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नौनिहालों और माता-पिता को बेहतर माहौल मिलना ज़रूरी

छोटी उम्र में बच्चों के साथ माता-पाता कि बिताया हुआ समय उनके स्वास्थ्य और भविष्य के लिए बहुत अहम होता है.
UNICEF/Sokol
छोटी उम्र में बच्चों के साथ माता-पाता कि बिताया हुआ समय उनके स्वास्थ्य और भविष्य के लिए बहुत अहम होता है.

नौनिहालों और माता-पिता को बेहतर माहौल मिलना ज़रूरी

महिलाएँ

कामकाज और पारिवारिक जीवन के बीच स्वस्थ संतुलन क़ायम करने और दोनों स्थानों पर आनंदपूर्वक जीवन जीने में सहायक नीतियाँ बनाने में अनेक विकसित और धनी देश बहुत पीछे हैं. जबकि स्वीडन, नॉर्वे, आइसलैंड, एस्तोनिया और पुर्तगाल ऐसे देश हैं जहाँ कामकाजी जीवन के साथ परिवारिक जीवन जीने और माता-पिता के लिए छोटे बच्चों के साथ ज़्यादा समय बिताना आसान होता है.

वहीं स्विट्ज़रलैंड, ग्रीस, सायप्रस, ब्रिटेन और आयरलैंड ऐसे देश हैं जहाँ कामकाजी और पारिवारिक जीवन उल्लासपूर्वक मनाने के मामले में परिस्थितियाँ ज़्यादा अनुकूल नहीं हैं.

यूनीसेफ़ द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में आर्थिक सहयोग व विकास संगठन (OECD) और योरोपीय संघ क्षेत्रों के देशों की पारिवारिक जीवन आसान बनाने वाली राष्ट्रीय नीतियों के आधार पर सूची तैयार की गई है.

इन नीतियों में माता-पिता या अभिभावकों को पूरे वेतन के साथ मिलने वाली छुट्टियों की संख्या और बच्चों की देखभाल करने वाली सुविधाओं व सेवाओं की उपलब्धता को ध्यान मे रखा गया. ख़ासतौर से जन्म से लेकर छह वर्ष की उम्र के बच्चों की देखभाल के मामले में ये सर्वे किया गया.

यूनीसेफ़ की ये ताज़ा रिपोर्ट इस एजेंसी द्वारा चलाए जा रहे आरंभिक बचपन विकास नीतियों और कार्यक्रमों के एक हिस्से के रूप में तैयार की गई है.

साथ ही यूनीसेफ़ बचपन को सभी के लिए उल्लासपूर्ण अनुभव बनाने के लिए एक अभियान भी चला रही है जिसका नाम है - Early Moments Matter.

ये अभियान अब तीसरे वर्ष में चल रहा है जिसका उद्देश्य परिवारों को अपने बच्चों के आरंभिक जीवन में स्वस्थ, आनंदमयी और सीखने के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराने में समर्थन और मदद मुहैया कराना है. ध्यान रहे कि बचपन के आरंभिक वर्षो में ही बच्चे का मस्तिष्क स्वस्थ तरीके से विकसित होता है जिसकी छाप जीवन भर रहती है.

दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में एक पिता बोनगामी नकेम अपने आठ महीने के बच्चे - खूमा के साथ
UNICEF/Brian Sokol
दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में एक पिता बोनगामी नकेम अपने आठ महीने के बच्चे - खूमा के साथ

यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फ़ोर का कहना था, “अगर बच्चों के मस्तिष्क विकास और अच्छे भविष्य की बात की जाए तो उनके बचपन से ज़्यादा बेहतर और कोई समय नहीं होता.”

“हम चाहते हैं कि तमाम देशों की सरकारें सभी माता-पिताओं और अभिभावकों को वो सब ज़रूरी सुविधाएँ और सहायता उपलब्ध कराएँ जिनके ज़रिए बच्चों के लिए स्वस्थ, रचनात्मक और हर तरह से सकारात्मक वातावरण बनाया जा सके. साथ ही इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए निजी क्षेत्र की भी सक्रिय भागीदारी की सख़्त ज़रूरत है.

