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विस्थापितों की रिकॉर्ड संख्या चिंता का सबब

इक्वेडोर और पेरू की सीमा पर वेनेज़्वेला छोड़ कर जाने वाले लोगों की लाइन.
UNHCR/Hélène Caux
इक्वेडोर और पेरू की सीमा पर वेनेज़्वेला छोड़ कर जाने वाले लोगों की लाइन.

विस्थापितों की रिकॉर्ड संख्या चिंता का सबब

प्रवासी और शरणार्थी

युद्ध, यातना और संघर्ष से जान बचाने के लिए साल 2018 में सात करोड़ से ज़्यादा लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने अपनी रिपोर्ट में नए आंकड़े जारी करते हुए अपील की है कि विश्व में शांति स्थापना को संभव बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय एकजुटता की ज़रूरत है.

यूएन एजेंसी प्रमुख फ़िलिपो ग्रान्डी ने कहा है कि हालात ऐसे हैं कि “हम शांति कायम रखने में असमर्थ हो गए हैं.” नए आंकड़े दर्शाते हैं कि यूएन एजेंसी के गठन के 70 सालों के इतिहास में विस्थापितों की संख्या ‘उच्चतम स्तर’ पर पहुंच गई है.

शरणार्थी एजेंसी प्रमुख का कहना है कि असल में यह संख्या इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है.

उदाहरण के तौर पर वेनेज़्वेला में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता की वजह से 40 लाख से ज़्यादा लोगों ने अन्य देशों का रुख़ किया है लेकिन सिर्फ़ पांच लाख लोगों ने ही औपचारिक तौर पर शरण और शरणार्थियों के दर्जे के लिए आवेदन किया है.

वेनेज़्वेला छोड़कर जाने वाले लोगों की बढ़ती संख्या अन्य देशों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही हैं. इसी वजह से पेरु ने उनके आने पर पाबंदियां सख़्त कर दी हैं और वेनेज़्वेला के समीप इक्वेडोर और कोलंबिया जैसे देश भी ऐसे कदम उठा सकते हैं.

फ़िलिपो ग्रान्डी ने कहा कि कोलंबिया के बाद पेरु में सबसे अधिक संख्या में वेनेज़्वेला से लोग आए हैं और इतने ज़्यादा लोगों का आना चुनौतीपूर्ण है और इसलिए उन देशों के प्रति उनकी पूरी सहानुभूति है.” लेकिन प्रभावित लोगों को सुरक्षा और संरक्षण की ज़रूरत है और इसलिए सीमाओं को खुला रखने की अपील की जा रही है.

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यूएन एजेंसी प्रमुख ने वेनेज़्वेला में पैदा हुए संकट की तुलना 2015 में यूरोप के शरणार्थी संकट से की है जब सीरिया में हिंसा से बचने के लिए लाखों लोगों ने जान जोखिम में डालते हुए भूमध्यसागर को पार कर ग्रीस और इटली में शरण ली थी. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि शरणार्थियों के लिए दरवाज़े खुले रहने की नीति आवश्यक है.

“यह कुछ वैसा ही है जैसा 2015 में यूरोप में हुआ जब एक के बाद एक सीमाओं को बंद किया जा रहा था. ”

“यह काफ़ी जोखिम भरा है. इसलिए मैं इस अवसर का इस्तेमाल करते हुए अन्य देशों से अपील करता हूं; मैं जानता हूं कि हम उनसे बहुत कुछ मांग रहे हैं लेकिन मेरा काम उन देशों से सीमाओं को खुले रखने की अपील करना है.” 

यूएन शरणार्थी एजेंसी की ‘ग्लोबल ट्रेन्ड्स’ रिपोर्ट के अनुसार विस्थापन का स्तर 20 साल पहले की तुलना में अब दोगुना हो गया है. इससे पुष्टि होती है कि ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है जिन्हें अंतरराष्ट्रीय संरक्षण की आवश्यकता है.

पिछले साल आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की कुल संख्या चार करोड़ 13 लाख थी – इनमें एक करोड़ 36 लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें 2018 में ही विस्थापन का शिकार होना पड़ा. संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के आंकड़े दर्शाते हैं कि अमीर देशों ने पिछले साल 16 फ़ीसदी शरणार्थियों को शरण दी वहीं कम विकसित देशों ने हर तीन में से एक शरणार्थी को अपने यहां जगह दी.

रिपोर्ट बताती है कि हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में फंसे लोगों का सुरक्षित स्थानों पर शरण की तलाश में जाना जारी है. दो तिहाई से ज़्यादा शरणार्थी सिर्फ़ पांच देशों से आते हैं: सीरिया (67 लाख), अफ़ग़ानिस्तान (27 लाख), दक्षिण सूडान (23 लाख), म्यांमार (11 लाख), सोमालिया (9 लाख).

बड़ी संख्या में घर छोड़ कर अन्य देशों में शरण लेने वाले लोगों से मेज़बान देशों के सामने भी नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं. ऐसे देशों की सहायता के लिए वित्तीय मदद की अपील की गई है ताकि पड़ोसी देशों पर इसके प्रभावों से निपटा जा सके.

साथ ही नई परिस्थितियों और संघर्षों से निपटने के लिए बेहतर क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की ज़रूरत को रेखांकित किया गया है.

यूएन एजेंसी प्रमुख ने कहा कि बेहतर समन्वयन एक चुनौती है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एकता का अभाव है, तब भी जब यमन और लीबिया में मानवीय मामलों पर चर्चा होती है.

2016 में गाम्बिया में संघर्ष का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हाल के सालों में वही एक ऐसा मामला है जिसे सुलझाने में सफलता मिली थी और हालात सुरक्षित होने पर 50 हज़ार नागरिक अपने देश लौट गए.

फ़िलिपो ग्रान्डी ने कहा कि यह दर्शाता है कि “जब भी क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय रूप से प्रयास किया जाता है, तो संघर्ष को सुलझाया जा सकता है, लोग वापस लौट जाते हैं.”

शरणार्थियों से जुड़ी ग़लत धारणाओं को ख़ारिज करते हुए उन्होंने कहा कि कई बार सुनने को मिलता है कि लोग फ़ायदा उठा रहे हैं और अवसरों की तलाश में दूसरे देशों का रुख़ कर रहे हैं.

“बेहतर अवसरों के लिए बच्चे अपना घर छोड़कर नहीं जाते; बच्चों को जोखिम और ख़तरों से बचकर भागना पड़ता है.”

यूएन शरणार्थी एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार 1 लाख 38 हज़ार से ज़्यादा बच्चे ऐसे हैं जो अकेले जान बचाकर भागे या फिर अपने परिवार से बिछुड़ कर अलग हो गए. लेकिन वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा होने का अनुमान है.