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महिलाओं की स्थिति: परिवारों में ही है बदलाव की बुनियाद

परिवारों के रूपों में बदलाव से नीतियों में भी बदलाव होते हैं. कंबोडिया में एलजीबीटी समुदाय के सम्मान के लिए आयोजित एक कार्यक्रिम में एक महिला अपनी महिला पार्टनर से प्रेम जताते हुए
UN Women/Mariken Harbitz
परिवारों के रूपों में बदलाव से नीतियों में भी बदलाव होते हैं. कंबोडिया में एलजीबीटी समुदाय के सम्मान के लिए आयोजित एक कार्यक्रिम में एक महिला अपनी महिला पार्टनर से प्रेम जताते हुए

महिलाओं की स्थिति: परिवारों में ही है बदलाव की बुनियाद

महिलाएँ

महिलाओं की अधिकारों की स्थिति में हाल के दशकों के दौरान अलबत्ता काफ़ी सुधार देखा गया है लेकिन पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता (लिंग भेद) और परिवारो में ही महिलाओं के अन्य बुनियादी अधिकारों के उल्लंघन के गंभीर मामले अब भी सामने आते हैं.

महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी – यूएन वीमैन ने मंगलवार को जारी ताज़ा रिपोर्ट में ये निष्कर्ष पेश किए हैं. इस रिपोर्ट को नाम दिया गया है – “विश्व भर की महिलाओं की प्रगति 2019-2020: बदलती दुनिया में परिवार”.

रिपोर्ट कहती है कि परिवार एक विविधता वाला ऐसा स्थान होते हैं जहाँ अगर सदस्य चाहें तो लड़के-लड़कियों और महिलाओं व पुरुषों के बीच समानता के बीज आसानी से बोए जा सकते हैं.

यूएन वीमैन की कार्यकारी निदेशक फ्यूमज़िले म्लाम्बो ग्यूका ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, “इसके लिए ज़रूरी है कि परिवारों के प्रभावशाली सदस्यों को महिलाओं के अधिकारों के बारे में जागरूक होकर उन्हें हर नीति और फ़ैसले के केंद्र में रखना होगा.”

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लेकिन उसी साँस में उन्होंने ये भी कहा कि वही परिवार लड़ाई-झगड़ों, अदावत, अमानता और कभी-कभी तो हिंसक बर्तावों का बीज बोने के लिए भी उपजाऊ जगह बन जाते हैं.

रिपोर्ट में विश्व भर से आँकड़े एकत्र करके गहराई से परिवारों में मौजूद परंपराओं, संस्कृति और मनोवृत्तियों का अध्ययन किया गया है.

इसमें कहा गया है कि ऐसे क़ानून, नीतियाँ और कार्यक्रम लागू करने की ज़रूर है जिनसे परिवारों के सभी सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा करने के साथ-साथ उनकी प्रगति और ख़ुशहाली के लिए अनुकूल माहौल बन सके. विशेष रूप से ये लड़कियों और महिलाओं के लिए ज़रूरी है.

कार्यकारी निदेशक का कहना था, “दुनिया भर में हम महिलाओं के वजूद, अधिकारों और निर्णय लेने की उनकी क्षमता को नकारने का चलन देख रहे हैं. और ये सब परिवारों की संस्कृति और मूल्यों को बचाने के नाम पर किया जाता है.”

आज के दौर में लगभग तीन अरब महिलाएँ ऐसे देशों में रहती हैं जहाँ वैवाहिक जीवन में बलात्कार को अपराध नहीं समझा जाता है. लेकिन अन्याय और अधिकारों का उल्लंघन अनेक अन्य रूपों में भी होता है.

लगभग पाँच में से एक देश में लड़कियों को लड़कों के समान संपत्ति और विरासत के अधिकार नहीं मिलते हैं.

लगभग 19 देशों में महिलाओं को अपने पति का आदेश मानने की क़ानूनी बाध्यता होती है. इससे भी ज़्यादा, विकासशील देशों में लगभग एक तिहाई विवाहित महिलाओं ने बताया कि उन्हें अपने स्वास्थ्य के बारे में ख़ुद निर्णय लेने का अधिकार नहीं होता, या बहुत कम होता है.

क्या चलन हैं...

रिपोर्ट बताती है कि सभी क्षेत्रों में विवाह की औसत उम्र कुछ बढ़ी है जबकि बच्चों की जन्म दर कुछ कम हुई है. साथ ही महिलाओं को कुछ ज़्यादा आर्थिक स्वायत्तता मिली है.

