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श्रम सम्मेलन में कामकाज की दुनिया में बड़े बदलावों पर चर्चा

कामकाजी दुनिया में बड़े बदलावों के दौर में नई नीतियों और समझ की आवश्यकता है.
World Bank/Arne Hoel
कामकाजी दुनिया में बड़े बदलावों के दौर में नई नीतियों और समझ की आवश्यकता है.

श्रम सम्मेलन में कामकाज की दुनिया में बड़े बदलावों पर चर्चा

एसडीजी

अमीर और ग़रीब के बीच बढ़ती खाई और उससे उपजती चुनौतियों से निपटने में कामकाज की दुनिया में मूलभूत बदलावों की आवश्यकता बताई गई है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन को संबोधित करते हुए योरोप में न्यूनतम वेतन तय करने की अहमियत को रेखांकित किया है.

राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने चेतावनी भरे अंदाज़ में कहा कि ऐसी ही परिस्थितियों में सत्तावादी ताक़तों का उभार देखने को मिलता है जो आसान दिखने वाले समाधान पेश करती हैं – जैसे तेज़ी से बढ़ते पूंजीवाद से लोगों की रक्षा करने के लिए दीवारों का निर्माण करने और देशों के बीच सहयोग का अंत करने जैसे समाधान.

अंतरराष्ट्रीय एकजुटता और असमानता के विरूद्ध लड़ाई के बचाव में उन्होंने योरोपीय संघ में न्यूनतम वेतन तय किए जाने की अपील की.

उन्होंने आगाह किया कि इस मोर्चे पर अगर विफलता हुई तो कई योरोपीय देशों से बड़ी संख्या में कामगारों का काम की तलाश में फ़्रांस और जर्मनी जैसे देशो में जाना जारी रहेगा जहां न्यूनतम वेतन की गारंटी है.

“हमने योरोप इसलिए नहीं बनाया.” फ़्रांसीसी राष्ट्रपति ने माना कि मौजूदा आर्थिक व्यवस्था फ़्रांस के लिए लाभकारी रही है लेकिन उन देशों के लिए, जहां से कामगार अन्य देशों का रुख़ करते हैं.

राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद जैसा सोचा गया था, मौजूदा बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था उससे कहीं कम सामाजिक है.

“यह हमें आय के संचयन और कॉरपोरेटवाद की ओर लेकर जा रही है. यह एक संकट है जो इसलिए गंभीर नहीं दिखता क्योंकि प्रभावितों के पास आवाज़ नहीं है – वे एक दूसरे से दूर फैले हैं और एकजुट नहीं हैं. इस वजह से अभी तक हमने युद्ध होते नहीं देखा है लेकिन यह संकट है ज़रूर.”

जिनीवा में शुरू हुआ 108वां अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन.
ILO/Marcel Crozet
जिनीवा में शुरू हुआ 108वां अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन.

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति ने ज़ोर देकर कहा कि दुनिया एक गहरे संकट का सामना कर रही है जिसकी तुलना 1919 में पहले विश्व युद्ध और 1944 में दूसरे विश्व युद्ध के बाद फैली अनिश्चितता से की जा सकती है.

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने न्यायपूर्ण दुनिया के निर्माण के लिए प्रयासरत रहने के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) को बधाई दी. हालांकि उन्होंने माना कि इन प्रयासों की आज भी उतनी ही ज़रूरत है जितनी पहले थी.

चांसलर मैर्केल ने बाल श्रम के मुद्दे पर कहा कि 15 करोड़ 20 लाख बच्चे जबरन काम करने के लिए मजबूर हैं और उनमें भी सात करोड़ से ज़्यादा बच्चे जोखिम भरी गतिविधियों में काम करते हैं.

उन्होंने श्रम सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों से बाल श्रम की समस्या से 2025 तक निपटने के लिए श्रम संगठन की पहल का समर्थन करने अपील भी की. “यह निश्चित ही अस्वीकार्य है और हमें मिलकर इससे निपटना है.”

उन्होंने कहा कि आर्थिक वृद्धि को सामाजिक प्रगति में बदलने के लिए और हर किसी की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए और ज़्यादा प्रयासों की आवश्यकता है.

वैश्वीकरण से अन्यायपूर्ण परिस्थितियां भी पैदा हुई हैं जिनसे निर्माण और घरेलू कार्य के क्षेत्रों में 23 करोड़ से ज़्यादा श्रमिकों का शोषण हो रहा है. 70 करोड़ लोगों के पास काम है लेकिन फिर भी वे ग़रीबी में जीवन यापन कर रहे हैं.

रूस के प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवेदेफ़ ने सभी देशों की बीच पारस्परिक सहयोग जारी रखने पर बल देते हुए ‘लीग ऑफ़ नेशन्स’ के निराशाजनक अंत की ओर ध्यान दिलाया और कहा कि अंतरराष्ट्रीय तंत्र बेहद नाज़ुक है. ऐसे में आधुनिक कार्यस्थलों पर पनपने वाली चुनौतियों के लिए साझा समझ होना ज़रूरी है.