यूनीसेफ़ का कहना है कि जिन परिवारों में माता-पिता और अभिभावक अपने बच्चों को पर्याप्त और समुचित समय दे पाते हैं तो वहाँ घनिष्ट पारिवारिक संबंध बनाने में बहुत मदद मिलती है.

यूनीसेफ़ की सिफ़ारिश है कि सभी माता-पिता और अभिभावकों को अपने छोटे बच्चों की सही देखभाल करने के लिए कम से कम छह महीने की वेतन सहित छुट्टियाँ मिलनी चाहिए.

साथ ही, जन्म से लेकर जब बच्चा स्कूल जाने की उम्र पर पहुँचता है तब तक सभी परिवारों को गुणवत्ता वाली चिकित्सा सुविधाएँ मिलनी चाहिए और उनके लिए परिवारों को बेतहाशा धन ख़र्च ना करना पड़े.

Early Moments Matter अभियान के तहत यूनीसेफ़ तमाम देशों की सरकारों, सिविल सोसायटी, शिक्षाविदों और निजी क्षेत्र के साथ मिलकर काम कर रहा है. इस अभियान के ज़रिए किए जा रहे प्रयास इन सभी क्षेत्रों को पारिवारिक जीवन को आसान, उल्लासपूर्ण और स्वस्थ बनाने के लिए राष्ट्रीय नीतियाँ बनाने और ज़्यादा धन निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने में अहम भूमिका निभाते हैं.

माता-पिता और अभिभावकों को अपने छोटे बच्चों की सही देखभाल के लिए वेतन सहित छुट्टियाँ देने के मामले में 41 देशों की नीतियों का आकलन किया गया. इस अध्ययन को नाम दिया गया था – क्या विश्व के सबसे धनी देशों में पारिवारिक जीवन के अनुकूल वातावरण है? इस सर्वे में पाया गया कि इनमे से सिर्फ़ आधी संख्या वाले देश ही महिलाओं को वेतन सहित छह महीने की छुट्टियाँ देते हैं.

एस्तोनिया में महिलाओं को अपने छोटे बच्चों की देखभाल के लिए वेतन सहित सबसे ज़्यादा 85 सप्ताहों की छुट्टियाँ दी जाती हैं. उसके बाद हंगरी में 72 सप्ताह और बुल्गारिया में 61 सप्ताहों की अभिभावक छुट्टियाँ दी जाती हैं. इस पूरे अध्ययन में शामिल किए गए देशों में अकेला अमरीका ऐसा देश है जहाँ माता या पिता को अपने छोटे बच्चों की देखभाल के लिए कोई छुट्टियाँ देने वाली कोई राष्ट्रीय नीति नहीं है.

रिपोर्ट में ये तथ्य भी सामने आया है कि जिन देशों में अगर पिताओं को अपने छोटे बच्चों की देखभाल के लिए अगर वेतन सहित छुट्टियों का विकल्प उपलब्ध भी होता है तो भी बहुत से पिता इन छुट्टियों का फ़ायदा नहीं उठाते हैं. जापान अकेला ऐसा देश है जहाँ पिताओं को अपने छोटे बच्चों की देखभाल के लिए छह महीने तक की वेतन सहित छुट्टियाँ दिए जाने का प्रावधान है.

लेकिन 2017 में एकत्र किए गए आँकड़ों के अनुसार 20 में से सिर्फ़ एक पिता ही इन छुट्टियों का लाभ ले पाते हैं. इस मामले में दूसरा स्थान कोरिया गणराज्य का है जहाँ जापान की तुलना में हालात कुछ बेहतर हैं. कोरिया में छह में से एक पिता अपने छोटे बच्चों की देखभाल के लिए वेतन सहित छुट्टियों का फ़ायदा उठा पाते हैं.

रिपोर्ट कहती है कि अगर पुरुषों को अपने छोटे बच्चों की देखभाल करने के लिए वेतन सहित छुट्टियाँ मिलती हैं तो इससे पिता और बच्चों के बीच घनिष्ठ संबंध क़ायम करने में मदद मिलती है, शिशुओं का स्वस्थ विकास होता है और मानसिक अवसाद कम होता है और महिलाओं व पुरुषों के बीच समानता क़ायम करने में मदद मिलत है.