वैश्विक स्तर पर 38 प्रतिशत परिवारों में दंपत्तियों के पास बच्चे हैं और 27 प्रतिशत परिवारों में निकट परिजनों के अलावा अन्य संबंधित रिश्तेदार भी रहते हैं जिन्हें व्यापक परिवार कहा जाता है.

ऐसे परिवार जिसमें सिर्फ़ एक ही अभिभावक है और वो भी महिला, उनकी संख्या लगभग आठ फ़ीसदी है.

लेकिन ऐसे परिवारों में महिलाओं को आय अर्जित करने के लिए कामकाज करने, बच्चों की देखभाल करने और घर संभालने की ज़िम्मेदारी भी निभानी पड़ती है जिसका उन्हें कोई मेहनताना नहीं मिलता.

सभी क्षेत्रों में समान लिंग यानी महिलाओं और महिलाओं व पुरुषों और पुरुषों के बीच संबंधों वाले परिवारों का चलन भी बढ़ता देखा गया है.

रिपोर्ट बताती है कि कामकाजी और श्रम दुनिया में महिलाओं की मौजूदगी बढ़ रही है.

लेकिन विवाह और माँ बनने की वजह से कामकाजी दुनिया में उनकी मौजूदगी कम भी हो रही है. साथ ही उनकी आमदनी और अन्य तरह के लाभों में भी कमी हो जाती है.

नए आँकड़े बताते हैं कि 25 से 54 वर्ष की उम्र की महिलाओं में से लगभग आधी संख्या, परिवार में अकेले रहने वाली महिलाओं में से दो तिहाई और 96 प्रतिशत विवाहित पुरुष कामकाजी दुनिया में दाख़िल होकर मौजूद रहते हैं.

ये एक कटु सच्चाई है कि महिलाएँ देखभाल और घरेलू कामकाज तीन गुना ज़्यादा करती हैं और इसका उन्हें कोई मेहनताना नहीं मिलता है, यही पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता का एक मुख्य कारण है.

रिपोर्ट में पिताओं द्वारा बच्चों की देखभाल के लिए ली जाने वाली छुट्टियों के फ़ायदों की तरफ़ भी ध्यान दिलाया गया है.

इसमें लगातार ज़्यादा संख्या में पुरुष शामिल हो रहे हैं.

ख़ासतौर से उन देशों में जहाँ कामकाजी पुरुषों को अपने बच्चों की देखभाल के लिए ‘डैडी कोटा’ और अन्य लाभ दिए जाते हैं.

रिपोर्ट ध्यान दिलाती है कि परिवार ही वो प्रमुख स्थान हैं जहाँ समानता और न्यायपूर्ण माहौल की बुनियाद पड़ती है.

ये सिर्फ़ नैतिक रूप में ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भी अहम है.

ध्यान रहे कि दुनिया भर में मानव प्रगति सुनिश्चित करने के लिए ये टिकाऊ विकास लक्ष्य बहुत व्यापक एजेंडा और अवसर पेश करते हैं.  

रिपोर्ट की सिफ़ारिशें:

  • परिवार संबंधी क़ानूनों में ऐसे बदलाव किए जाएं जिनसे महिलाओं को अपने विवाह के बारे में सभी निर्णय लेने का पूरा अधिकार हो और पारिवारिक संसाधनों में भी महिलाओं का हिस्सा सुनिश्चित हो.
  • पारिवारिक संबंधों के अनेक रूपों को मान्यता दी जाए जहाँ महिलाओं को साथ रहने को भी मान्यता मिले और समान लिंग पर आधारित संबंधों को भी स्वीकार किया जाए.
  • सभी को वित्तीय व अन्य तरह का सहारा देने वाली सामाजिक व्यवस्था क़ायम की जाए. इसमें बच्चों की देखभाल के लिए माता-पिता और अभिभावकों को वेतन के साथ छुट्टियाँ मिलें, साथ ही परिवारों का ख़र्च चलाने के लिए बच्चों की देखभाल के दौरान सरकारी सहायता मिले.
  • लड़कियों और महिलाओं के ख़िलाफ़ किसी भी कारण से होने वाली हिंसा को बंद करने के लिए महिला सुरक्षा क़ानून और व्यवस्था लागू की जाए. हिंसा के पीड़ितों को समय पर न्याय और हर तरह की सहायता उपलब्ध कराई जाए.
  • सार्वजनिक सेवाएँ बेहतर बनाई जाएँ, ख़ाससतौर पर जच्चा-बच्चा की देखभाल के लिए, ताकि महिलाओं और लड़कियों को अपनी पसंद के और ज़्यादा फ़ैसले लेने का मौक़े मिलें.