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कार्यस्थलों पर हिंसा और उत्पीड़न पर रोक लगाने वाला ऐतिहासिक समझौता पारित

अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के 108वें सत्र को संबोधित करते यूएन महासचिव.
UN Photo/Jean-Marc Ferré
अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के 108वें सत्र को संबोधित करते यूएन महासचिव.

कार्यस्थलों पर हिंसा और उत्पीड़न पर रोक लगाने वाला ऐतिहासिक समझौता पारित

मानवाधिकार

कार्यस्थल पर कर्मचारियों के साथ हिंसा और उत्पीड़न पर पाबंदी लगाने के लिए एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समझौता पारित हो गया है. जिनीवा में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के शताब्दी सम्मेलन के दौरान इस समझौते की घोषणा हुई जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने सदस्य देशों और अन्य हिस्सेदारों को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी है.

जिनीवा में सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि उपलब्धियों की पुरानी विरासत पर अब नया निर्माण हो रहा है. सामाजिक संवाद और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के ज़रिए सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास हो रहे है.

समझौते के बाद कार्यस्थल पर हिंसा और उत्पीड़न को ‘समान अवसरों के लिए एक ऐसा ख़तरा’ माना जाएगा जिससे शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, यौन और आर्थिक हानि हो सकती है. साथ ही अच्छे और उपयुक्त कार्य को सुनिश्चित करने में इसे अस्वीकार्य और अनुचित बताया गया है.

इस संधि पर हस्ताक्षर के बाद सदस्य देशों की ज़िम्मेदारी होगी कि वे सभी श्रमिकों और कर्मचारियों को संरक्षण प्रदान करें चाहे उनका कॉन्ट्रैक्ट कैसा भी है. इस समझौते में ट्रेनी, इंटर्न, अप्रैंटिस, नौकरी ढूंढ रहे लोग और वो कर्मचारी भी आएंगे जिन्हें नौकरी से निकाल दिया गया हो.

इनमें अनौपचारिक सेक्टर में काम करने वाले 2.5 अरब लोग शामिल हैं जिनकी सामूहिक क्षमता का इस्तेमाल कामगारों के अधिकारों को बढ़ावा देने में किया जा रहा है. 

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अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के त्रिपक्षीय ढांचे के अनुरूप सरकार, नियोक्ताओं (employer) और कामगारों के प्रतिनिधियों ने एक मतदान में हिस्सा लिया जिसमें इस समझौते के पक्ष में 439 वोट पड़े जबकि विरोध में महज़ सात मत थे. 30 अनुपस्थित रहे.

2011 के बाद पहली बार है जब नई संधि पारित हुई है और यह क़ानूनी रूप से बाध्यकारी होगी. इससे पहले अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में 2011 में घरेलू कर्मचारियों के संबंध में एक संधि को पारित किया गया था.

सम्मेलन में बताया गया कि सम्मान के अभाव में, कार्यस्थल पर गरिमा नहीं होती और न ही सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो पाता है. ऐसे में इस समझौते और नए मानकों से कार्यस्थल पर मौजूदा ज़रूरतों के अनुरूप बदलाव लाने में मदद मिलेगी.

यूएन एजेंसी के महानिदेशक गाय राइडर ने बताया कि अगला कदम इन संरक्षणों को अमल में लाना होगा ताकि महिलाओं और पुरुषों के लिए एक बेहतर, सुरक्षित, अच्छे कार्यस्थल का निर्माण किया जा सके.

श्रम सम्मेलन में अपने भाषण में महासचिव गुटेरेश ने शताब्दी घोषणा का स्वागत किया और कहा कि उज्ज्वल भविष्य की दिशा में दरवाज़ा खोलने का यह एक ऐतिहासिक अवसर है.

“शताब्दी घोषणा हमारी इच्छाओं और इरादों के वक्तव्य से कहीं बढ़कर है. जिस नज़रिए से हम विकास को देखते हैं उस पद्धित में यह तब्दीली का प्रस्ताव है. आर्थिक और सामाजिक नीतियों के केंद्र में मानव कल्याण होना चाहिए.”

यूएन प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि ऐसे मिशन वक्तव्य बेहद अहम हैं क्योंकि वैश्वीकरण और जलवायु परिवर्तन की सबसे बड़ी क़ीमत समाज में हाशिए पर जी रहे लोगों को चुकानी पड़ रही है.

“बहुपक्षवाद पर पहले की तुलना में कहीं अधिक ख़तरा मंडरा रहा है...और हर जगह हम विश्वास में कमी और डर भड़काने की प्रवृत्ति को बढ़ता हुए देखते हैं. आप इसे मोहभंग काल भी कह सकते हैं.” महासचिव गुटेरेश ने कहा कि विश्वास फिर से कायम करने का सबसे प्रभावी तरीक़ा लोगों को सुनने और उनसे किए वादों को पूरा करना है.

“अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की इसी वजह से एक मुख्य भूमिका है: लोगों की चिंताओं के केंद्र में ही आपका एजेंडा है.”

यूएन महासचिव ने कहा कि दुनिया जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों, जनसंख्या रुझानों, तथा तकनीकी और सामाजिक बदलावों का सामना कर रही है और इस वजह से कामकाज के तरीक़ों पर भी असर पड़ रहा है.

इन बदलावों से अवसर पैदा हो रहे हैं लेकिन इससे डर और घबराहट भी घर सकती है.

“हम जानते हैं कि नई तकनीकों से – ख़ासकर कृत्रिम बुद्धिमता (आर्टिफ़िशियल इंटैलीजैंस) – से व्यापक पैमाने पर नौकरियां ख़त्म हो जाएंगी और बड़ी संख्या में रोज़गार के अवसर भी पैदा होंगे.”

इस चुनौती से निपटने के लिए उन्होंने शिक्षा में निवेश बढ़ाने की अपील की है. इससे लोगों को जीवन भर सीखने के लिए एक ऐसी दुनिया में प्रेरित किया जा सकेगा जहां काम करने के तरीक़ों में लगातार बदलाव आ रहा हो.