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रंगहीनता वाले लोगों के साथ हो सामान्य बर्ताव

एल्बीनिज़्म यानी रंगहीनता एक दुर्लभ, ग़ैर-संक्रामक, अनुवांशिक रूप से जन्म के समय ही मौजूद रहने वाली त्वचा स्थिति है. ये पूरी दुनिया में और महिलाओं और पुरुषों - सभी में पाई जाती है.
Corbis Images/Patricia Willocq
एल्बीनिज़्म यानी रंगहीनता एक दुर्लभ, ग़ैर-संक्रामक, अनुवांशिक रूप से जन्म के समय ही मौजूद रहने वाली त्वचा स्थिति है. ये पूरी दुनिया में और महिलाओं और पुरुषों - सभी में पाई जाती है.

रंगहीनता वाले लोगों के साथ हो सामान्य बर्ताव

मानवाधिकार

एल्बीनिज़म यानि रंगहीनता की स्थिति वाले लोगों को अपने जीवन में बहुत से अवरोधों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिससे उनके मानवाधिकार कमज़ोर होते हैं. अन्तरराष्ट्रीय एल्बीनिज़म यानि रंगहीनता जागरूकता दिवस इस स्थिति वाले लोगों को पहचानने, उनके साथ एकजुटता दिखाने और उनके लिये समर्थन जुटाने का एक अवसर है.

रंगहीनता एक दुर्लभ, ग़ैरसंक्रामक और अनुवांशिक रूप से जन्म के समय से ही मौजूद रहने वाली स्थिति है जो दुनिया के हर देश में पाई जाती है.

रंगहीनता की वजह से बालों, त्वचा और आंखों में रंजकता यानि पिंगमेंटेशन (मेलेनिन) की कमी हो जाती है जिससे सूरज और तेज़ रौशनी में मुश्किल का सामना करना पड़ता है.

यही वजह है कि रंगहीनता की स्थिति वाले अधिकांश लोग मन्द दृष्टि की समस्या से पीड़ित होते हैं और उन्हें त्वचा का कैंसर होने का ख़तरा भी ज़्यादा होता है.

मेलेनिन की अनुपस्थिति का कोई इलाज नहीं है और यही रंगहीनता का कारण बनता है.

हर साल 13 जून को, दुनिया में भर में लोगों को याद दिलाया जाता है कि रंगहीनता की अवस्था में रह रहे लोगों को भी सामान्य और सुरक्षित जीवन जीने का अधिकार है.

लेकिन अब भी इस अनुवांशिक स्थिति को ग़लत रुप में देखा जाता है और रंगहीनता की स्थिति में लोगों को उनकी त्वचा के रंग की वजह से अनेक तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

इस स्थिति वाले वाले लोग शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनैतिक और सामाजिक परिदृश्य में बहुत से अवरोधों का सामना करते हैं.

कुछ देशों में तो उन पर हमले भी किये जाते हैं और उनकी हत्याएँ तक कर दी जाती हैं.  

वर्ष 2010 से अब तक सब सहारा अफ़्रीका के 28 देशों में 700 ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जिनमें रंगहीनता की स्थिति वाले लोगों पर या तो हमले किये गए या फिर उनकी हत्याएँ कर दी गईं.

और ये सिर्फ़ ऐसे मामले है जिनके बारे में पता चल पाया है, बहुत से मामले तो दर्ज भी नहीं हो पाते हैं.

कुछ समुदायों में अन्धविश्वास प्रचलित होने से ग़लत धारणाएँ पनपती हैं जिससे रंगहीनता की स्थिति वाले लोगों की सुरक्षा और जीवन के लिये लगातार जोखिम बना रहता है.

ये विश्वास और मिथक सदियों पुराने हैं और सांस्कृतिक व्यवहार, प्रवृत्ति व प्रथाओं में अब भी बने हुए हैं.

इन सभी चुनौतियों के बावजूद रंगहीनता की अनुवांशिक स्थिति वाले लोग सकारात्मक रुख़ के साथ जीवन जीते हैं और अब भी मज़बूती से डटे हुए हैं.  

कुछ अनुमानों के अनुसार उत्तरी अमेरिका और योरोप में हर 17-20 हज़ार लोगों में एक व्यक्ति रंगहीनता की स्थिति में है.

सब-सहारा अफ़्रीका में यह अवस्था ज़्यादा पाई जाती है: तंज़ानिया में हर 1,400 में से एक व्यक्ति को रंगहीनता है.

वहीं ज़िम्बाब्वे और दक्षिणी अफ़्रीका के कुछ समुदायों में हर 1,000 में से एक व्यक्ति की यह अनुवांशिक स्थिति है.

वर्ष 2019 के अंतरराष्ट्रीय रंगहीनता जागरूकता दिवस की थीम ‘स्टिल स्टैंडिंग स्ट्राँग’ है.

इसके ज़रिये रंगहीनता के साथ रह रहे लोगों को पहचानने, उनके साथ एकजुटता दिखाने और उनके लिये समर्थन जुटाने की अपील की जा रही है.

टिकाऊ विकास लक्ष्यों के एजेंडा में किसी को भी पीछे न छोड़ने का वायदा है लेकिन रंगहीनता की अवस्था में रह रहे लोग विकास प्रक्रिया में काफ़ी पीछे छूट गए हैं.

संयुक्त राष्ट्र उनके रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करने, उनके मानवाधिकारों की रक्षा करने और उन्हें समान अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहा है.