रिपोर्ट में तमाम देशों की सरकारों से ऐसी नीतियाँ बनाने का आग्रह किया है जिनक ज़रिए पिताओं को अपने छोटे बच्चों की देखभाल करने के लिए वेतन सहित मिलने वाली छुट्टियों का लाभ उठाने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया जा सके.

कुछ माता-पिता व अभिभावकों के लिए ऐसी छुट्टियों के बाद काम पर वापिस लौटने में अपने छोटे बच्चों की देखभाल पर आने वाला ख़र्च भी एक अहम मुद्द होता है. इस बारे में 29 देशों में सर्वे किया गया. मसलन, ब्रिटेन में छोटे बच्चों के माता-पिता व अभिभावक कामकाज पर वापिस लौटते समय किसी बाहरी एजेंसी से अपने बच्चों की देखभाल कराने से इसलिए बचते क्योंकि उनका ख़र्च बहुत ज़्यादा होता है.

दूसरी तरफ़ चैक गणराज्य, डेनमार्क और स्वीडन जैसे देशों में बच्चों की देखभाल पर आने वाला ख़र्च 100 में से सिर्फ़ एक परिवार के लिए ही कोई मुद्दा था. यानी इन देशों में माता-पिता व अभिभावक छोटे बच्चों की देखभाल के लिए अगर भुगतान वाली सेवाएँ लेते हैं तो उस पर आने वाला ख़र्च आसानी से वहन किया जा सकता है.

यूनीसेफ़ की इस रिपोर्ट में सिफ़ारिशें पेश की गई हैं कि तमाम देश पारिवारिक जीवन आसान व बेहतर बनाने के लिए किस तरह की नीतियाँ बना सकते हैं...

  • सभी माता-पिता व अभिभावकों को अपने छोटे बच्चों की देखभाल के लिए कम से कम छह महीने की वेतन सहित छुट्टियाँ देने के लिए राष्ट्रीय नीतियाँ बनाएँ व क़ानूनी प्रावधान करें.
  • किसी भी परिवार के हालात कुछ भी हों, सभी बच्चों के लिए ऐसा वातावरण बनाया जाए जहाँ उन्हें उच्च गुणवत्ता वाली, उनकी आयु के लिए उपयुक्त और कम ख़र्च वाली सुविधाएँ वे सेवाएँ उपलब्ध हों.
  • ये भी सुनिश्चित किया जाए कि जब माता-पिता व अभिभावक अपने वेतन सहित छुट्टियाँ समाप्त करके कामकाज पर वापिस लौटते हैं तो बच्चों की देखभाल के लिए नियुक्त की जाने वाली एजेंसियों की सेवाओं के बीच कोई अंतर ना हो और बच्चों की स्वस्थ देखभाल बिना बाधा के जारी रह सके.
  • ये भी सुनिश्चित किया जाए कि माताएँ अपने शिशुओं को अपना दूध पिलाने में किसी कठिनाई का सामना ना करें. इसके लिए ज़रूरी है कि महिलाओं को पर्याप्त अवधि के लिए वेतन सहित छुट्टियाँ दी जाएँ, और जब वो छुट्टियाँ समाप्त होने के बाद कामकाज पर वापिस लौटती हैं तो उन्हें अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए पर्याप्त अवकाश भी मिलते रहें. साथ ही महिलाओं को अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए उपयुक्त स्थान व वातावरण भी मौजूद होने चाहिए.
  • पारिवारिक वातावरण बेहतर बनाने से संबंधित तमाम नीतियों और कार्यक्रमों के विभिन्न पहलुओं के बारे में और ज़्यादा आँकड़े व जानकारी एकत्र की जाए जिससे इस क्षेत्र में मिल रही सफलता को रेखांकित किया जा सके और विभिन्न देशों में कठिनाइयों, प्रगति व सफलता जानने के लिए तुलनात्मक अध्ययन किए जा सकें.