम और निम्न आय वाले देश सबसे गंभीर रूप से प्रभावित होंगे क्योंकि उनके पास बढ़ती गर्मी से निपटने के बहुत कम साधन हैं.

इन हालात में अत्यधिक गर्मी की वजह से पहले से ही मौजूद आर्थिक असमानता का दायरा और बढ़ने की आशंका है.

अत्यधिक गर्मी की वजह से ऐसी बहुत महिलाओं पर भी विपरीत असर पड़ेगा जो कृषि क्षेत्र में कामकाज करती हैं.

निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले पुरुषों पर भी भारी असर पड़ेगा.

अत्यधिक गर्मी के सामाजिक ताने-बाने पर भी व्यापक असर होंगे क्योंकि ग्रामीण इलाक़ों से लोग बेहतर कामकाज व हालात की तलाश में अन्य स्थानों को जाएंगे जिससे प्रवासन बढ़ेगा.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने इस वास्तविकता का सामना करने के लिए सरकारों, रोज़गार देने वाली कंपनियों और कामकाजियों सभी से उन लोगों को संरक्षण देने का आहवान किया है जो सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले हैं.

इन उपायों में ख़राब मौसम की पहले से चेतावनी जारी करने की बेहतर और असरदार प्रणालियाँ लागू करने, अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों को बेहतर तरीक़े से लागू करनेऔर कामकाज के स्थानों पर अत्यधिक गर्मी का सामना करने के लिए स्वास्थ्य और सुरक्षा उपाय करने को भी कहा गया है.