तंबाकू को अपनी ज़िंदगी की साँसें ना चुराने दें, स्वास्थ्य एजेंसी का संदेश

तंबाकू सेवन से हर वर्ष लगभग 80 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इन गंभीर हालात के मद्देनज़र विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तमाम देशों की सरकारों से धूम्रपान की चुनौती का सामना करने के लिए तेज़ उपाय करने का आग्रह किया है.
इसमें तो ज़रा भी शक नहीं है कि धूम्रपान से इंसानों, समुदायों और देशों को बहुत भारी स्वास्थ्य, सामाजिक, पर्यावरण और आर्थिक नुक़सान होता है.
ग़ौरतलब है कि धूम्रपान के जानलेवा नुक़सानों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 31 मई को विश्व तम्बाकू निरोधक दिवस (No Tobacco Day) मनाया जाता है.
इस अवसर पर ग़ैर-संचारी बीमारियों की रोकथाम करने वाले विभाग के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर विनायक प्रसाद ने इस तरफ़ विशेष ध्यान दिलाया कि तंबाकू सेवन करने वालों और नहीं करने वाले लोगों के फेफड़ों को ये बुरी आदत किस तरह से भारी नुक़सान पहुँचाती है.
डॉक्टर विनायक प्रसाद ने चेतावनी के अंदाज़ मे कहा कि तंबाकू सेवन से संबंधित बीमारियों से लगभग 33 लाख लोगों की मौत होती है.
इनमें से लगभग 40 प्रतिशत मौतें फेफड़ों की बीमारियों से होती हैं जिनमें कैंसर साँस से संबंधित बीमारियाँ और टीबी शामिल हैं.
World #NoTobacco Day aims to raise awareness on the harmful and deadly effects of 🚬 use and second-hand smoke exposure and to discourage the use of tobacco in any form. The focus of World No Tobacco Day 2019 is on "tobacco and lung health" 👉https://t.co/m3BpZ9VpSy pic.twitter.com/6lo8NgJkOY
WHO
डॉक्टर विनायक प्रसाद ने जिनेवा में पत्रकारों से कहा, “हम तंबाकू से होने वाली फेफड़ों की बीमारियों की तरफ़ ख़ास ध्यान दिलाना चाहते हैं. जिन क़रीब 33 लाख लोगों की मौत तंबाकू सेवन से संबंधित बीमारियों से होती है, उनमें से लगभग पाँच लाख लोग ऐसे हैं जो ख़ुद तो धूम्रपान नहीं करते, मगर धूम्रपान करने वालों के आसपास होने की वजह से ही उन्हें बीमारियाँ लग जाती हैं जिनसे उनकी मौत हो जाती है... इसी तरह की परिस्थितियों में हर साल पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग साठ हज़ार बच्चों की मौत हो जाती है. ये बीमारियाँ साँस से संबंधित अंगों में संक्रमण होने से होती हैं.”
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि धूम्रपान का एक ज़ोरदार कश तुरंत फेफड़ों को नुक़सान पहुँचाना शुरू कर देता है क्योंक इसमें सैकड़ों ज़हरीले पदार्थ भरे होते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब धुँआ सांस के ज़रिए अंदर खींचा जाता है तो हमारी साँस लेने की नलियों में गंदगी और मैल को साफ़ करने वाली प्रक्रिया काम करन बंद कर देती है. इसकी वजह से तंबाकू में मौजूद ज़हर शरीर के अंदर आसानी से दाख़िल हो जाता है और फेफड़ों पर गंभीर असर डालता है.
इसके परिणाम ये होते हैं कि फेफड़ों की क्षमता कम हो जाती है और साँस लेने में कठिनाई होती है. साँस नली में सूजन आ जाती है और उसमें गंदगी और मैल इकट्ठा हो जाता है. संगठन का कहना है कि ये तो तंबाकू सेवन और धूम्रपान से होने वाले नुक़सान के बस कुछ शुरूआती लक्षण हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का ये भी कहना है कि हालाँकि हाल के दशकों में तंबाकू सेवन और धूम्रपान के इस्तेमाल में कुछ कमी दर्ज की गई है. साल 2000 में 27 फ़ीसदी की कमी हुई थी, 2016 में 20 फ़ीसदी की, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ज़ोर देकर कहा है कि बहुत से देशों की सरकारें साल 2025 तक तंबाकू सेवन और धूम्रपान में 30 फ़ीसदी की कमी लाने के लक्ष्यों को हासिल करने के प्रयासों में अभी बहुत पीछे हैं.
