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उपजाऊ भूमि का मरुस्थल में बदलना बड़ी समस्या

कैमरून में भूमि का इस्तेमाल टिकाऊ ढंग से न होने के चलते मरुस्थलीकरण की समस्या पैदा हुई है.
UN News/Daniel Dickinson
कैमरून में भूमि का इस्तेमाल टिकाऊ ढंग से न होने के चलते मरुस्थलीकरण की समस्या पैदा हुई है.

उपजाऊ भूमि का मरुस्थल में बदलना बड़ी समस्या

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने सोमवार को 'विश्व मरुस्थलीकरण रोकथाम दिवस' पर अपने वीडियो संदेश में सचेत किया है कि दुनिया हर साल 24 अरब टन उपजाऊ भूमि खो देती है. उन्होंने कहा कि भूमि की गुणवत्ता ख़राब होने से राष्ट्रीय घरेलू उत्पाद में हर साल आठ प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है. भूमि क्षरण और उसके दुष्प्रभावों से मानवता पर मंडराते जलवायु संकट के और गहराने की आशंका है. 

यूएन प्रमुख ने कहा कि "मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा बड़े ख़तरे हैं जिनसे दुनिया भर में लाखों लोग, विशेषकर महिलाएं और बच्चे, प्रभावित हो रहे हैं."

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस तरह के रुझानों को "तत्काल" बदलने की आवश्यकता है क्योंकि भूमि संरक्षण और उसकी गुणवत्ता बहाल करने से मजबूरी में होने वाले विस्थापन में कमी आ सकती है, खाद्य सुरक्षा सुधर सकती है और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है. साथ ही यह "वैश्विक जलवायु इमरजेंसी" को दूर करने में भी मदद कर सकती है.

मरुस्थलीकरण की चुनौती से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से इस दिवस को 25 साल पहले शुरू किया गया था जो हर साल 17 जून को मनाया जाता है. मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र संधि (UNCCD) क़ानूनी रूप से बाध्यकारी एकमात्र अंतरराष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ता है.

2019 में इस विश्व दिवस पर ‘लेट्स ग्रो द फ़्यूचर टुगेदर’ का नारा दिया गया है और इसमें भूमि से संबंधित तीन प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है: सूखा, मानव सुरक्षा और जलवायु.

संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक़ 2025 तक दुनिया के दो-तिहाई लोग जल संकट की परिस्थितियों में रहने को मजबूर होंगे. उन्हें कुछ ऐसे दिनों का भी सामना करना पड़ेगा जब जल की मांग और आपूर्ति में भारी अंतर होगा. ऐसे में मरुस्थलीकरण के परिणामस्वरूप विस्थापन बढ़ने की संभावना है और 2045 तक करीब 13 करोड़ से ज़्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ सकता है.

मरुस्थलीकरण से आजीविका के साधनों और खाद्य सुरक्षा को बड़ा ख़तरा है.
UNDP Chad/Jean Damascene Hakuzim
मरुस्थलीकरण से आजीविका के साधनों और खाद्य सुरक्षा को बड़ा ख़तरा है.

भूमि की गुणवत्ता को बहाल करना जलवायु संकट के विरूद्ध लड़ाई में एक महत्वपूर्ण हथियार हो सकता है. भूमि के इस्तेमाल से संबंधित सेक्टर लगभग 25 फ़ीसदी वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार है. भूमि को फिर से उपजाऊ बनाकर लगभग 30 लाख टन कार्बन को वातावरण से हटाया जा सकता है.

बेहतर भूमि प्रबंधन की अहमियत को संयुक्त राष्ट्र के 2030 टिकाऊ विकास एजेंडा में समझाया गया है और 15वां टिकाऊ विकास लक्ष्य विशेष रूप से भूमि क्षरण को रोकने और उसे फिर उपजाऊ बनाने पर ही लक्षित है.

यूएन कन्वेंशन (UNCCD) के कार्यकारी सचिव इब्राहिम थियाव ने अपने संदेश में कहा कि विश्म मरुस्थलीकरण रोकथाम दिवस पर लोगों को तीन बातों को जानना होगा:

  • यह सिर्फ़ रेत के बारे में नहीं है
  • यह कोई अकेला मुद्दा नहीं है जो चुपके से गायब हो जाएगा
  • यह किसी और की समस्या नहीं है.

उन्होंने कहा कि यह भूमि की नाज़ुक परत को बहाल करने और उसकी रक्षा करने के बारे में है जो वैसे तो पृथ्वी के महज़ एक तिहाई हिस्से को समेटे है लेकिन हमारी जैव विविधता और जलवायु के सामने मंडराते दोधारी संकटों का सामना करने में बड़ी मदद कर सकती है.

उन्होंने कहा कि आजीविका के साधनों और रोज़मर्रा के जीवन में भूमि की अहमियत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय पहचानता है और इस संधि के शुरू होने से अब तक ब्राज़ील, इंडोनेशिया, चीन और भारत सहित 196 देशों ने इस पर अपनी मुहर लगाई है.

इससे टिकाऊ भूमि प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए बेहतर समन्वयन के साथ प्रयास करने का रास्ता प्रशस्त हुआ है.