भारी-भरकम ख़र्च से जच्चा-बच्चा को है गंभीर ख़तरा
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ ने कहा है कि बहुत महंगी स्वास्थ्य सेवाओं और देखभाल की वजह से बहुत सी महिलाओं को बच्चे को जन्म देने से पहले और बाद में अक्सर जच्चा-बच्चा दोनों का ही जीवन ख़तरे में डालना पड़ता है. यूनीसेफ़ ने मंगलवार को एक रिपोर्ट जारी है जिसमें बताया गया है कि बहुत सी गर्भवती महिलाओं को आवश्यकता पड़ने पर ना तो कोई डॉक्टर मिलता है और ना ही कोई नर्स या दाई उपलब्ध होती है.
संगठन का कहना है कि समुचित स्वास्थ्य देखभाल और चिकित्सा नहीं मिलने की वजह से गर्भ और बच्चे को जन्म देने की जटिलताओं की वजह से हर दिन लगभग 800 महिलाओं की मौत हो जाती है. इनके अलावा बहुत सी अन्य महिलाएँ प्रसव के दौरान हुई जटिलताओं की वजह से दर्दभरा जीवन जीती हैं.
हर दिन लगभग 7000 हज़ार बच्चे पैदा होने से पहले ही मौत के मुँह में चले जाते हैं. इनमें से लगभग आधे यानी क़रीब साढ़े तीन हज़ार शिशु ऐसे होते हैं जो प्रसव का दर्द शुरू होने के समय जीवित होते हैं. यूनीसेफ़ का कहना है कि और भी ज़्यादा तकलीफ़ की बात ये है कि लगभग सात हज़ार बच्चों की मौत जन्म लेने के पहले महीने के दौरान ही हो जाती है.
The sheer cost of childbirth is leaving mothers and babies in danger. To save lives, we must invest in quality health care for all women before, during and after their pregnancies.#WD2019 #EveryChildALIVE https://t.co/OAEITq4n7P
UNICEF
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनेरीटा फ़ोएर का कहना था, “बहुत से परिवारों के लिए बच्चे को जन्म देने के लिए आने वाला स्वास्थ्य और चिकित्सा ख़र्च असहनीय होता है. उससे भी ज़्यादा चिंताजनक बात ये है कि अगर किसी परिवार के पास अगर ये भारी-भरकम ख़र्च उठाने के संसाधन नहीं होते हैं तो उनके लिए परिणाम और भी कष्टकारी होते हैं. जब ये परिवार प्रसव और मातृत्व पर होने वाले ख़र्च को कम करने का प्रयास करते हैं तो जच्चा-बच्चा दोनों के लिए ही बहुत कष्ट में जीवन व्यतीत करते हैं.”
यूनीसेफ़ के आँकड़ों के अनुसार अफ्रीका, एशिया और लातीनी अमरीका व कैरीबियाई देशों में पचास लाख से भी ज़्यादा परिवारों को पूरे साल में खाने-पीने के सामान के अलावा अन्य चीज़ों पर जितना कुल ख़र्च होता है, उसका लगभग 40 फ़ीसदी हिस्सा सिर्फ़ जच्चा-बच्चा की देखभाल पर ख़र्च करना पड़ता है.
इन लगभग 50 लाख परिवारों में तकरीबन 19 लाख अफ्रीका में हैं, जबकि लगभग 30 लाख एशिया में. यूनीसेफ़ के शोध आँकड़े बताते हैं कि विकसित देशों से तुलना की जाए तो वहाँ सभी बच्चों के जन्म के समय कोई ना कोई प्रशिक्षित दाई या डॉक्टर अवश्य उपलब्ध होते हैं. जबकि कम विकसित देशों में ये संख्या बहुत चिंताजनक रूप में कम हो जाती है.
इन कम विकसित देशों में सोमालिया (9.4 प्रतिशत), दक्षिणी सूडान (19.4 प्रतिशत) मेडागास्कर (44.3 प्रतिशत), पपुआ न्यू गिनी (53 प्रतिशत), अफ़ग़ानिस्तान (58.8 प्रतिशत) और म्याँमार (60.2 प्रतिशत) शामिल हैं. ये आँकड़े 2013 से 2018 के दौरान एकत्र किए गए.
“बहुत से परिवारों के लिए बच्चे को जन्म देने के लिए आने वाला स्वास्थ्य और चिकित्सा ख़र्च असहनीय होता है. उससे भी ज़्यादा चिंताजनक बात ये है कि अगर किसी परिवार के पास अगर ये भारी-भरकम ख़र्च उठाने के संसाधन नहीं होते हैं तो उनके लिए परिणाम और भी कष्टकारी होते हैं. जब ये परिवार प्रसव और मातृत्व पर होने वाले ख़र्च को कम करने का प्रयास करते हैं तो जच्चा-बच्चा दोनों के लिए ही बहुत कष्ट में जीवन व्यतीत करते हैं”, हेनेरीटा फ़ोएर, कार्यकारी निदेशक, यूनीसेफ़
देशों के भीतर भी उनमें बड़ा अंतर देखने को मिलता है कि जो लोग स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाएँ का ख़र्च वहन कर सकते हैं और जिनके पास ये ख़र्च वहन करने के लिए पर्याप्त धन नहीं होता है. मसलन, दक्षिण एशिया में धनी और संपन्न परिवारों की लगभग तीन गुना महिलाओं को चार या उससे ज़्यादा बार चिकित्सा देखभाल मिलती है जबकि ग़रीब परिवारों की महिलाओं ये सुविधा उपलब्ध नहीं होती है.
