वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

टिकाऊ विकास लक्ष्य-12: टिकाऊ खपत और उत्पादन

दुनिया में कुल खाद्य उत्पादन का एक तिहाई हिस्सा बर्बाद हो जाता है.
FAO/Giulio Napolitano
दुनिया में कुल खाद्य उत्पादन का एक तिहाई हिस्सा बर्बाद हो जाता है.

टिकाऊ विकास लक्ष्य-12: टिकाऊ खपत और उत्पादन

एसडीजी

टिकाऊ उपभोग और उत्‍पादन का उद्देश्‍य है - कम साधनों से अधिक और बेहतर लाभ उठाना, संसाधनों का उपयोग, विनाश और प्रदूषण कम करके आर्थिक गतिविधियों से जन कल्‍याण के लिए लाभ बढ़ाना और जीवन की गुणवत्‍ता में सुधार करना. टिकाऊ विकास तभी हासिल किया जा सकता है, जब हम न सिर्फ अपनी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में वृद्धि होने दें, बल्कि उस प्रक्रिया में बर्बादी को कम से कम होने दें. टिकाऊ विकास एजेंडे के 12वें लक्ष्‍य  के केंद्र में यही विचार है. 

टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडे से जुड़े 17 लक्ष्यों में से किसी एक लक्ष्य पर हम हर महीने अपना ध्यान केंद्रित करते हैं. इसी कड़ी में इस महीने हम टिकाऊ विकास के 12वें लक्ष्य पर जानकारी साझा कर रहे हैं जिसका उद्देश्य दुनिया में उपभोग और उत्‍पादन के टिकाऊ स्वरूप को सुनिश्चित करना है.

हमारी पृथ्वी भीषण दबाव में है. यदि 2050 तक विश्‍व की जनसंख्‍या 9.6 अरब तक पहुंचती है तो हमें हर व्‍यक्ति की मौजूदा जीवन शैली को सहारा देने के लिए 3 पृथ्वियों की आवश्‍यकता होगी. 

हर वर्ष कुल आहार उत्‍पादन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा उपभोक्‍ताओं और दुकानदारों के कचरों के डिब्‍बों में सड़ता है या परिवहन और फ़सल कटाई के ख़राब तरीक़ों के कारण बर्बाद हो जाता है. एक अरब से अधिक लोगों को अब भी ताज़ा पानी सुलभ नहीं है. 

दुनिया में 3 प्रतिशत से भी कम पानी पीने लायक है और उसमें से 2.5 फ़ीसदी अंटार्कटिक, आर्कटिक और हिमनदों में जमा हुआ है. तकनीक की उन्‍नति से ऊर्जा के कुशल इस्‍तेमाल को बढ़ावा मिला है इसके बावजूद ओईसीडी (OECD) देशों में 2020 तक ऊर्जा का उपयोग 35 प्रतिशत और बढ़ जाएगा.

संवहनीय उपभोग और उत्‍पादन का अर्थ है संसाधनों और ऊर्जा के कुशल प्रयोग को प्रोत्‍साहन, टिकाऊ बुनियादी सुविधाएं, सबके लिए बुनियादी सेवाओं, प्रदूषण रहित और उत्‍कृष्‍ट नौकरियां तथा अधिक गुणवत्‍तापूर्ण जीवन की सुलभता. 

इन सब पर अमल से विकास योजनाओं को साकार करने में मदद मिलती है, भविष्‍य की आर्थिक. पर्यावरणीय और सामाजिक लागत कम होती है, आर्थिक स्‍पर्धा क्षमता मजबूत होती है और ग़रीबी में कमी आती है. 

इसके लिए उत्‍पादक से लेकर अंतिम उपभोक्‍ता तक आपूर्ति श्रृंखला में सक्रिय हर कारक के बीच सोचे-समझे दृष्टिकोण एवं सहयोग की भी आवश्‍यकता होती है. इसके लिए जागरूकता बढ़ाने तथा टिकाऊ खपत और जीवन शैली के बारे में उपभोक्‍ताओं को शिक्षित करना जरूरी है. 

भारत और एसडीजी लक्ष्य-12

संसाधनों के उपयोग का मुद्दा भारत के लिए महत्‍वपूर्ण है. भारत में दुनिया की 17.5 प्रतिशत जनसंख्‍या निवास करती है पर उसके पास केवल 4 फ़ीसदी वैश्विक जल संसाधन है.

