हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में मानसिक समस्याएं ले रही हैं विकराल रूप
यह नई रिपोर्ट ब्रिटेन के मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट’ में प्रकाशित हुई है जो संयुक्त राष्ट्र से मिले आंकड़ों पर आधारित. रिपोर्ट दर्शाती है कि प्रभावित लोगों में 22 फ़ीसदी ऐसे हैं जो मानसिक अवसाद, घबराहट या हादसे के बाद सदमे का शिकार हैं.
2016 में 37 देश संघर्षग्रस्त थे यानी दुनिया की आबादी का 12 फ़ीसदी हिस्सा हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में रह रहा है जो अब तक की सबसे ज़्यादा संख्या है.
हिंसा और संघर्ष की वजह से छह करोड़ 90 लाख लोग जबरन विस्थापन का शिकार हुए हैं और दूसरे विश्व युद्ध के बाद विस्थापित होने वाले लोगों की यह सबसे बड़ी संख्या है.
मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित लोगों की कठिनाइयों को पहचाने जाने और फिर उनके इलाज और देखभाल की ज़रूरत होती है. मानसिक समस्याओं की वजह से कई बार पीड़ितों को रोज़मर्रा के काम करने में भी मुश्किलें पेश आती हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन इराक़, जॉर्डन, फ़लस्तीन के पश्चिमी तट और ग़ाज़ा पट्टी, लेबनान, नाइजीरिया, दक्षिण सूडान, सहित अन्य देशों और इलाक़ों में मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे लोगों की मदद के लिए प्रयासों में जुटा है.
हिंसा, संघर्ष और अन्य मानवीय आपात परिस्थितियों से जूझ रहे इलाक़ों में यूएन एजेंसी ऐसे मदद करती है:
- प्रभावित लोगों की मानसिक स्वास्थ्य ज़रूरतों का आकलन करना और इस प्रक्रिया में समन्वयन के प्रयासों को सहारा देकर
- पहले से मौजूद सेवाओं के बारे में जानकारी एकत्र करना व बाक़ी ज़रूरतों का अनुमान लगाकर
- प्रभावितों को सहारा देने के लिए ट्रेनिंग और अन्य संसाधनों से क्षमता निर्माण करने में मदद देकर
रिपोर्ट दर्शाती है कि हिंसा के माहौल में मानसिक अवसाद और घबराहट जैसी समस्याएं उम्र के साथ बढ़ जाती हैं.
डिप्रेशन की समस्या से पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज़्यादा प्रभावित होती हैं.
हिंसा प्रभावित इलाक़ों में रह रहे 9 फ़ीसदी लोगों को सामान्य से अति गंभीर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हैं.
सामान्य परिस्थितियों में रह रहे लोगों की तुलना में उनकी संख्या बहुत ज़्य़ादा है.
1980 से अगस्त 2017 तक 39 देशों में उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर ये रिपोर्ट तैय़ार की गई है. मरीज़ों की स्वास्थ्य समस्याओं को तीन श्रेणियों – हल्की, मध्यम गंभीर और अति गंभीर - में विभाजित किया गया है.
प्राकृतिक आपदाओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी आपात स्थितियों, जैसे अफ़्रीका में ईबोला वायरस फैलने को इसमें शामिल नहीं किया गया है.
इस अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि हिंसाग्रस्त इलाक़ों में रह रहे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को अबसे पहले कम करके आंका गया था.
शोधकर्ताओं ने पाया कि सामान्य से अति गंभीर समस्याओं के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है और लोग बड़ी संख्या में हल्की मानसिक समस्याओं से पीड़ित हैं.
मुख्य शोधकर्ता फ़ियोना चार्ल्सन के मुताबिक़ हिंसा और संघर्षग्रस्त इलाक़ों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा यह सबसे सटीक अनुमान हैं.
त्रासदीपूर्ण हालात में रह रहे लोगों की लंबे समय तक मदद करने के लिए सतत और गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने का अनुरोध किया गया है.