इन चुनौतियों का सामना करने के लिए स्वास्थ्य एजेंसी का कहना है कि तमाम देशों की सरकारों को तंबाकू नियंत्रण के लिए एजेंसी द्वारा सुझाए गए ढाँचे (WHO FCTC) को लागू करना चाहिए. इस फ्रेमवर्क यानी नीतिगत ढाँचे में इस बारे में सुझाव दिए गए हैं सरकार के तमाम क्षेत्रों के ज़रिए तंबाकू नियंत्रण के उपायों को किस तरह लागू किया जाए.
इनमें आम लोगों में धूम्रपान के नुक़सानों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के बारे में टिकाऊ रणनीतियाँ बनाने के सुझाव भी शामिल हैं. मसलन, बैठने और कामकाज के ऐसे अंदरूनी स्थान व परिवहन के साधन तैयार किए जाएँ जहाँ धूम्रपान की अनुमति ना हो. तंबाकू सेवन व धूम्रपान के विज्ञापनों, उन्हें प्रोत्साहित करने और उन्हें वित्तीय मदद पर प्रतिबंध लगा दिया जाए. इनके अलावा तंपाकू उत्पादों पर भारी टैक्स लगाए जाएँ और उन पर स्वास्थ्य चेतावनी दिखाने वाले डरावने चिन्ह बनाकर जागरूकता बढ़ाने के प्रयास किए जा सकते हैं.
धूम्रपान छोड़ना मुश्किल नहीं
इन सभी रणनीतियों के साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन का ये भी सुझाव है कि धूम्रपान छोड़ना कभी भी मुश्किल नहीं होता क्योंकि धूम्रपान छोड़ने के दो सप्ताहों के भीतर ही फेफड़ों के हालात बेहतर होने लगते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है, “धूम्रपान से होने वाले नुक़सानों में से कुछ को धूम्रपान त्यागने से कम किया जा सकता है, हालाँकि पूरी तरह सारे नुक़सानों की भरपाई नहीं की जा सकती. इसलिए जितना जल्दी हो सके, धूम्रपान त्यागना ही फेफड़ों की बीमारियों से बचने का सबसे बेहतर उपाय है. क्योंकि एक बार अगर फेफड़ों की बीमारियाँ हो जाती हैं, तो उन्हें पूरी तरह ठीक करना लगभग असंभव होता है.”
धूम्रपान छोड़ने में लोगों की मदद करने के लिए संगठन ने ऐसी निशुल्क टेलीफ़ोन सेवा उपलब्ध कराने का सुझाव दिया है जिसके ज़रिए मनोवैज्ञानिक सहायता दी जाए. जो लोग धूम्रपान छोड़ना चाहते हैं उन्हें मोबाइल फ़ोन के ज़रिए मदद देकर भी अच्छे परिणाम मिलते देखे गए हैं.
इनमें विश्व स्वास्थ्य संगठन का “Be He@lthy Be Mobile mTobaccoCessation” कार्यक्रम काफ़ी सफल रहे हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार यूनियन (ITU) की मदद से चलाया गया. ये कार्यक्रम मोबाइल टैक्स्ट के ज़रिए निजी सहायता योजना मुहैया कराता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि ये कार्यक्रम तंबाकू सेवन और धूम्रपान करने वालों को ये बुरी आदतें छोड़ने में ठोस मदद करते हैं और इनमें ज़्यादा इनमें कोई वित्तीय ख़र्च भी नहीं आता है.
संगठन ने भारत में मिली कामयाबी की तरफ़ ध्यान दिलाते हुए कहा कि इस कार्यक्रम का सहारा लेने वालों में चार से छह महीनों के दौरान 19 फ़ीसदी लोगों ने ख़ुद ही धूम्रपान छोड़ने की रिपोर्ट दी. जबकि आमतौर पर ख़ुद के प्रयासों से धूम्रपान छोड़ने वालों की संख्या पाँच प्रतिशत होती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि ये कार्यक्रम भारत, बुर्किना फासो, कोस्टा रीका, फिलीपींस, ट्यूनीशिया में लागू किया गया है और किसी भी देश में आसानी से किया जा सकता है.