सीरिया में तबाही और तकलीफ़ों पर ख़ून क्यों नहीं खौलता?

सीरिया में आठ वर्षों के गृहयुद्ध के दौरान जानलेवा हवाई हमलों और आतंकवादी हमलों ने लाखों लोगों की जान ले ली है और लाखों अन्य को ज़ख़्मी छोड़ दिया. ऐसे हालात में संयुक्त राष्ट्र के आपदा राहत कार्यों की डिपुटी कॉर्डिनेटर उर्सुला मुएलर ने मंगलवार को सुरक्षा परिषद के सामने एक चुभने वाला सवाल रखा – क्या ये परिषद ऐसे हालात में कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर सकती, जब स्कूलों और अस्पतालों पर हमलों को युद्ध की एक रणनीति के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, फिर भी इस पर लोगों का ख़ून क्यों नहीं खौलता?
“गृहयुद्ध के आँकड़े सभी को मालूम हैं.” उर्सुला मुएलर ने सुरक्षा परिषद की बैठक में कहा, “आप सभी ये भी जानते हैं कि सीरिया की क़रीब आधी आबादी को या तो देश छोड़कर भागना पड़ा है, या देश के भीतर ही बार-बार विस्थापित होना पड़ा है... आप ये भी जानते हैं कि इदलिब में इस समय लगभग तीस लाख लोग लड़ाई की चपेट में आए हुए हैं. बहुत से लोग पेड़ों के नीचे रहने को मजबूर हैं तो बहुत से अन्य लोग ज़मीन के टुकड़ों पर प्लास्टिक की चादरों का साया बनाकर रह रहे हैं.”
उर्सुला मुएलर ने कहा, “वहाँ कोई सुरक्षित स्कूल और अस्पताल नहीं बचे हैं. और आजावीका चलाने का भी कोई साधन नहीं है, साथ ही सभी परिवार लगातार इस डर के साए में जी रहे हैं कि अगर वो अपने बच्चों को स्कूल भेजेंगे तो उन पर कभी भी आसमान से मौत बरस सकती है.”
Sixty-one reports submitted. Hundreds of Council sessions. There's no question about whether Members of the Security Council are aware of the tragic #humanitarian situation in #Syria – the question today to them is what they will do. My remarks: https://t.co/VklOFitLJc pic.twitter.com/0r8T9XN2Do
UschiMuller
वैसे तो 17 मई को अस्थाई युद्ध विराम का ऐलान हो चुका है मगर सीरिया के पश्चिमोत्तर इदलिब इलाक़े में हाल के दिनों में लड़ाई जारी रही. ये विद्रोहियों के क़ब्ज़े वाला आख़िरी इलाक़ा बचा है. इस लड़ाई में भारी गोलाबारी और हवाई बमबारी का सहारा लिया गया है जिसमें 160 से ज़्यादा आम लोगों की मौत हो गई और क़रीब दो लाख 70 हज़ार लोग विस्थापित हो गए.
आपदा राहत कार्यों की उप प्रमुख उर्सुला मुएलर ने मानवाधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय का हवाला देते हुए कहा कि सीरिया सरकार की समर्थक सेनाओं और सरकार के ख़िलाफ़ लड़ने वाले सशस्त्र गुटों दोनों ने ही लड़ाई के दौरान मानवाधिकारों का सम्मान नहीं किया है. दोनों ही पक्षों ने अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के सिद्धांतों का पालन नहीं किया है.
उन्होंने सुरक्षा परिषद को बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की ख़बरों के अनुसार पश्चिमोत्तर सीरिया में स्वास्थ्य सेवाओं के ठिकानों और अस्पतालों पर 25 हमले किए गए हैं. इनमें से 22 तो ऐसे स्वास्थ्य केन्द्र हैं जिन पर एक से ज़्यादा हमले किए गए. इस लड़ाई और हिंसा में 25 से ज़्यादा स्कूलों और अनेक बाज़ारों पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है.
आपदा कार्यों की संयोजक उर्सुला मुएलर ने ये भी बताया कि मानवीय सहायता कर्मी ज़रूरतमन्दों की भरसक मदद करने की कोशिश कर रहे हैं मगर पूरी क्षमता के साथ भी काम करने के बावजूद संसाधनों की बहुत कमी है.
मानवीय सहायता पहुँचाने में मदद कर रहे बहुत से साझीदार भी लड़ाई की चपेट में आ रहे हैं और उन्हें भी विस्थापित होना पड़ा है. इसके परिणामस्वरूप लड़ाई वाले अनेक इलाक़ों में सहायता कार्य स्थगित करने पड़े हैं. इनमें स्वास्थ्य, पोषण और सुरक्षा मुहैया कराने वाली सेवाएँ शामिल हैं. इन सेवाओं के ज़रिए अब से पहले क़रीब छह लाख लोगों की मदद की जा चुकी है.
उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि 2019 में जिनेवा सम्मेलन (कन्वेन्शन) के 70 साल और आम लोगों की हिफ़ाज़त सुनिश्चित करने वाले सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव पारित होने के बीस साल पूरे हो रहे हैं. इस मौक़े पर उन्होंने महासचिव द्वारा पिछले सप्ताह कहे गए शब्दों को दोहराया कि अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का पालन करने के इरादों पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है.
“आप सभी सदस्य देश के रूप में इससे अवगत हैं कि सशस्त्र में शामिल सभी पक्षों को अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का पालन करना अनिवार्य है... इसका मतलब ये भी है कि अस्पतालों और स्कूलों को हमलों से हिफ़ाज़त मुहैया कराना कोई ऐच्छिक या वैकल्पिक क़दम नहीं बल्कि, ये एक बुनियादी क़ानूनी ज़िम्मेदारी है.”
अन्य संकटग्रस्त इलाक़े
उर्सुला मुएलर ने इदलिब में लड़ाई को फिलहाल तो बहुत तकलीफ़ वाला घटनाक्रम क़रार दिया. साथ ही उन्होंने रुकबन शरणार्थी शिविर के भीतर भी ख़राब होते हालात की तरफ़ ध्यान दिलाया. वहाँ ज़्यादातर विस्थापित लोग रह रहे हैं और ये जॉर्डन की दक्षिणी सीमा से मिलता है. वहाँ पिछले दो महीनों के दौरान वहाँ से 13 हज़ार 100 लोगों को जाना पड़ा है.
जो लोग वहाँ बचे हैं उनके लिए भी खाने-पीने के सामान, ज़रूरी दवाओं और अन्य जीवनदायी सामान की आपूर्ति की कमी की वजह से हालात बहुत ख़राब हैं. ईंधन की भारी कमी है, ज़रूरी चीज़ों की क़ीमतें आसमान छू रही हैं और लोग जीवन से बहुत तंग नज़र आते हैं.
उर्सुला मुएलर का ये भी कहना था कि रुकबन शरणार्थी शिविर के लिए तीसरे मानवीय सहायता काफ़िले का पहुँचना बहुत ज़रूरी है तभी दीगर तकलीफ़ों को टाला जा सकता है. वहाँ अब भी लगभग 29 हज़ार लोग रहते हैं.
उन्होंने सीरियाई अधिकारियों से भी आग्रह किया है कि इन तकलीफ़ के मारे लोगों की मदद के लिए सभी रास्ते खोल दें और तमाम तरह की बाधाएँ हटा दें. मार्च में ये अनुरोध किया गया था और फिर 9 मई को भी गुज़ारिश की जा चुकी है.
देश के पूर्वोत्तर इलाक़े अल होल शरणार्थी शिविर में मुसीबत के मारे क़रीब 74 हज़ार लोगों में से 92 फ़ीसदी महिलाएँ और बच्चे हैं.
ये इलाक़ा इराक़ी सीमा के निकट पड़ता है. यहाँ ज़्यादातर लोगों को आईसिल की भीषण हिंसा और तकलीफ़ों का सामना करना पड़ा है.
अब ये लोग बहुत की ख़राब और तकलीफ़ वाले हालात में रहने को मजबूर हैं और अब भी उन्हें अपने भविष्य का पता नहीं है. उनके सामने अनेक तरह की चुनौतियाँ दरपेश हैं जिनमें उनके पुनर्वास के नगण्य संभावना, फिर से सामान्य जीवन जीवन की संभावनाओं का नहीं होना और यहाँ तक कि उनके देशविहान या नागरिकता विहीन होने का भी ख़तरा मंडरा रहा है.
उर्सुला मुएलर का ये भी कहना था, “ये नहीं भूलना चाहिए कि सभी बच्चों को, चाहे वो सशस्त्र गुटों के साथ जुड़े हुए हों या आतंकवादी गुटों के साथ, सभी को अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून और अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के तहत संरक्षा और सुरक्षा पाने का अधिकार है.
इनमें बाल अधिकारों पर सम्मेलन (कन्वेंशन) भी शामिल हैं. इसलिए इन बच्चों के साथ प्रभावित इंसानों के तौर पर ही बर्ताव होना चाहिए और उनकी मदद की जानी चाहिए.”