यूनीसेफ़ के अनुसार पश्चिमा और मध्य अफ्रीका के देशों में किसी महिला द्वारा किसी स्वास्थ्य सेवा केंद्र में बच्चे को जन्म देने की सुविधा की बात करें तो ग़रीब और धनी महिलाओं के बीच ये अंतर दो गुना से भी ज़्यादा है.
भारी अंतर है
यूनीसेफ़ के एक वक्तव्य में कहा गया है कि हाल के वर्षों में अलबत्ता दुनिया भर में किसी प्रशिक्षित दाई, नर्स या डॉक्टर की देखरेख में बच्चे को जन्म दिलाने के प्रयासों में काफ़ी सफलता मिली है लेकिन अब भी बहुत से देशों में ग़रीब और धनी महिलाओं के बीच भारी अंतर बना हुआ है.
2010 से 2017 के दौरान एकत्र किए गए आँकड़े बताते हैं कि बहुत से देशों में स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या में काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है. लेकिन विकसित देशों में ये बढ़ोत्तरी मामूली ही रही जबकि इन्हीं देशों में प्रसव और मातृत्व के दौरान सबसे ज़्यादा मौतें होती हैं.
उदाहरण के तौर पर, 2010 – 2017 के दौरान मोज़ांबीक में हर दस हज़ार लोगों पर चार स्वास्थ्यकर्मियों से बढ़कर पाँच स्वास्थकर्मी हो गए. इथियोपिया में ये संख्या हर दस हज़ार पर तीन से बढ़कर नौ हो गई. उसके उलट नॉर्व में इसी अवधि के दौरान ये संख्या दस हज़ार पर 213 से बढ़कर 228 पर पहुँचीं.
यूनीसेफ़ का कहना है कि निसंदेह जच्चा का स्वास्थ्य सुनिश्चित करने और उन्हें मौत के मुँह से बचाने के प्रयासों में डॉक्टर, नर्सें और दाई बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. फिर हर साल प्रशिक्षित दाई या नर्स की कमी की वजह से प्रसव के दौरान लाखों जच्चा-बच्चा की मौत हो जाती है. दुनिया भर में प्रसव और मतृत्व के दौरान जच्ता-बच्चा के सुरक्षा के लिए ऑपरेशन का सहारा लिए जाने को भी बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है और इससे जान बचाने में बहुत मदद मिलती है.
दुनिया भर में साल 2015 के दौरान लगभग तीन करोड़ प्रसव ऑपरेशन किए गए. साल 2000 की तुलना में ये संख्या लगभग दोगुना थी. लेकिन लातीनी अमरीका और कैरीबियाई देशों में प्रसव ऑपरेशन की संख्या पश्चिमी और मध्य अफ्रीकी देशों की तुलना में लगभग दस गुना ज़्यादा थी. लातीनी अमरीका और कैरीबियाई देशों में कुल जन्म संख्या का लगभग 44 प्रतिशत मामलों में ऑपरेशन किए गए.
यूनीसेफ़ ने चेतावनी के अंदाज़ में कहा है, “पश्चिमी और मध्य अफ्रीकी देशों में प्रसव ऑपरेशनों की इतनी कम संख्या बेहद चिंता का विषय है. इसका स्पष्ट अर्थ है कि बहुत सी महिलाओं को ये जीवनदायी सुविधा उपलब्ध नहीं होती है.”
संगठन ने ये भी कहा है कि 15 से 19 वर्ष की उम्र की लड़कियों और महिलाओं की मौत के मामलों में गर्भ संबंधी जटिलताएं सबसे बड़ा कारण हैं.
बाल विवाहिताओं को ज़्यादा ख़तरा
ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि किशोरावस्था में अभी लड़कियों का विकास हो ही रहा होता है और ऐसे में अगर वो माँ बनने के रास्ते पर निकल जाती हैं, तो गंभीर जटिलताएँ होने का ख़तरा होता है. इसके बावजूद रिपोर्ट में पाया गया है कि बाल विवाहिताओं को गर्भावस्था के दौरान या बच्चा पैदा होने के बाद समुचित स्वास्थ्य और चिकित्सा देखभाल मिलने की बहुत कम संभानाएँ होती हैं. जबकि जो महिलाएँ वयस्क होकर विवाह करने के बाद माँ बनने का फैसला करती हैं तो उनकी बेहतर स्वास्थ्य संभानाएँ होती हैं.
कैमरून, चैड और गांबिया में 20 से 24 वर्ष की उम्र की कुल महिलाओं से लगभग 60 प्रतिशत ऐसी हैं जिनका विवाह 15 वर्ष की उम्र में हो गया था. अब उनकी तीन या उससे ज़्यादा बच्चे हैं. जबकि वयस्क होकर विवाह करने वाली महिलाओं की संख्या 10 प्रतिशत है.
संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने आशा व्यक्त करते हुए कहा है कि जच्चा-बच्चा को प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी उपलब्ध कराने का लक्ष्य टिकाऊ विकास लक्ष्यो में शामिल करन से विश्व स्तर पर इस दिशा में ठोस परिणाम मिल सकेंगे और जच्चा-जच्चा की मौतें रोकने के साथ-साथ ही उनकी स्वास्थ्य देखभाल में अच्छे नतीजे मिल सकेंगे.