कचरे और प्रदूषक तत्‍वों का बढ़ना भी एक चुनौती है. भारत ग्रीनहाउस गैसों का चौथा सबसे बड़ा उत्‍सर्जक है और विश्‍व का 5.3 प्रतिशत उत्‍सर्जन करता है.

2015 में भारत ने संकल्‍प लिया कि वह अपने सकल घरेलू उत्‍पाद की उत्‍सर्जन तीव्रता 2005 के स्‍तर से 2020 तक 20-25% और 2030 तक 33-35% कम करेगा. 2016 को भारत ने ऐतिहासिक पेरिस समझौते का औपचारिक अनुमोदन कर दिया. 

राष्‍ट्रीय जैव ईंधन नीति और राष्‍ट्रीय स्‍वच्‍छ ऊर्जा निधि सरकार की कुछ प्रमुख योजनाएं हैं, जिनका उद्देश्‍य टिकाऊ खपत और उत्‍पादन हासिल करना तथा प्राकृतिक संसाधनों के कुशल उपयोग का प्रबंधन करना है.

एसडीजी-12 के मुख्य उद्देश्य

- टिकाऊ उपभोग और उत्‍पादन के बारे में 10 वर्षीय कार्यक्रम फ़्रेमवर्क पर अमल करना, विकासशील देशों की क्षमताओं और विकास को ध्‍यान में रखते हुए विकसित देशों की अगुवाई में सभी देशों का कार्रवाई करना

- 2030 तक, प्राकृतिक संसाधनों का टिकाऊ प्रबंधन और कुशल उपयोग हासिल करना

- 2030 तक, विश्‍व स्‍तर पर खुदरा और उपभोक्‍ता स्‍तरों पर भोजन की प्रति व्‍यक्ति बर्बादी को आधा करना और फसल कटाई के बाद होने वाले नुक़सान सहित उत्‍पादन और आपूर्ति श्रृंखलाओं में खाद्य पदार्थों की क्षति को कम करना

- 2020 तक, स्‍वीकृत अंतरराष्ट्रीय समझौतों के अनुसार रसायनों और उनके कचरे का उनके पूरे जीवन चक्र में पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित प्रबंधन हासिल करना. वायु, जल और मिट्टी में उन्‍हें छोड़े जाने में उल्‍लेखनीय कमी करना ताकि मानव स्‍वास्‍थ्‍य और पर्यावरण पर उनका विपरीत प्रभाव कम से कम हो

- 2030 तक, निरोधन, कमी, रिसाइक्‍लिंग और दोबारा इस्‍तेमाल के जरिए कचरे की उत्‍पत्ति में उल्‍लेखनीय कमी करना

- कंपनियों, विशेषकर बड़ी और बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों को टिकाऊ विधियां अपनाने और उनके सूचना चक्र में टिकाऊपन की सूचना शामिल करने के लिए प्रोत्‍साहित करना. ऐसी सार्वजनिक ख़रीद विधियों को प्रोत्‍साहित करना जो टिकाऊ और राष्‍ट्रीय नीतियों तथा प्राथमिकताओं के अनुरूप हों

- 2030 तक, सुनिश्चित करना कि हर जगह लोगों के पास टिकाऊ विकास और प्रकृति के साथ सामंजस्‍यपूर्ण जीवन शैली के बारे में उपयुक्‍त सूचना और जागरूकता हो

- विकासशील देशों को उपभोग और उत्‍पादन के अधिक टिकाऊ स्‍वरूपों की ओर बढ़ने के लिए वैज्ञानिक और प्रौद्योगिक क्षमता मज़बूत करने के लिए समर्थन देना

- रोज़गार पैदा करने और स्‍थानीय संस्‍कृति तथा उत्‍पादों का प्रचार-प्रसार करने वाले टिकाऊ पर्यटन के लिए टिकाऊ विकास प्रभावों की निगरानी के साधन विकसित करना और अपनाना

- बाजार में विसंगतियों को हटाकर व्‍यर्थ उपभोग को प्रोत्‍साहित करने वाली अकुशल जीवाश्‍म ईंधन सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाना. इसमें हानिकारक सब्सिडी को चरणबद्ध ढंग से हटाना और टैक्स ढांचे में फेरबदल करना शामिल है जिससे पर्यावरण पर उनका प्रभाव साफ़ ज़ाहिर हो. ऐसा करते समय विकासशील देशों की विशिष्‍ट आवश्‍यकताओं और परिस्थितियों को पूरी तरह ध्‍यान में रखा जाए और उनके विकास पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों की आशंका को इस तरह कम से कम किया जाए कि गरीब और प्रभावित समुदायों को संरक्षण मिले

और जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.