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निगरानी / सर्वेलेंस तकनीक पर प्रतिबंध लगाने की पुकार

विचारों व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत डेविड केय. (अक्तूबर 2017)
UN Photo/ Rick Bajornas
विचारों व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत डेविड केय. (अक्तूबर 2017)

निगरानी / सर्वेलेंस तकनीक पर प्रतिबंध लगाने की पुकार

मानवीय सहायता

संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा है कि जब तक निगरानी तकनीकों यानी सर्वेलेंस टैक्नोलॉजी के हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए "प्रभावी" राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण नियम न बन जाएँ, तब तक निगरानी तकनीकों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए.

विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत (रैपोर्टेयर) डेविड केय ने जिनेवा में मानवाधिकार परिषद को अपनी नवीनतम रिपोर्ट पेश करते हुए ये अपील की.

उन्होंने कहा कि हालांकि इसके लिए काफी हद तक देशों की सरकारें ही ज़िम्मेदार हैं, लेकिन निगरानी उद्योग के ‘फ्री फॉर ऑल’ माहौल में निजी कंपनियाँ भी बेलगाम होकर काम कर रहीं हैं.

विशेष दूत ने बयान में कहा कि सर्वेक्षण उपकरण सभी प्रकार के मानवाधिकारों में हस्तक्षेप करते हैं – निजता का अधिकार हो या फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, किसी संगठन या संस्था से संबद्ध होने व सभा करने के अधिकार हों, धार्मिक आस्था हो, भेदभाव विरोधी या फिर सार्वजनिक गतिविधियों में भागीदारी – इन पर कोई भी असरदार वैश्विक या राष्ट्रीय नियंत्रण नहीं हैं.

हिरासत, यातना, ग़ैर-न्यायिक हत्याओं से जुड़ी निगरानी

डेविड केय की रिपोर्ट में कहा गया है कि पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, विपक्षी नेताओं, आलोचकों और संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं की निगरानी किया जा मनमाने तरीक़े से गिरफ़्तारियों का सबब बन सकती हैं.

विशेष दूत ने ये भी कहा कि जिन तरीक़ों से विभिन्न देश और उनकी सरकारें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल करने वाले व्यक्तियों की निगरानी करने लगे हैं, उसे यातना और संभवतः ग़ैर-न्यायिक हत्याओं से भी जोड़ा जा सकता है.

इनमें कंप्यूटर, नेटवर्क और मोबाइल फोन हैकिंग और ‘फेशियल रैकॉगनिशन’ यानी चेहरे की शिनाख़्त करने वाली तकनीक व आधुनिकतम उपकरणों के ज़रिये पत्रकारों, राजनैतिक कार्यकर्ताओं व नेताओं, संयुक्त राष्ट्र जांचकर्ताओं और मानवाधिकार अधिवक्ताओं की निगरानी किया जाना भी शामील हैं.

संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक की सिफारिशों में सभी देशों से अपील की गई है कि वे अवैध निगरानी से लोगों को बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के अनुरूप घरेलू सुरक्षा उपाय अपनाएं.

उन्होंने ख़ासतौर पर निगरानी प्रौद्योगिकी और उनकी गतिविधियों को मंज़ूरी और निरीक्षण के लिए सार्वजनिक नियंत्रण प्रणाली विकसित करने पर ज़ोर दिया.

इसके अतिरिक्त, सरकारों द्वारा निर्यात नियंत्रणों को सुदृढ़ करने और पीड़ितों को क़ानूनी निवारण का आश्वासन देने पर भी ज़ोर दिया.

उन्होंने कहा कि ये ज़रूरी है कि सरकारें ऐसी तकनीकों के उपयोग को केवल वैध लोगों तक सीमित करें, जो सख़्त निरीक्षण और प्राधिकरण से होकर गुज़रें. इनका निर्यात भी सख़्त शर्तों और मानवाधिकारों के पैमाने पर ख़रा उतरने पर ही किया जा सके.

'फ्री-फॉर-ऑल' जासूसी का माहौल

कॉर्पोरेट ज़िम्मेदारी के मुद्दे को संबोधित करते हुए डेविड केय ने कहा कि कंपनियों को अपनी मानवाधिकार संबंधी ज़िम्मेदारियाँ सही तरह से निभानी चाहिए, फिलहाल तो वे सभी बेलगाम होकर काम करती प्रतीत हो रही हैं.

इसमें सुधार लाने के लिए, कंपनियों को डेटा स्थानांतरण के बारे में पूरी जानकारी सामने रखनी चाहिए, मानवाधिकारों पर इसके प्रभाव का आकलन करवाया जाना चाहिए और उन देशों को ये तकनीक देने से बचना चाहिए जो मानवाधिकारों के मानदंडों के पालन की गारंटी देने में असमर्थ हों.

निजी निगरानी उद्योग में सभी पक्ष बेलगाम दिखाई दे रहे हैं. एक ऐसा माहौल पनप रहा है जिसमें लोकतांत्रिक ढांचे के लिए बेहद ज़रूरी व्यक्तियों और संगठनों को रोज़मर्रा नुकसान पहँचाया जा रहा है – फिर चाहे वो पत्रकार हों, कार्यकर्ता, विपक्षी नेता, वकील या फिर कोई और.

डेविड केय ने कहा कि अब समय आ गया है कि सरकारें और कंपनियां अपनी ज़िम्मेदारियाँ समझें और मानवाधिकारों की रक्षा के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इस उद्योग पर कठोर नियम लागू करे.